Connect with us

Hi, what are you looking for?

No. 1 Indian Media News PortalNo. 1 Indian Media News Portal

विविध

राष्‍ट्रीय शोक है यह आपदा, 30 जून को पहुंचे जंतर-मंतर

भूकंप से लाटूर में 20 हजार मौतें हुईं- कोई राष्‍ट्रीय शोक नहीं। कच्‍छ और भुज में वर्ष 2000 में आए जलजले ने बीस हजार लोगों को बेवजह लील लि‍या, 'राष्‍ट्र' की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। सुनामी में तकरीबन साढ़े दस हजार लोग अकाल मौत के शि‍कार हो गए, उसे राष्‍ट्रीय आपदा घोषि‍त कि‍या गया, फि‍र भी सत्‍ता प्रति‍ष्‍ठान का कलेजा नहीं पि‍घला।

भूकंप से लाटूर में 20 हजार मौतें हुईं- कोई राष्‍ट्रीय शोक नहीं। कच्‍छ और भुज में वर्ष 2000 में आए जलजले ने बीस हजार लोगों को बेवजह लील लि‍या, 'राष्‍ट्र' की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। सुनामी में तकरीबन साढ़े दस हजार लोग अकाल मौत के शि‍कार हो गए, उसे राष्‍ट्रीय आपदा घोषि‍त कि‍या गया, फि‍र भी सत्‍ता प्रति‍ष्‍ठान का कलेजा नहीं पि‍घला।

अब अगर ताउम्र समाज को गंदा करने वाले और हमारी जेब कतरने वाले कि‍सी नेता की मौत हो गई होती तो सत्‍ता में शीर्ष पर बैठे लोगों का कलेजा बाहर आ जाता। उसके शोक में छुट्टी से लेकर ति‍रंगा झुकाने तक की हर रस्‍म पूरी की जाती। इतना ही नहीं, दो ढाई एकड़ जमीन पर उसकी समाधि बनाकर उसे देश पर हमेशा के लि‍ए थोप दि‍या जाता।

उत्‍तराखंड में बरसे पहाड़ से पूरा देश स्‍तब्‍ध है, क्षुब्‍ध और दुखी है। बच्‍चों से लेकर बुजुर्गों तक की आंखों में सवाल ही सवाल है। क्‍यों हुआ ऐसा, और अब क्‍या होगा। पहाड़ों में लोगों का मरना बदस्‍तूर जारी है, पर सरकार इस पीड़ा को महसूस करती दि‍खाई ही नहीं दे रही है। राहत के लिए देश का खजाना भले ही खोल दि‍या गया हो, पर ये तो सभी जानते हैं कि अभी इसमें कि‍तनी बंदरबांट होगी। मनमोहन-सोनि‍या ने हवाई सर्वे करके अपने कर्तव्‍यों पर जो फुलस्‍टॉप लगाया है, उसका असर पूरी सरकारी मशीनरी पर अभी से देखा जा रहा है। शुक्र है कि हमारे जवान वहां हैं, नहीं तो स्‍थि‍तियां और भी ज्‍यादा वि‍कट होतीं।

देश के झंडा कोड में यहां तक की व्‍यवस्‍था है कि अगर कोई वि‍देशी नेता भी मरे तो राष्‍ट्रीय शोक घोषि‍त कि‍या जा सकता है। जि‍न लोगों के नाम पर हमारा देश दुनि‍या का सबसे बड़े लोकतंत्र कहलाता है, क्‍या उनकी इतने बड़े पैमाने पर हुई मौतें राष्‍ट्रीय शोक के लायक नहीं हैं। अगर देश में वाकई लोकतंत्र है, तो सीधी सी बात है, कि उत्‍तराखंड में हुई मौतें इसकी हकदार हैं। सरकार अगर घड़ि‍याली आंसू नहीं बहा रही तो साबि‍त करे कि वो वाकई गमजदा है।

आखि‍र ये लोकतंत्र का कौन चेहरा है। कौन से तंत्र की है यह सरकार जो अपने हजारों लोगों की मौत से दुखी नहीं होती। नेताओं की मौत पर तो ति‍रंगे को झुकाने का पैमाना झंडा कोड में बना लि‍या गया, मासूमों की मौत पर कि‍सी कोड में कोई जि‍क्र करना भी नहीं ठीक समझा। अमेरि‍का में पि‍छले दि‍नों आए तूफान में हुई मौतों के बाद राष्‍ट्रीय शोक घोषि‍त हुआ और खुद ओबामा उसकी शोक सभा में शरीक हुए। 15 जून के बाद से कैबि‍नेट की कम से कम दो बैठकें हो चुकी हैं, जि‍नमें दो मि‍नट का मौन भी नहीं रखा गया।

आप अगर इस नजरिये से सहमत हैं और चाहते हैं कि केंद्र सरकार इस दिशा में पहल करे तो अगली ३० जून को १२ बजे जंतर-मंतर पहुंचे। इस मौके पर उत्तराखंड के मृतकों को श्रद्धांजलि देने के साथ ही राष्ट्रीय शोक घोषित करने और पहाड़ो के विनाश की समीक्षा की मांग होगी।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

… अपनी भड़ास [email protected] पर मेल करें … भड़ास को चंदा देकर इसके संचालन में मदद करने के लिए यहां पढ़ें-  Donate Bhadasमोबाइल पर भड़ासी खबरें पाने के लिए प्ले स्टोर से Telegram एप्प इंस्टाल करने के बाद यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Advertisement

You May Also Like

विविध

Arvind Kumar Singh : सुल्ताना डाकू…बीती सदी के शुरूआती सालों का देश का सबसे खतरनाक डाकू, जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गयी थी…

सुख-दुख...

Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा।...

विविध

: काशी की नामचीन डाक्टर की दिल दहला देने वाली शैतानी करतूत : पिछले दिनों 17 जून की शाम टीवी चैनल IBN7 पर सिटिजन...

प्रिंट-टीवी...

जनपत्रकारिता का पर्याय बन चुके फेसबुक ने पत्रकारिता के फील्ड में एक और छलांग लगाई है. फेसबुक ने FBNewswires लांच किया है. ये ऐसा...

Advertisement