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जागरण में बंपर छंटनी (8) : अपनों को बचाने में जितेंद्र शुक्‍ला ने चंद्रमा पांडे की चढ़ा दी बलि

दैनिक जागरण, जमशेदपुर बडे़ संकट में पडता दिख रहा है। प्रबंधन के निर्देश के आलोक में आदमी कम करने के नाम पर संपादकीय प्रभारी जितेन्‍द्र शुक्‍ला निजी खुन्‍नस निकाल वैसे लोगों को बाहर का रास्‍ता दिखा रहे है जिन्‍हें सिर्फ अपने काम और संस्‍थान के नाम से मतलब है। नाकाबिल साबित हो चुके और चाटुकारिता का पर्याय बने अपने लोगों को बचाने के लिए वे जागरण के निष्‍ठावान लोगों की विदाई सुनिश्चित करा रहे हैं। पहले उच्‍च प्रबंधन को अंधेरे में रखकर राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार विजेता का तबादला आदेश जारी कराया और फिर जमशेदपुर के संस्‍थापक सम्‍पादकीय प्रभारी संत शरण अवस्‍थी द्वारा चयनित कामर्स डेस्‍क के इंचार्ज चंद्रमा पांडे को चलता कर दिया गया है।

दैनिक जागरण, जमशेदपुर बडे़ संकट में पडता दिख रहा है। प्रबंधन के निर्देश के आलोक में आदमी कम करने के नाम पर संपादकीय प्रभारी जितेन्‍द्र शुक्‍ला निजी खुन्‍नस निकाल वैसे लोगों को बाहर का रास्‍ता दिखा रहे है जिन्‍हें सिर्फ अपने काम और संस्‍थान के नाम से मतलब है। नाकाबिल साबित हो चुके और चाटुकारिता का पर्याय बने अपने लोगों को बचाने के लिए वे जागरण के निष्‍ठावान लोगों की विदाई सुनिश्चित करा रहे हैं। पहले उच्‍च प्रबंधन को अंधेरे में रखकर राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार विजेता का तबादला आदेश जारी कराया और फिर जमशेदपुर के संस्‍थापक सम्‍पादकीय प्रभारी संत शरण अवस्‍थी द्वारा चयनित कामर्स डेस्‍क के इंचार्ज चंद्रमा पांडे को चलता कर दिया गया है।

वैसे तो 55 की उम्र सीमा पार कर लेने को चंद्रमा पांडे की विदाई का आधार बनाया गया है, जबकि उनसे ज्‍यादा उम्र के एसके उपाध्‍याय अब भी मलाई काट रहे हैं। उपाध्‍याय उस तथाकथित फीचर डेस्‍क के प्रभारी है जिसका कोई अस्तित्‍व ही नहीं है। जमशेदपुर जागरण में फीचर का कोई काम होता ही नहीं। उपाध्‍याय का काम सिर्फ दफ्तर में बैठकर अखबार पढ़ना और संपादकीय प्रभारी के निजी कार्यों को निपटाना भर है। सबसे बड़ी बात यह कि जूनियर जागरण भी उनके अधीन नहीं है।

कहानी यही खत्‍म नहीं होती। शुक्‍ला जी वैसे लोगों को ज्‍यादा पसंद करते है जो दोहरी नौकरी करते हैं। जिनकी प्राथमिक निष्‍ठा दैनिक जागरण की जगह किसी अन्‍य विभाग अथवा संस्‍थान से अधिक है। उपाध्‍याय जी का उदाहरण इसका मुख्‍य आधार है। टाटा स्‍टील से स्‍वैच्छिक अवकाश लेने के बाद चाटुकारिता के बल पर दैनिक जागरण में उप संपादक बन बैठे हैं। अपनी उम्र की बदौलत बाजार में खुद को संपादक बताने से भी नहीं चुकने वाले उपाध्‍याय इस कड़ी में अकेले नहीं है। बल्कि जागरण छोड़कर दूसरे विभागों की निष्‍ठा बजाने वाले दो-दो कारपोर्रेट संवाददाता, महिला कालेज में शिक्षण कार्य करने वाले तथाकथित शिक्षा संवाददाता, एक ही रिपोर्ट को बार-बार प्रकाशित करने वाला गूगल चोर संवाददाता समेत कई अन्‍य विवादास्‍पद लोग भी शुक्‍ला जी की टीम का मुख्‍य आधार बने हुए हैं।

चंद्रमा पांडे की विदाई और उपाध्‍याय की मलाई के पीछे का सच काफी कड़वा है। शंत शरण अवस्‍थी सरीखे संपादक की खोज और अलोक मिश्रा के पैनी नजर की पंसद के बाद अर्थ डेस्‍क के इंचार्ज बने चंद्रमा पांडे की अचानक विदाई के कदम को कम से कम योग्‍यता के पैमाने पर सही नहीं ठहराया जा सकता। पर उम्र के आधार बाहर किये गये चंद्रमा पांडे वहीं उनके समकक्ष जागरण में महिमामंडित हो रहे उपाध्‍याय के साठियापन का एक नमूना देखिये। उन्‍होंने संगिनी के लिए एक लेख लिखा और संपादित भी किया। वह छपा भी। लेख में समाजसेवी डा. विनी षाडंगी के व्‍यक्‍ितत्‍व का जिक्र था। झारखंड के पूर्व मंत्री डा. दिनेश षाडंगी की पत्‍नी है डा. वि‍नी षाडंगी। लेकिन उपाध्‍याय ने इस लेख में प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष डा. दिनेशानंद गोस्‍वामी की पत्‍नी निरुपित किया विनी षाडंगी को। जागरण की साख को सीधे सीधे बट्टा लगाने और पूरे प्रसार क्षेत्र में संस्‍थान की भद्द पिटाने वाली इस गलत तथ्‍य भरी रिपोर्ट को छापने पर उपाध्‍याय जी को डांट तक नहीं पड़ी बल्कि उनका महिमामंडन ही किया गया। पर छंटनी की बली चढा दिये गये चंद्रमा पांडे।

एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.


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