Vineet Kumar : आपको बीइए, एनबीए, एडिटर्स गिल्ड के दावे याद रहते हैं न? वो हर हाल में पत्रकारिता बचाने का काम करते हैं. एश्वर्या राय बच्चन के मां बनने की खबर कितनी देर और कैसे चलेगी, निर्देश जारी करने का काम करते हैं. आत्महत्या के लिए उकसानेवाले मीडियाकर्मी को रातोंरात बचाने का काम कर सकते हैं.
गोवाहाटी में यौन उत्पीड़न की मिनटों खड़े होकर फुटेज तैयार करनेवाले रिपोर्टर को नजरअंदाज करके बचा सकते हैं, उसे दोबारा नौकरी मिल जाने पर चुप मार सकते हैं. वो उमा खुराना फर्जी स्टिंग ऑपरेशन के प्रकाश सिंह को बेरोजगार न होने देने से रोक सकते हैं. वो जी न्यूज के दागदार संपादक सुधीर चौधरी की घुड़की खाकर चुप्प मार सकते हैं..
आप उनकी इन हरकतों से कन्फ्यूज हो जाते होंगे कि ये क्या नहीं कर सकते? कन्फ्यूज मत होइए, ये मालिक की इच्छा और दागदार मीडियाकर्मियों को बचाने के अलावे कुछ नहीं कर सकते. नहीं तो पहले आउटलुक और अब नेटवर्क 18 में जिस बेरहमी से छंटनी की गई, उस पर प्रेस रिलीज जारी नहीं करते!
xxx
मीडिया के जो कभी बड़े चेहरे हुआ करते थे, अब वो भूतपूर्व पदों का भारी मुकुट लेकर जहां-तहां सेमिनारों की शोभा बढ़ाने का काम कर रहे हैं. वो कहीं संज्ञा, कहीं सर्वनाम तो कहीं वाक्य विन्यास बचाने / सहेजने की नसीहतें देते नजर आते हैं.. वो हमारे नए मीडियाकर्मियों के रोल मॉडल बनने की कोशिश करते नजर आते हैं लेकिन बात जैसे ही पत्रकारिता पर आती है, मीडियाकर्मियों पर आती है, पता नहीं किस मानव हिन्दी व्यावकरण और रचना की किताबों में खो जाते हैं. ये सवाल हमेशा की तरह मौजूद रहेगा- श्रीमान आप भाषा के नाम पर दरअसल बचाना क्या चाहते हैं?
xxx
पुण्य प्रसून वाजपेयी, वरिष्ठ टीवी एंकर (आजतक) ने एक बार लिखा था- '''मीडिया एथिक्स पर जो जिस मासूमियत से बात की जाती है, वो दरअसल मुद्दों से लोगों को भटकाना है. सच तो ये है कि ढाई सौ से ज्यादा पत्रकार हैं जो कार्पोरेट के लिए काम करते हैं.''
—
नेटवर्क18 के एडिटर इन चीफ राजदीप सरदेसाई ने उदयन शर्मा स्मृति व्याख्यान में वक्तव्य दिया था- ''हमारे हाथ बंधे हुए हैं, हम मालिकों के हाथों मजबूर हैं. कार्पोरेट पूरे मीडिया पर हावी है और उसे अपने तरीके से चलाना चाहता है. आप रिपोर्टस पर दवाब इसलिए देखते हैं क्योंकि संपादक फैसले नहीं ले सकता.''
युवा मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार के फेसबुक वॉल से.