: वैश्विक स्तर पर बढ़ रही जल साक्षरता के प्रति जागरूकता से भारत को सीख लेने की आवश्यकता : पानी मनुष्य के जीवन का आधार है। इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन विकास की अन्धी दौड में हमने जिस तरह से प्राकृतिक संसाधनों का अन्धाधुन्ध इस्तेमाल किया है, उससे इन संसाधनों के संकट की उपलब्धता पर प्रश्नचिन्ह लग गया है और आज पूरी दुनिया में आने वाले समय में पानी के संकट की चर्चा जोरों पर है।
कई देशों में अभी से जल संकट उस देश की प्रमुख समस्याओं में एक है। जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक संसाधनों के अन्धाधुन्ध इस्तेमाल का ही नतीजा है जिसके कारण आज बाढ और सूखे का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। इस वर्ष अमेरिका जैसे विकसित देश को सूखे के संकट का सामना करना पड़ रहा है।
जल साक्षरता के विषय पर जापान पूरी दुनिया की अगुवाई कर रहा है। अभी हाल में ही 03 अक्टूवर से 07 अक्टूवर तक जापान के इन्टरनेशनल क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी में वाटर लिटरेसी (जल साक्षरता) पर अन्तर्राष्ट्रीय सिम्पोजियम का आयोजन किया गया। यहां दुनिया भर के पानी के विषय विशेषज्ञों ने भाग लिया़। इस विचार संगोष्ठी में सिर्फ एक ही बात की गूंज थी कि कैसे स्कूलों सामुदायिक संगठनों व आम नागरिकों के बीच जल साक्षरता बढाकर इन्हें जागरूक किया जाय। पानी की उपलब्धता व गुणवत्ता दोनों का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है।
भारत जैसे विकासशील उपमहाद्वीप में पानी के प्रति लोगों में जागरूकता का अभाव है। इसमें विशेष तौर से निर्धनतम समुदाय, उनमें भी महिलाओं में जागरूकता की अत्यधिक कमी देखने को मिलती है। इस बात की तस्दीक कई अध्ययनों में निकलकर आयी है। दूसरी तरफ जापान में पानी की प्रचुर उपलब्धता के बाद भी जल साक्षरता के प्रति इनकी बढ़ती अभिरूचि पूरी दूनिया को एक संदेश देने की है।
जापान की स्कूलीय शिक्षा व विश्वविद्यालीय शिक्षा में जल साक्षरता को समाहित करने का प्रयास इन दिनों तेजी पर है। एक सर्वे के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लाखों लोग केवल पीने योग्य पानी की कमी और पानी से जनित बीमारियो के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। दुर्गम इलाकों के लोग स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता न होने के कारण पलायन को मजबूर होते हैं। फिर भी जल साक्षरता को बढ़ावा देने के प्रति सरकार व समाज दोनो में उदासीनता दिखाई देती है। दुनिया के तमाम देशों में जितनी जल साक्षरता की आवश्यकता है उससे कई गुना अधिक भारत में है। आधुनिक शिक्षा पद्धति में पानी के सन्दर्भ में जितनी अल्प जानकारी उपलब्ध है वह यहां की नई पीढ़ी की पानी के प्रति समझ बनाने के लिए अपर्याप्त है।
बुन्देलखण्ड की एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा किये गये सर्वे के अनुसार 85 प्रतिशत लोगों में पानी के प्रति उपयोग, स्वच्छता, गुणवत्ता आदि को लेकर सामान्य जानकारी का अभाव है। जल साक्षरता के अभाव में कई बार सूखा वाले क्षेत्रों में अधिक पानी में पैदा होने वाली फसलों केला, मेंथा जैसी कई अन्य नगदी फसलों का उत्पदान शुरू कर दिया जाता है। इसका बाद में गम्भीर परिणाम देखने को मिलता है। 2020 तक भारत के अधिकांश इलाकों में गम्भीर पेयजल संकट का सामना शुरू हो जाएगा और लगभग 35-40 प्रतिशत आबादी गम्भीर पेयजल संकट से जूझेगी।
इसके समाधान में जल साक्षरता जागरुकता का एक विषेश माध्यम हो सकता है। जल साक्षरता के अभाव में अधिकांश लोगों का मानना है कि जमीन के अन्दर भूगर्भीय जल के रूप में अथाह समुद्र है इसलिए पानी के प्रति बहुत अधिक चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। शायद उनका यह चिंतन यहां के सर्व समर्थ राजनेताओं के चिंतन के बराबर ही है। मसलन वोट के चक्कर में सरकारें मुफ्त में पानी उपलब्ध करा रही हैं। जबकि पानी के सन्दर्भ में बैंक का उदाहरण सटीक बैठता है कि जितना आप जमा करोगे उतना ही निकाल पाओगे। लेकिन पानी के उपयोग के लिए न कोई प्रतिबंध न कोई शुल्क इसके अपव्यय को और अधिक बढ़ायेगा। इससे आने वाले दिनों में और अधिक संकट का सामना करना पड़ेगा। इसलिए जल साक्षरता को केवल स्कूलों तक सीमित न रखकर इसे समाज के सभी तबको तक फैलाया जाये।
भारत में पाठ्यक्रमों में जल साक्षरता को सम्मिलित करने के लिए सरकारों को संवेदित करने के लिए सर्व समाज को आगे आने की आवश्यकता है। एक तरफ जापान संसाधनों की दृष्टि से सम्पन्न राष्ट्र है जो समय रहते इस दिशा में आगे बढ़ रहा है। इसी तरह भारत व चीन जैसे विशाल देशों को इस दिशा में आगे आने की आवश्यकता है। आज भारत के कई राज्यों में पानी का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। वहीं समुदाय में जल संचयन की तकनीकि की जानकारी का अभाव है। इस कारण जल संचयन के प्रति समुदाय में उतनी जागरुकता नहीं दिखती जो वर्तमान समय की जरूरत है। लेकिन इसके लिये सबसे पहले केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों को जल साक्षरता के प्रति संवेदित होने की आवश्यकता है तभी जल साक्षरता और इसकी महत्ता को जनजन तक पहँचाया जा सकता है।
संजय सिंह
परमार्थ
सामाजिक कार्यकर्ता
जल साक्षरता विषेशज्ञ
संपर्क- [email protected]
(लेखक संजय सिंह का जन्म फ़रवरी 1975 में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में हुआ. वे बुंदुलेखंड इलाके के प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. यद्यपि उनके कार्यों तथा विचारों का विस्तार क्षेत्र इससे बहुत अधिक है. संजय इलाके को गरीबी, भूख और उत्पीड़न से मुक्ति दिलाने के लिए लम्बे समय से संघर्षरत हैं. समाजशास्त्र में एमए संजय ने बीस साल की अवस्था में 1995 में सामाजिक जीवन में प्रवेश कर लिया. इस कार्य हेतु उन्होंने परमार्थ समाज सेवी संस्थान की स्थापना की. उन्होंने पानी के मुद्दे पर सक्रियता के अलावा आत्मसम्मान के अधिकार हेतु कैम्पेन, जीविका के संसाधनों हेतु संघर्ष, स्थानीय स्वशासन के विकास हेतु कार्य, सूचना का अधिकार हेतु कार्य आदि किया. इस प्रक्रिया में वे कई प्रभावकारी तथा ताकतवर लोगों की आंख की किरकिरी बने. इसके कारण उन्हें अपने पिता श्री लाल सिंह, जो स्वयं भी एक गणमान्य सामाजिक कार्यकर्ता थे, की हत्या का दंश भी सहना पड़ा. इसके बावजूद संजय अपने पथ से डिगे नहीं.)