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32 साल बाद मिली धमकी – जिंदगी प्यारी है या कौल सिंह ठाकुर?

 

सक्रिय पत्रकारिता में लगभग तीन दशक से ज्यादा समय हो गया। बहुत कुछ लिखा पर कभी जान से मारने की धमकी नहीं मिली। कस्बाई पत्रकारों को जब कोई धमकी देता, अखबारों में खबर छपती तो जीवन बेकार सा लगने लगता। सोचता, टनों के हिसाब से लिखने के बाद भी कोई जान से मारने की धमकी क्यों नहीं आती? पूर्व संचार मंत्री पंडित सुखराम के खिलाफ 1982 में अखबार में भविष्यवाणी की थी- ‘‘तुम्हारी तहजीब अपनी खंजर से आप ही खुदकशी करेगी।’’ अखबार में चार किश्तों में छपी खबर का यह सब हैडिंग था। यानी अप्रैल 1982 में पंडित सुखराम को चेतावनी दे दी थी। जेल उनको बेशक कई सालों बाद जाना पड़ा। उन दिनों हिमाचल प्रदेश के मण्डी नगर के सारे गुंडे और जेबकतरे पंडित जी के साथ थे। पंडित जी प्रदेश सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री रामलाल ठाकुर के बाद शक्तिशाली मंत्री (नम्बर दो) थे। सब जानते हुए भी चार किस्तों में पंडित सुखराम के ‘भ्रष्टाचार’का खुलासा किया, पर मौत की धमकी उस समय भी नहीं मिली। बुधवार, 16 मई की रात 8 बजकर 47 मिनट पर आखिरकार हसरत पूरी हो गई। जान से मारने की धमकी मोबाइल पर सुनी तो जीवन सार्थक लगने लगा। आखिर किसी ने तो कद्र जानी।

 

सक्रिय पत्रकारिता में लगभग तीन दशक से ज्यादा समय हो गया। बहुत कुछ लिखा पर कभी जान से मारने की धमकी नहीं मिली। कस्बाई पत्रकारों को जब कोई धमकी देता, अखबारों में खबर छपती तो जीवन बेकार सा लगने लगता। सोचता, टनों के हिसाब से लिखने के बाद भी कोई जान से मारने की धमकी क्यों नहीं आती? पूर्व संचार मंत्री पंडित सुखराम के खिलाफ 1982 में अखबार में भविष्यवाणी की थी- ‘‘तुम्हारी तहजीब अपनी खंजर से आप ही खुदकशी करेगी।’’ अखबार में चार किश्तों में छपी खबर का यह सब हैडिंग था। यानी अप्रैल 1982 में पंडित सुखराम को चेतावनी दे दी थी। जेल उनको बेशक कई सालों बाद जाना पड़ा। उन दिनों हिमाचल प्रदेश के मण्डी नगर के सारे गुंडे और जेबकतरे पंडित जी के साथ थे। पंडित जी प्रदेश सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री रामलाल ठाकुर के बाद शक्तिशाली मंत्री (नम्बर दो) थे। सब जानते हुए भी चार किस्तों में पंडित सुखराम के ‘भ्रष्टाचार’का खुलासा किया, पर मौत की धमकी उस समय भी नहीं मिली। बुधवार, 16 मई की रात 8 बजकर 47 मिनट पर आखिरकार हसरत पूरी हो गई। जान से मारने की धमकी मोबाइल पर सुनी तो जीवन सार्थक लगने लगा। आखिर किसी ने तो कद्र जानी।
 
दो घण्टे पीछे लौट रहा हूँ। बुधवार को जल्दी घर पहुंच गया था। दरवाजे की कुण्डी नहीं लगी थी। भीतर पहुंचा तो देखा, पत्नी सिर पर दुपट्टा बांधे लेटी थी। उनके सिर में दर्द था। दो गोलियां सेरीडॉन की ले चुकी थी, लेकिन दर्द कम नहीं हुआ। धीमी आवाज में बोली, ‘एक पैकेट पड़ा है। शाम को कोई आपके नाम से दे गया था।’मैने देखा, छोटा-सा पैकेट सोफे पर पड़ा है, जिसे सलीके से पैक किया गया था। सोफे के किनारे बैठकर पैकेट को घूरता रहा। सोचा, शिमला नगर निगम के चुनाव चल रहे हैं। अपन के चैनल में कइयों के खिलाफ खबरें चल रहीं हैं। जरूर बम होगा। खोलूंगा तो फट जाएगा और बेमौत मारा जाऊंगा। हिम्मत जुटाई, खोला तो ब्लैक डॉग की बोतल निकली। बोतल गौर से देगी। लिखा था, "FOR SALE IN U.T. CHANDIGARH ONLY" किसने भेजी, कोई नामोनिशान नहीं। कई भक्त हैं। मालूम नहीं कौन दे गया होगा।
 
कहते हैं कि चील के घोंसले में मांस नहीं रहता। अपन की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी। अलमारी में दारू खत्म थी और ब्लैक डॉग देखते ही पीने को मन मचल गया। पत्नी ताड़ गई। बोली, ‘बीमार हूँ। आज टाइम पर रोटी खा लो। पीने बैठोगे तो ग्यारह बजा दोगे।’मैंने कहा, 'आज साढ़े आठ के न्यूज बुलेटिन से पहले खत्म कर लूँगा।' पहली बार वायदा निभाया भी।‘हिमाचल आजकल’पर खबरें शुरू हो चुकी थीं। 8:46 पर ब्रेक हुआ तो अचानक मोबाइल की घण्टी बजी। बता दूं कि ब्रेक के समय मेरा नम्बर टीवी सक्रीन पर ‘प्रतिक्रिया’के लिए रोजाना डिस्पले किया जाता है। मुझे कहा गया कि नगर निगम के चुनाव के प्रोमो में धूमल के साथ कौल सिंह ठाकुर का फोटो क्यों दिया जा रहा है, वीरभद्र सिंह का क्यों नही? मैंने कहा कि कौल सिंह ठाकुर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं। दूसरी ओर से कहा गया, वीरभद्र सिंह पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, इसलिए कौल सिंह के स्थान पर उनका फोटा लगना चाहिए। मैंने कहा, प्रधान संपादक होने के नाते यह मेरा विशेषाधिकार है।
 
वह अंग्रेजी झाड़ने लगा था। समझ आ गया कि मेरी तरह वह भी पीए हुए है। पीने के बाद मेरा अंग्रेजी ज्ञान भी मुखर होने लगता है। मैं भी अंग्रेजी झाड़ने लगा तो वह फीका पड़ गया। हिन्दी में बोला- 'सोच लेना, जिन्दगी प्यारी है या कौल सिंह?' यह भी जीवन में पहली ही बार हुआ कि मेरे अंग्रेजी, हिन्दी और पंजाबी शब्दकोष में जितनी गालियां थी, तड़ातड़ बक डाली। आमतौर पर मुझे गालियां कम आती हैं, लेकिन रात को पता नहीं कहां-कहां से निकल पड़ी। एक मिनट पांच सेकेंड तक वह स्तब्ध सा गालियां सुनता रहा और मैं धारावाहिक सुनाता रहा। आखिकार उसने मोबाइल काटा तो इधर मन गद्गद् हो गया। आखिर 32 साल बाद मुझे भी किसी ने जान से मारने की धमकी दी थी। जीवन अचानक ही सार्थक लगने लगा था। पहली बार पत्रकार होने पर गौरवान्वित महसूस किया। साढ़े 9 बजे बिस्तर पर लेट गया। नींद आने ही लगी थी कि मोबाइल फिर बज उठा। समय 9 बजकर 38 मिनट। नम्बर देखकर मैं चौंका। पहली बार ऐसा नम्बर देखा था। नम्बर आप सबको बता रहा हूँ (+431097)। कोई कुछ नहीं बोला। मैं हैला-हैलो करता रहा और वह जो कोई भी था, सांप की तरह फुंकारता रहा। सिर्फ पांच सैकिंड फुंकारने के बाद मोबाइल काट दिया गया।
 
कोई यकीन करे न करे, लेकिन यही परम सत्य है कि यहां न तो कभी धन का लोभ रहा और न मृत्यु का भय। सो, रजाई तानी (मई हो या जून, शिमला में रात को रजाई लेना ही पड़ती है) और खुशी-खुशी सोने का यत्न करने लगा। पर नींद थी कहां। मन प्रसन्न हो तो भी नींद नहीं आती। मैं प्रसन्न था कि 32 साल के पत्रकारिता जीवन में पहली बार किसी ने जान से मारने की धमकी दी। मैं अचानक ही खुद को ‘‘महान’’समझने लगा था। अब क्योंकि ‘‘महान’’ हो ही गया हूं, इसीलिए इस घटना को मुद्दा नहीं बनाऊंगा। न ही धमकी देकर गौरवान्वित करने वाले की शिकायत पुलिस में करूंगा और न ही मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल से सुरक्षा की मांग कर एरों गैरों में शामिल हूंगा। मैं जानता हूं। वह शराबी जरूर वीरभद्र सिंह का भक्त रहा होगा। वीरभद्र सिंह किसे प्रिय नहीं हैं। लेकिन सबुह दारू उतरने पर अब वह अवश्य ही पश्चाताप कर रहा होगा…….और यही उसका दण्ड है।
 
हिमाचल आजकल के प्रधान संपादक कृष्‍णभानु का यह लेख चैनल के फेसबुक वाल से साभार लिया गया है. 
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