सत्तर बरस के रमाशंकर चौरसिया फिलहाल पागलों की तरह यहां वहां भटक, टहल के जीवन के आखिरी दिन काट रहे हैं. उनका कोई बसेरा नहीं. उनकी संपत्ति, जायदाद पर इनकी बेटियां सपरिवार काबिज हो गई हैं और ये अपने ही घर से बेदखल किए जा चुके हैं. यह किसी एक रमाशंकर का मामला नहीं बल्कि गाजीपुर जिले में ही करीब 13 हजार से ज्यादा अति बुजुर्ग लोग अपनों के सताए हैं और अपनी ही धन-संपत्ति से भगाए हुए हैं.
केंद्र सरकार की पहल पर देश भर के बुजुर्ग माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण पोषण तथा कल्याण के लिए वर्ष 2007 में एक कानून बनाया गया. इसके तहत यह निश्चित किया गया कि बुजुर्गों का भरण पोषण न करने वाले बेटों, परिजनों, नातेदारों को 30 महीने की जेल भी हो सकती है. नि:सन्तान बुर्जुग की जिम्मेदारी उस नातेदार की होगी जो उसकी संपत्ति का वारिस बनेगा, ऐसी भी व्यवस्था की गई. इस कानून के तहत कई प्रदेशों में अपील अधिकरण का गठन भी हो चुका है और इसका अध्यक्ष जिला मजिस्ट्रेट रैंक के अधिकारी तय किये गये हैं. अपील अथारिटी को यह अधिकार दिया गया कि आवेदक बुजुर्ग को 90 दिन के अंदर मासिक-भत्त तय करा दिया जाए.
पर इस कानून का लाभ किसी को मिलता दिख नहीं रहा. अगर कानून बनने मात्र से ही सब कुछ अच्छा हो गया होता तो रमाशंकर चौरसिया यूं दर दर भटकने को मजबूर न होते. पर इस लोकतंत्र की खासियत है कि यहां बातें खूब होती हैं, कानून खूब बनते हैं, पर जमीनी स्तर पर क्या दशा है, इसे जानने की किसी को फुर्सत नहीं. संभव है कल को आपको भी अपने आसपास कोई रमाशंकर चौरसिया पागल सी हालत में दिख जाए, और आप मुंह फेरकर चल दें क्योंकि यह मामला आपके घर का नहीं.
बाजार, लोभ और निज स्वार्थ के इस दौर में कल को आप जब बुजुर्ग होंगे और आपके अपने ही आपको संपत्ति से बेदखल कर देंगे तो आपको जरूर महसूस होगा कि कहीं कुछ गड़बड़ जीवन में हो चुका है, जिसका संताप-पाप आप भोगने को मजबूर हैं. आइए, हम सब आप मिलकर इन बुजुर्गों के लिए लड़ें और इन्हें इनका अधिकार दिलाएं. सरकारों, अफसरों को मजबूर करें कि वे बुजुर्गों के बारे में ज्यादा संवेदनशीलता से सोचें और बुजुर्गों के आखिरी दिनों को शांत, सुगम और स्नेहिल बनाएं.
गाजीपुर से राकेश पांडेय की रिपोर्ट.