प्रेस क्लब शिमला के चुनाव 31 जुलाई 2012 को कराने का निर्णय ले लिया गया है। वरिष्ठ पत्रकार कृष्णभानु के सख्त रवैये को देखते हुए क्लब की संचालन परिषद की आपात बैठक में चुनाव कराने का फैसला हुआ। क्लब के चुनाव तीन साल बाद कराए जा रहे हैं। 13 अक्तूबर 2009 में क्लब के सालाना चुनाव हुए थे। कायदे से 13 अक्तूबर 2010 से पहले नए चुनाव हो जाने चाहिए थे, जो करीब तीन साल बीतने के बाद भी नहीं कराए गए।
इसके खिलाफ कृष्णभानु ने आवाज उठाई और क्लब के अध्यक्ष धनंजय शर्मा को अलग-अलग पांच पत्र लिखे। इन पत्रों में क्लब में अढ़ाई साल से लंबित लाखों रुपयों के उधार के साथ-साथ वित्तीय व अन्य अनियमितताओं का उल्लेख था। हजारों रुपयों के गबन का भी आरोप लगाया गया। साथ ही तत्काल चुनाव कराने की मांग की गई। कृष्णभानु शिमला प्रेस क्लब के लगातार पांच बार अध्यक्ष और तीन दफा मुख्य महासचिव रह चुके हैं। उन्होंने अकेले दम पर क्लब को सुधारने का बीड़ा उठाया, जिसके परिणाम तत्काल सामने आने लगे।
जिस दिन पत्र लिखकर कृष्णभानु ने क्लब में हजारों रूपए के गबन का आरोप लगाया, ठीक उसी दिन शाम को किसी ने क्लब में हजारों रुपए जमा करा दिए गए, जो उसी दिन बहीखाते में दर्ज भी हो गए। क्लब की उधारी लगभग साढ़े चार लाख तक पहुंच चुकी थी। कुछ सदस्यों की उधारी 40 से 50 हजार रुपए थी, जो लम्बे समय से उसे चुकता नहीं कर रहे थे। क्लब की संचालन परिषद ने कई बार उधारखोर सदस्यों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्णय लिए, लेकिन वह रद्दी की टोकरी में पड़े रहे और उधारखोरों का उधार बढ़ता गया। भानु ने इसके लिए क्लब के अध्यक्ष धनंजय शर्मा को जिम्मेदार ठहराया। कृष्णभानु के सख्त तेवरों को देखते हुए उधारखोरों में भी हड़कंप मच गया। परिणामस्वरूप धड़ाधड़ वसूली होने लगी। लगभग दो लाख की वसूली हो चुकी हैं। बाकियों को 7 जुलाई तक का समय दिया गया है। निश्चित तारीख तक भुगतान न किया तो संबंधित सदस्य डिफाल्टर हो जाएंगे और वे क्लब की सुविधाओं से वंचित कर दिए जाएंगे।
गौरतलब है कि क्लब के अध्यक्ष धनंजय शर्मा ने इससे पूर्व चुनाव टालने की भरसक कोशिश की। 27 जून को साधारण अधिवेशन बुलाया, लेकिन सदस्यों को सलीके से इसकी सूचना ही नहीं दी गई। कायदे-कानून को भी ठेंगा दिखाया गया। कृष्णभानु ने कानूनी तौर पर इस अधिवेशन को ‘अवैध’ बताया। परिणामस्वरूप सदस्यों ने साधारण अधिवेशन का बहिष्कार कर दिया। 160 में से 140 से ज्यादा सदस्यों ने बैठक से किनारा कर लिया। इससे धनंजय शर्मा को बड़ा झटका लगा। उन्हें मालूम पड़ गया कि वह क्लब की लड़ाई में कहां खड़े हैं।
कृष्णभानु ने धनंजय शर्मा को अंतिम पत्र 28 जून 2012 को लिखा। उन्होंने प्रश्न किया कि आखिर धनंजय शर्मा चुनाव क्यों टालना चाहते हैं। क्या लालच है? क्या फंडा है? क्या भूख है? बगैर फेविकोल के कुर्सी पर क्यों चिपक गए हैं? क्या राज है? कुछ तो बताइए? उन्होंने कहा कि साधारण अधिवेशन छोड़िए और संचालन परिषद की बैठक बुलाकर चुनाव का फैसला कीजिए। इस पत्र का असर हुआ और आपात बैठक बुलाकर 29 जून को चुनाव कराने का निर्णय ले लिया गया।
सवाल उठता है कि क्या शिमला प्रेस क्लब का विवाद यहीं खत्म हो गया है। यदि हाँ, तो इस विवाद के लिए कौन जिम्मेदार है? क्लब के सदस्य इस विवाद के लिए क्लब के कर्ताधर्ताओं, खासकर अध्यक्ष धनंजय शर्मा को दोषी मान रहे हैं। यदि उन्होंने समय पर चुनाव कराए होते अथवा रेवड़ियों की तरह ‘अपनों’ को उधार न बांटा होता तो ऐसी स्थिति उत्पन्न ही न होती। तीन साल तक क्लब के हजारों रुपए किसी की जेब में पड़े रहे और धनंजय शर्मा कुम्भकर्णी नींद सोते रहे। कृष्णभानु यदि मामला न उठाते तो यह हजारों रुपए डकार दिए जाते। फिर इसकी जिम्मेदारी से अध्यक्ष होने के नाते धनंजय शर्मा कैसे बच सकते हैं?
शिमला से राकेश कुमार की रिपोर्ट.