देहरादून से चलने वाले नेटवर्क 10 न्यूज चैनल की हालत ऑन एयर होने के एक साल बाद ही पतली हो गई है। सैलरी के संकट से तंग आकर इस चैनल से पहले ही ज्यादातर लोग अलविदा कह चुके हैं अब इस चैनल में वही लोग काम कर रहे हैं जो या तो देहरादून से ताल्लुक रखते हैं या फिर वो लोग जिनका पैसा चैनल पर बकाया है। कर्मचारियों के जाने के बाद ये चैनल पहले ही बैसाखियों के सहारे चल रहा था अब तो हालात और भी खराब हो गई हैं।
खबर है कि चैनल का स्वीचर खराब हो गया है। स्वीचर के खराब होने के बाद चैनल ने लाइव प्रसारण करना बंद कर दिया है। अब जितने भी बुलेटिन जा रहे हैं वो सब ऑफ लाइन हैं। स्वीचर के खराब होने के बाद चैनल के कर्मचारी पहले तो एंकर शूट करते हैं उसके बाद वीडियो एडिटर खबरों के हिसाब से उसके एंकर को एडजस्ट करता है। एडिट किए हुए बुलेटिन को ही ऑन एयर किया जाता है। चैनल की औकात इस वक्त कैसी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रबंधन के पास स्वीचर को सही कराने तक के पैसे नहीं है। बताया जा रहा है कि इस स्वीचर को सही कराने में मोटा पैसा चाहिए और इसे ठीक कराने का जिम्मेदारी चैनल के मालिकों ने अधिकारी वर्ग के लोगों पर डाल दी है।
इन हालात से साफ जाहिर होता है कि अगले कुछ दिनों में नेटवर्क 10 पर ताला लगने वाला है। इस चैनल के साथ काम कर रहे कर्मचारियों की सबसे बड़ी परेशानी अपनी बकाया सैलरी को चुकता कराने की है। चैनल के कर्मचारियों से पता चला है कि एक कर्मचारी की 40 से 50 हजार सैलरी अभी तक पैंडिंग पड़ी है। चैनल प्रबंधन बकाया रकम चुकता करने को तैयार नहीं है। ऐसे में कर्मचारियों का कहना है कि अगर चैनल पर ताला लगता है तो सैलरी लेकर ही यहां से जाएंगे अन्यथा आंदोलन का रास्ता इख्तियार किया जाएगा।
आपको एक बार फिर से याद दिलाते हैं कि नेटवर्क 10 कैसे खड़ा हुआ और इसके डूबने के पीछे कौन लोग जिम्मेदार है। विधानसभा चुनाव 2012 के दौरान उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से नेटवर्क 10 नाम से एक चैनल की लॉंन्चिंग की तैयारी शुरू हुई। उस वक्त इस चैनल की कमान बसंत निगम को सौंपी गई थी। शिमला बाईपास के पास एक बड़ी से बिल्डिंग में चैनल का ऑफिस खोलने की तैयारी की गई। देहरादून में नेटवर्क 10 के बडे बड़े पोस्टर लगाए गए। इस तरह का माहौल बनाया गया मानो मीडिया जगत में नेटवर्क 10 कोई बड़ा करिश्मा करने वाला हो। चैनल प्रबंधन से नेटवर्क 10 को सच की हद तक ले जाने के दावे के साथ इसके मालिकों के पैसों को आधुनिक मशीनें लाने के नाम पर जमकर खर्च करवाया। पीसीआर से लेकर एडिटिंग, एडीटोरियल और कैमरा यूनिट तमाम सामान पर खूब पैसा खर्च किया गया। अशोक पांडे समेत दूसरे कई चेहरों की अगुवाई में विधानसभा चुनाव 2012 से पहले ही इस चैनल को जैसे तैसे ऑन एयर कर दिया गया।
यशवंत जी आपको बताना चाहूंगा कि शुरुआत में इस चैनल ने अपने स्ट्रिंगर तक को मोटी सैलरी पर रखा था। सैलरी के लालच में आकर ही दूसरे चैनल के साथ काम कर रहे रिपोर्टरों ने नेटवर्क 10 का दामन थाम लिया। जैसे ही विधानसभा चुनाव निपटे और कांग्रेस की सरकार बनी चैनल की हालत पतली होने लगी। चैनल के कर्ताधर्ता अशोक पांडे और इनकी टीम की पॉलिसी इस चैनल को ले डूबी। मुश्किल दरअसल इस बात की थी कि चैनल ने इन लोगों पर आंख मूंदकर भरोसा कर लिया था, जिसका खामियाजा अब उन्हें भुगतना पड़ रहा है। नेटवर्क 10 अब डूबता हुआ जहाज है। अब इस चैनल को शायद ही कोई डूबने से बचा पाएगा।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.