Connect with us

Hi, what are you looking for?

No. 1 Indian Media News PortalNo. 1 Indian Media News Portal

सुख-दुख...

शुरू के उन 2-3 वर्षों में मैंने 10-12 साल का टेलीविज़न सीख लिया

Vinod Kapri India : इससे पहले कभी ऐसा मौका नहीं आया कि कुछ बहुत ही खास लोगों के प्रति अपनी कृतज्ञता ज़ाहिर कर सकूं। लेकिन फेसबुक और इस साल के शिक्षक दिवस का धन्यवाद कि आज मैं अपने जीवन के कुछ बेहद विशेष गुरुओं को दिल से आभार जताना चाहता हूं। बचपन से शुरू करूं तो 9-10 साल की उम्र में एक मैथ्स के टीचर होते थे.. पाठक सर… तब भी इतना ही नाम पता था…और आज भी इतना ही याद है… जो भी बच्चा होमवर्क करके नहीं आता था…वो उसे निष्पक्ष और निरपेक्ष भाव से पीटते थे… हाथ सीधा कराकर उंगलियों में बेंत से पिटाई…ऐसे पहले और आखिरी गुरु जिन्होंने अनुशासन र्का पाठ पढ़ाया।

Vinod Kapri India : इससे पहले कभी ऐसा मौका नहीं आया कि कुछ बहुत ही खास लोगों के प्रति अपनी कृतज्ञता ज़ाहिर कर सकूं। लेकिन फेसबुक और इस साल के शिक्षक दिवस का धन्यवाद कि आज मैं अपने जीवन के कुछ बेहद विशेष गुरुओं को दिल से आभार जताना चाहता हूं। बचपन से शुरू करूं तो 9-10 साल की उम्र में एक मैथ्स के टीचर होते थे.. पाठक सर… तब भी इतना ही नाम पता था…और आज भी इतना ही याद है… जो भी बच्चा होमवर्क करके नहीं आता था…वो उसे निष्पक्ष और निरपेक्ष भाव से पीटते थे… हाथ सीधा कराकर उंगलियों में बेंत से पिटाई…ऐसे पहले और आखिरी गुरु जिन्होंने अनुशासन र्का पाठ पढ़ाया।

11वीं- 12वीं तक आते-आते मिले रामेश्वर कंबोज हिमांशु सर..KV JRC में हिंदी के टीचर…अनुशासन के पक्के…सिद्धांतों के लिए त्याग देने वाले… उन दिनों कुछ लेख-कहानियां लिखने को तड़पने लगा…बहुत सारे कागज़ काले भी किए…लेकिन वो किसी का मतलब का है भी या नहीं -ये सब समझाया कंबोज सर ने…मेरी कहानियां सुधारते और हौसला बढ़ाते…ये कंबोज सर की प्रेरणा ही थी कि 12वीं में पढ़ने के दौरान ही एक बड़ा व्यंग्य दैनिक हिंदुस्तान के एडिट पेज में पांच कॉलम में छपा। तारीख मुझे याद नहीं है… पर इतना याद है 1988 दिसंबर का महीना था…उस दिन वो अख़बार लेकर मैं पूरे शहर में दौड़ा था।

कंबोज सर ने जो हौसला बढ़ाया…उसे विस्तार दिया वीरेन डंगवाल जी ने…जिन्हें हम सब वीरेन दा कहते थे…जो उन दिनों अमर उजाला में फीचर का पन्ना देखते थे…जब 5-6 कहानियां छप गई…तब उनके नाम का पता चला…और मिलने गया…कॉलेज के दिनों में पहली बार उनसे मुलाक़ात हुई…नाम बताया तो एक सेकंड चुप रहे और फिर कंधे में हाथ रखकर बेतकल्लुफ अंदाज़ में बोले कि ''यार तुम ठीक ठाक लिखते हो…लिखते रहो…अच्छा लिखोगे तो छापूंगा… कूड़ा करोगे तो रद्दी में डाल दूंगा'' फिर वो छापते रहे…और जो नहीं छपा…उसे मैं आज भी कूड़ा मानता हूं… इसके बाद अमर उजाला में उनके साथ कई वर्षों का साथ रहा…वीरेन दा नहीं होते तो शायद बेहतर और कूड़े का फर्क समझ नहीं आता…बहुत बहुत धन्यवाद सर।

अख़बार में एक और शख्सियत ने लगातार मुझे प्रेरणा दी…मेरी हिम्मत बढ़ाई… वो थे प्रताप सोमवंशी जी… जब भी कहीं कुछ छपा.. पहला फोन प्रताप जी का ही आता था… ये सिलसिला आज भी चल रहा है… बहुत-बहुत धन्यवाद भाई साहब।

टेलीविज़न में अपने पहले गुरु रजत शर्मा को इसलिए नहीं मानता कि आज वो मेरे चैनल के एडिटर-इन-चीफ हैं…बल्कि इसलिए मानता हूं क्योंकि आज से 18 साल पहले उन्होंने एक ट्रेनी रिपोर्टर को सिखाया…पढ़ाया…सजाया…संवारा और रिपोर्टिंग के दो साल में ही ''सरकार'' जैसी सबसे अहम बीट की ज़िम्मेदारी दे दी…मेरे ख्याल में शुरू के उन 2-3 वर्षों में मैंने 10-12 साल का टेलीविज़न सीख लिया…बहुत-बहुत आभार सर।

शुरू के 2-3 वर्षों में जो सीख.. वो 5-6 साल बाद ही 2002 में काम आया… जब पहली बार बार पद के आगे लगा EDITOR …जिसका श्रेय जाता है लक्ष्मी गोयल को…जिस व्यक्ति को ये कहकर निकाल दिया गया हो कि तुम NEWS नहीं कर पाओगे…उसी को लक्ष्मी जी ने एक साल बाद बुलाकर पूछा क्यों भाई चैनल की ज़िम्मेदारी संभालोगे??… मैंने जवाब दिया कि- अरे कहां सर ना तज़ुर्बा है, ना सिनियरटी…अभी तो सीनियर प्रोड्यूसर हूं…!!
तब तक्ष्मी जी ने कहा ''इंसान अपनी पोज़िशन से नहीं, काम से बड़ा होता है…'' यकीन नहीं होता कि 6 महीने के बाद ही जब ज़ी न्यूज़ नंबर वन हो गया तो उन्होंने मुझे और सतीश दोनों को एडिटर बना दिया.. EDITOR का तमगा तब से लेकर आज तक…शायद उन्हीं की बदौलत है…बहुत-बहुत शुक्रिया सर।

टेलीविज़न में तीसरे जिस व्यक्ति का मुझ पर सबसे ज्यादा प्रभाव रहा वो थे उदय शंकर… उदय जी ने सिखाया कि कैसे बिना घबराए ओखली में सिर दिया जाता है…उदय ने सिखाया कि कैसे नए-नए प्रयोग किए जाते हैं… उदय ने सिखाया कि कैसे पूरी टीम के एक-एक व्यक्ति को अपनी टीम का बनाया जाता है…बहुत-बहुत धन्यवाद सर।

और अंत में एक अपना साथी… एनडीटीवी वाला अभिषेक शर्मा.. जो इन दिनों मेरा सबसे बड़ा मार्गदर्शक है…गुरु है…

कुछ समय से मैं एक नई ''विधा'' में लगा हूं…जिसके बारे में ना मुझे कुछ पता है, ना अभिषेक को खास पता है…लेकिन वो एक ऐसा मार्गदर्शक है…ऐसा दोस्त है जो हर मुश्किल मोड़ में मुझे रास्ता दिखा रहा है… मैं मानता हूं कि वो भी किसी गुरु से कम नहीं है…जो लगातार मुझे भटकने से बचा रहा है…

Advertisement. Scroll to continue reading.

बहुत-बहुत आभार अभिषेक..

आज के दिन ऐसे विशेष लोगों का दिल से धन्यवाद करने का मन था…इसलिए लिख दिया।

इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटडर विनोद कापड़ी ने शिक्षक दिवस के दिन अपने फेसबुक वॉल पर जो लिखा, उसे अविकल यहां प्रस्तुत किया गया है.

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

… अपनी भड़ास [email protected] पर मेल करें … भड़ास को चंदा देकर इसके संचालन में मदद करने के लिए यहां पढ़ें-  Donate Bhadasमोबाइल पर भड़ासी खबरें पाने के लिए प्ले स्टोर से Telegram एप्प इंस्टाल करने के बाद यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Advertisement

You May Also Like

विविध

Arvind Kumar Singh : सुल्ताना डाकू…बीती सदी के शुरूआती सालों का देश का सबसे खतरनाक डाकू, जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गयी थी…

विविध

: काशी की नामचीन डाक्टर की दिल दहला देने वाली शैतानी करतूत : पिछले दिनों 17 जून की शाम टीवी चैनल IBN7 पर सिटिजन...

प्रिंट-टीवी...

सुप्रीम कोर्ट ने वेबसाइटों और सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट को 36 घंटे के भीतर हटाने के मामले में केंद्र की ओर से बनाए...

सुख-दुख...

Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा।...

Advertisement