नईदुनिया और आलोक मेहता एंड कंपनी को लेकर फिर चर्चाएं शुरू हैं. चर्चा इसलिए कि उच्च स्तर पर कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है. कोई इस मसले को लेकर अपना मुंह नहीं खोल रहा है. पर सूचनाएं आ रही हैं कि जागरण समूह ने नईदुनिया को खरीद लिया है. इसी वजह से दिल्ली और यूपी, बिहार, झारखंड में नईदुनिया का जो भी छोटा-बड़ा काम था, सब बंद हो जाएगा. चर्चा है कि 31 मार्च के बाद इन राज्यों में नईदुनिया से जुड़े लोग बेरोजगार हो जाएंगे.
दिल्ली समेत यूपी-बिहार-झारखंड समेत उन सभी राज्यों में इस बात की तेज चर्चा है कि दिल्ली-एनसीआर पर 31 मार्च के बाद ताला लग जाएगा. जागरण समूह ने नईदुनिया को खरीद लिया है, इसलिए अब वो इन राज्यों में अपना दो-दो ब्रांड नहीं चलाना चाहता है. जागरण का मुख्य फोकस मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ है, जहां वह अपने कई प्रतिद्वंद्वी अखबारों से तकनीकी दिक्कतों के कारण कमजोर है, लिहाजा वो नईदुनिया के उन एडिशन तथा ब्यूरो कार्यालयों को बंद करने जा रहा है, जहां पर जागरण खुद एक बड़े ब्रांड के तौर पर पहले से मौजूद है.
बताया जा रहा है कि इसी क्रम में जागरण प्रबंधन दिल्ली-एनसीआर से प्रकाशित नईदुनिया के एडिशन को आगे जारी नहीं रखना चाहता है. पहले भी खबरें आई थी कि जागरण की खरीद शर्तों में भी ये बातें शामिल हैं. जागरण समूह द्वारा नईदुनिया को खरीदने के बाद इसके दिल्ली-एनसीआर एडिशन को 31 मार्च के बाद बंद करने की योजना है. हालांकि नईदुनिया से जुड़े कई लोग इस तरह की कोई सूचना होने की बात से इनकार कर रहे हैं. इसलिए कहा जा रहा है कि प्रबंधन अपने कर्मचारियों को भी अंधेर में रख रहा है. इन लोगों से अचानक इस्तीफा मांग लिया जाएगा. हालांकि इन खबरों की वजह से नईदुनिया के कर्मचारी परेशान जरूर हैं.
नईदुनिया के संपादक आलोक मेहता एंड कंपनी को लेकर भी कयासों का दौर जारी है. कहा जा रहा है कि जागरण प्रबंधन इन लोगों को बर्दाश्त कर पाने की स्थिति में नहीं है. वैसे भी जागरण में ज्यादातर एडिशनों में घर के सदस्यों के ही संपादक बनने की परम्परा है, इस स्थिति में आलोक मेहता जैसे बड़े कद काठी के संपादक और उनकी महंगी टीम को समायोजित कर पाना जागरण प्रबंधन के लिए मुश्किल है. आलोक मेहता से जुड़े तमाम आरोपों-विवादों के बाद भी उनके कद को देखते हुए यह नहीं लगता है कि वो नईदुनिया के बिकने की स्थिति में जागरण की नौकरी करेंगे. फिलहाल हवा में खबर है कि कांग्रेस के अत्यन्त नजदीकी माने जाने वाले मेहता पार्टी के मुखपत्र नवजीवन को जीवन देने के साथ अपने लोगों को भी जीवनदान दे सकते हैं.
नईदुनिया के बिकने की खबरों को जोर मिलना उस समय शुरू हो गया था, जब दिल्ली-एनसीआर एडिशन में कार्यरत दर्जनों लोगों से जबदस्ती इस्तीफे मांग लिए गए थे. इन इस्तीफों को लेकर भी विवाद हुआ था कि बड़ी सेलरी पाने वाले अपने लोगों को बचाने के लिए आलोक मेहता काम करने वाले साथियों की बलि ले रहे हैं. माना जा रहा था कि आलोक मेहता खर्च में कटौती की बजाय संख्या बल में कटौती से प्रबंधन को संतुष्ट करना चाहते थे, परन्तु चर्चा अगर सच है तो फिर उन्हें अपनी पूरी टीम के साथ नईदुनिया से विदा होना पड़ेगा. फिलहाल मेहता के नवजीवन या हिंदुस्तान में जाने को लेकर कानाफूसी जारी है.
इन खबरों की पुष्टि के लिए कई स्तरों पर खंगालने-जानकारी लेने का प्रयास किया गया, परन्तु अधिकांश लोगों ने इस मामले में जानकारी नहीं होने की बात कही तो कुछ ने मुंह खोलना ही उचित नहीं समझा. पर जिस तेजी से ये चर्चाएं चल रही हैं उससे लग रहा है कि कहीं ना कहीं कोई खिचड़ी जरूर पक रही है, भले ही वो कच्ची या आधी अधूरी ही क्यों ना हो. नईदुनिया में भी सूत्रों को खंगाला गया और जागरण में भी, पर नईदुनिया के भविष्य को लेकर चल रही चर्चाओं की पुष्टि नहीं हो पाईं.