ग्वालियर में कुछ पत्रकार गिरोह है, जिन्होंने नगर निगम पर कब्ज़ा कर रखा है. सबसे खास बात यह है कि नगर निगम कुछ भी करे पत्रकारों का भाग्य वे पत्रकार तय करते हैं, जिनके अपने अखबार शहर में सैकड़ा में भी नहीं दहाई में आते हैं. इन्होंने नगर निगम को अपनी लूट का अड्डा बना रखा है. इस गिरोह के लोग प्रभारी मन्त्री की दलाली करते हैं. पहले यह लोग अटल बिहारी बाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा के पीछे साए की तरह लगे रहते थे, लेकिन जैसे ही उनके सितारे गर्दिश में आये इस गैंग ने उनसे न केवल किनारा कर लिया बल्कि संकट की बेला गाँव में पत्रकारों को ले जाकर हर वह जतन किया कि अनूप के केस में फर्जी तौर पर उनके परिजन फंस जाएँ.
तब इनको लग रहा था कि अब अनूप का खेल ख़त्म और इन्होंने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा और ग्वालियर के प्रभारी मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के चक्कर काटना शुरू कर दिए. अब हालत ये है कि डॉ. मिश्रा जब ग्वालियर आते हैं तो ये चमचे पत्रकार उनके पीछे पूरे समय दुम हिलाते रहते हैं. इन्हीं पत्रकारों ने ग्वालियर नगर निगम को चारागाह बना रखा है. ये एक खेल प्रतियोगिता कराते हैं, जिसमें प्रेस का भय बताकर हर वर्ष लगभग २५ लाख रुपये इकट्ठे करते हैं और सारा खर्चा ग्वालियर डिविजन क्रिकेट एसोसिएशन और नगर निगम के मत्थे मढ़कर वसूली गयी राशि मिल बांटकर खा जाते हैं.
इसके बाद नगर निगम पार्षद बनाम पत्रकार क्रिकेट मैच होता है. यह रविवार को भी हुआ. इसमें पत्रकारों की टीम फिर इन्हीं तनखैया पत्रकारों ने तय की. आप जानना चाहेंगे यह कौन लोग हैं? और कौन से बड़े अखबारों से जुड़े हैं? एक सज्जन यूपी के एक अखबार से जुड़े है और एक अभी तक मुरैना के एक अखबार से संबंध रखते थे, अब जब उसने निकाल दिया तो कहते हैं भोपाल के किसी अनाम से अखबार की चिट्ठी ले आये. इनके अखबार का नाम शायद नगर निगम के पीआरओ और खेल अधिकारी सत्यपाल सिंह चौहान ही जानते होंगे… बाकी किसी को नहीं पता. जिस शहर से दस बड़े दैनिक अखबार निकालते हों उसकी टीम तीस-रीस कोपी वाले अखबार के कथित संवाददाता तय करें तो यह हास्यास्पद ही लगता है.
बताते हैं कि इन लोगों ने दुनिया में क्रिकेट के नियम ही पलट दिए और टीम तीस लोगों की बना दी. जिसमें चार तो ऐसे लोग थे, जो अभी किसी भी अखबार या टीवी के लिए काम नहीं करते और पंद्रह इनके दफ्तरों में काम करने बाले चपरासी या कम्पयूटर ऑपरेटर थे. इसकी वजह केवल नगर निगम से मिलने वाले ट्रैक सूट थे. लाखों खा चुकने के बाद भी सौ दो सौ रुपये के ट्रैक सूट पर भी ये अपनी लार टपकाना नहीं भूले. इस टीम का चयन किसने किया इसको लेकर कोई कुछ बताने को तैयार नहीं है. पीआरओ कहते हैं कि टीम खेल अधिकारी ने तय की और खेल अधिकारी कहते हैं पीआरओ ने.
पर सच यह है कि टीम उन दो दलालों ने तय की जिन्होंने वर्षों से कोई खबर तो क्या अपने पिता जी को चिट्ठी भी नहीं लिखी. यह कभी किसी इज्ज़तदार अखबार या टीवी चैनल में कार्यरत नहीं रहे इसलिए इन्हें सही पत्रकारों से डर लगता है, लेकिन नगर निगम के अफसरों का इन्होंने कौन सा राज़ दबा रखा है कि वे इनसे डरते हैं. इस टीम में एक भी राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल का प्रतिनधि शामिल नहीं था और जो आजतक के इकलौते संवाददाता राकेश अचल कोच थे भी, तो एक तो वे क्रिकेट नहीं खेलते और दूसरे ये कि वे पिछले महीने ही अपने को एक दैनिक के संपादक की हैसियत से अपने को प्रिंट का प्रतिनिधि घोषित कर चुके हैं. ग्वालियर शहर में सभी बड़े राष्ट्रीय चैनल के संवाददाता हैं, लेकिन वे किसी की चमचागीरी नहीं करते हैं तो उन्हें खेल के धंधे से अलग रखा गया.
ग्वालियर से एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.