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प्रमोशन के 23 सवाल : खुश नहीं दिखे जागरण के जिला स्‍तरीय पत्रकार

दैनिक जागरण ने प्रमोशन के लिए अपने पत्रकारों की ऑन लाइन परीक्षा की शुरुआत कर एक बेहतर कदम उठाया है. इससे जागरण के अंदर बनियागिरी और चम्‍मचागिरी करके पत्रकार बन जाने और प्रमोशन पाने की छवि बदलेगी तथा इससे पत्रकारों की गुणवत्‍ता में भी सुधार होगा. 13 मार्च को ट्रेनी एवं सब लेबल के पत्रकारों की परीक्षा ली गई. इस में पत्रकारों से कुल 23 सवाल पूछे गए थे, जिसमें सब्‍जेक्टिव और आब्‍जेक्टिव दोनों नेचर के प्रश्‍न थे.

दैनिक जागरण ने प्रमोशन के लिए अपने पत्रकारों की ऑन लाइन परीक्षा की शुरुआत कर एक बेहतर कदम उठाया है. इससे जागरण के अंदर बनियागिरी और चम्‍मचागिरी करके पत्रकार बन जाने और प्रमोशन पाने की छवि बदलेगी तथा इससे पत्रकारों की गुणवत्‍ता में भी सुधार होगा. 13 मार्च को ट्रेनी एवं सब लेबल के पत्रकारों की परीक्षा ली गई. इस में पत्रकारों से कुल 23 सवाल पूछे गए थे, जिसमें सब्‍जेक्टिव और आब्‍जेक्टिव दोनों नेचर के प्रश्‍न थे.

इन में ब्‍लॉग, सर्च इंजन, मल्‍टी मीडिया जैसे सवालों के साथ अंग्रेजी से हिंदी, गलत खबर को एडिट करने से लेकर सामान्‍य ज्ञान की खबरें भी शामिल थीं. दस सवाल ऑब्‍जेक्टिव नेचर के थे. पत्रकारों को किसी राष्‍ट्रीय विषय पर लेख भी लिखना था. बताया जा रहा है कि सभी लोगों से इन्‍हीं 23 सवालों को पूछा गया था, किंतु सेट बदलकर प्रश्‍न उपर नीचे कर दिया गया था. सवाल हल करने की पद्धति को लेकर भी पत्रकार घपचप में थे. प्रश्‍न पत्र के लिए पत्रकारों के इम्‍पलायी कोड को यूजर नेम तथा उनके मोबाइल को पासवर्ड बनाया गया था.

यह तो हुई जागरण के भीतर कल आयोजित हुए परीक्षा की बात. पर सबसे अहम बात यह है कि तमाम पत्रकार सभी से एक ही ढर्रे का सवाल पूछे जाने से खुश नहीं थे. इन पत्रकारों का कहना था कि जिला में काम करने वाले पत्रकार, यूनिटों में काम करने वाले पत्रकार और राष्‍ट्रीय स्‍तर पर काम करने वाले पत्रकारों से एक ही प्रकार का सवाल पूछ कर आप कौन सा न्‍याय कर रहे हैं. लाखों का मंथली पैकेज पाने वाले और दस हजार से कम पैकेज पाने वाले को एक ही तराजू में तौलना कहां तक उचित है.

पत्रकारों की यह नाराजगी जायज भी है. आखिर एक जिले स्‍तर पर काम करने वाला पत्रकार, जो दिन रात जिलों की खबरों, दुर्घटनाओं, बलात्‍कारों, हत्‍याओं, लूट-डकैतियों, धरना-प्रदर्शन और उसके अखबार में क्‍या छूटा, क्‍या लगा, कितने का विज्ञापन मिला जैसे कामों में परेशान रहता है, से डेस्‍क पर बैठकर आठ से दस घंटे काम करने वाले, हमेशा ऑन लाइन रहने वाले पत्रकारों के लेबल का सवाल पूछेंगे तो नाइंसाफी तो होगी ही. सच भी है कि समय अभाव में एक जिले स्‍तर का पत्रकार सब कुछ जानते हुए भी कई राष्‍ट्रीय महत्‍व की चीजों को गंभीरता से नहीं पढ़ पाता है.

जिला स्‍तरीय पत्रकारों की दिनचर्या भी ऐसी ही होती है. सुबह ग्‍यारह बजे से मीटिंग से लेकर रात के ग्‍यारह बजे से वो अखबार के काम में ही लगे रहते हैं. आखिर किस समय में वो अपने ज्ञान को राष्‍ट्रीय और अंतराष्‍ट्रीय स्‍तर का बना पाएगा. हालांकि प्रोफेशनल स्‍तर पर ये सब बहानेबाजी कही जा सकती है और इसे उचित नहीं माना जा सकता है, परन्‍तु जागरण के प्रबंधकों को इस स्‍तर पर भी सोचना होगा ताकि किसी के साथ अन्‍याय ना हो सके. जागरण ने प्रमोशन के लिए परीक्षा लेने की प्रक्रिया शुरू करके बढि़या काम किया है, फिर भी उसे सभी चीजों को देखते हुए एक समानांतर व्‍यवस्‍था बनानी चाहिए. ताकि सबको बराबर का मौका मिल सके. 

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