आजकल जो परम बाजारू समय है, उसमें पत्रकारिता में आने वाले ज्यादातर नौजवान तुरंत किसी भी तरीके से बड़े से बड़ा पद और खूब रुपया पैसा पाना चाहते हैं, इसके लिए वह कोई भी जोड़तोड़, गठजोड़, कुकर्म करने को तैयार रहते है. यही कारण है ज्यादातर पत्रकार अपनी कलम और सरोकार गिरवी रखकर हर वक्त मीडिया मैनेजमेंट के चरणों में लोटने के लिए आतुर रहते हैं.
पर कुछ ऐसे भी नौजवान होते हैं जो सरोकार और कलम की खातिर नौकरियां पर लात मारा करते हैं, आंदोलनों और लाठियों को सिर माथे पर रखते हैं. मयंक सक्सेना इन्हीं में से एक नाम है. बीते वर्ष भर में इस नौजवान ने जाने कितने जन आंदोलनों में न सिर्फ हिस्सा लिया बल्कि अगुवाई की. दिल्ली पुलिस की लाठियां खाईं. कलम के धनी मयंक सक्सेना का करियर लंबा नहीं है पर लंबा है इनके एक्टिविज्म का दौर.
हर मुद्दे पर खरी-खरी और बेबाक बोल लिखने बोलने वाले मयंक सक्सेना के बारे में भड़ास पर गाहे-बगाहे छपता भी रहा है. महान पत्रकार स्व. आलोक तोमर के साथ काम करते हुए मयंक ने काफी कुछ उनसे सीखा. मयंक सोशल मीडिया, ब्लाग, प्रिंट, टीवी हर माध्यम पर सक्रिय रहते हैं. मयंक को ''भड़ास विशिष्ट सम्मान 2013'' से सम्मानित कर भड़ास क्रांतिचेता युवाओं को सलाम करने व सम्मान देने की परंपरा को आगे बढ़ाता है.
मयंक ने पत्रकारिता में सक्रिय चिरकुट किस्म के प्राणियों पर ''चंपादक सीरिज'' लिखा, जिसे काफी पसंद किया गया. सड़क और कलम दोनों के साथ समान भाव से सक्रिय मयंक के बारे में कुछ वक्त पहले भड़ास पर ''इस क्रांतिकारी पत्रकार मयंक सक्सेना को सलाम कीजिए'' शीर्षक से छपा था. मयंक के बारे में ज्यादा जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सकते हैं…