: प्रबंधन की नजर में नम्बर बढ़ाने के लिए जीएम ने तैयार की लिस्ट : दैनिक जागरण प्रबंधन का अपने कर्मचारियों पर छंटनी की तलवार भांजने का क्रम जारी है. मेरठ, बनारस, बरेली, मुरादाबाद और हल्द्वानी के बाद अब इलाहाबाद की बारी है. खबर है कि यहां से प्रबंधन ने अपने छह वरिष्ठ सहयोगियों को ऑफिस आने से मना कर दिया है. इन लोगों से जबरिया इस्तीफा मांगा जा रहा है. प्रबधंन ने इनके पूछे जाने पर बताया कि ये लोग नान परफार्मर हैं. कहा जा रहा है कि संपादकीय प्रभारी एवं यूनिट के जीएम गोविंद श्रीवास्तव ने ये लिस्ट तैयार की है. सूत्रों का कहना है कि गोविंद श्रीवास्तव ने तो इन सभी लोगों को अंदर ना घुसने देने का फरमान भी जारी कर दिया है.
इलाहाबाद यूनिट से जिन पांच लोगों को बाहर का रास्ता दिखाये जाने की कोशिश की जा रही है वे सभी वरिष्ठ साथी हैं तथा लम्बे समय से जागरण के साथ जुड़े हुए हैं. प्रबंधन ने डेस्क पर कार्यरत लाल मोहम्मद एवं शैलेंद्र पाण्डेय, रिपोर्टर के रूप में कार्यरत अखिलेश त्रिवेदी एवं राजीव सिंह तथा फोटोग्राफर नीरज पाण्डेय व भालचंद्र चौबे को इस्तीफा देने का फरमान सुनाया है. हालांकि अभी किसी ने इस्तीफा नहीं दिया है, परन्तु इन लोगों पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है. बताया जा रहा है कि प्रबंधन की नजर में हीरो बनने के लिए गोविंद श्रीवास्तव ने इन वरिष्ठों पर ही अपनी तलवार भांजी है, जिसमें संपादकीय प्रभारी का भी पूरा सहयोग उन्हें मिल रहा है.
इनमें से ज्यादातर लोग लम्बे समय से जागरण को अपनी सेवाएं देते आ रहे हैं. लाल मोहम्मद तो कुछ ही समय में रिटायर भी होने वाले हैं. कहा जा रहा है कि प्रबंधन वेज बोर्ड की सिफारिश लागू करने के बाद होने वाली फजीहत से बचने के लिए वरिष्ठों को बाहर का रास्ता दिखा रहा है. धीरे-धीरे तमाम ऐसे वरिष्ठ पत्रकारों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है, जिन्हें इस उम्र में नौकरी मिलनी भी मुश्किल है. ये सभी पत्रकार परेशान हैं. हालांकि इन्होंने अभी इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है, पर प्रबंधन दबाव बढ़ाकर इन लोगों को तोड़ने में लगा हुआ है.
इस संदर्भ में जब बातचीत करने के लिए गोविंद श्रीवास्तव को फोन किया गया तो उन्होंने फोन उठाने और परिचय जानने के बाद आवाज न आने का बहाना बनाना शुरू कर दिया, जब दुबारा फोन मिलाया गया तो उन्होंने रिसीव नहीं किया. एसएमएस का जवाब भी उन्होंने नहीं दिया, जिससे उनका तथा प्रबंधन का पक्ष सामने नहीं आ सका. हालांकि इस प्रकरण से आसानी से समझा जा सकता है कि जो व्यक्ति बड़े पोस्ट पर होते हुए भी अपनी तथा अपने प्रबंधन का पक्ष रखने की हिम्मत नहीं दिखा सकता वो किसी कर्मचारी के हित के लिए कितना लड़ सकता है. शर्म आती है ऐसे मैनेजरों पर, जो मीडिया में होते हुए भी लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रखने में विश्वास नहीं करते.
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