Markandey Pandey : ये बाबा जी 97 साल के हैं, मुझसे निवेदन किये कि एक तीर्थ बाकी है मेरा, जहां चंद्रशेखर आजाद शहीद हुए थे, उस तीर्थ का दर्शन करा दो। वे बोलते गए… मैं जेल में था तो अंग्रेजों ने काफी मारा-पीटा, गाली दिया जब देश आजाद हुआ तो मैं जेल से निकल कर घर नहीं गया, साधु बन गया। मैने पूछा- पेंशन मिलती है फ्रीडम फाईटर वाली, तो बोले- मैं नहीं लेता।
मैंने पूछा- यात्रा कैसे करते हैं, तो बोले- महंत या बड़े साधु पैसा दे देते हैं। एक बार सवारी गाड़ी का टिकट लेकर एक्सप्रेस में चढ़ गया था तो टीटी ने मेरा झोला फेंक कर उतार दिया था। ये बाबाजी जब आजाद की प्रतिमा के सामने पहुंचे तो वहां लगभग घंटा भर गुमसुम बैठे रहे फिर बोले- पांचवा कुंभ है मेरा इलाहाबाद में। हमेशा यहां आता हूं। इनके (चंद्रशेखर आजाद) बारे में सुनकर ही हम लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ काम करना शुरु किया था। अच्छा- अब काली सड़क पर छोड़ दो, वहां एक साधु आलू उबाल कर रखे होंगे मेरे लिये, वही मेरा भोजन है, एक समय का।
Markandey Pandey के फेसबुक वॉल से.