इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार से आरटीआई एक्ट के सुचारू अनुपालन हेतु की गई कार्यवाही के सम्बन्ध में जवाब दाखिल करने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्तिगण इम्तियाज़ मुर्तजा और डीके उपाध्याय की बेंच ने आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर और आरटीआई कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर द्वारा दायर पीआईएल में किया।
पीआईएल में कहा गया जहां आरटीआई एक्ट की धारा 4 के अनुसार प्रत्येक लोक सेवक के लिए अनिवार्य है कि वे अपने सभी रिकॉर्ड को सूचीबद्ध कर उन्हें कम्प्यूटरीकृत करें और इस एक्ट के पारित होने के 120 दिनों के अन्दर उन्हें प्रकाशित करे। वहीँ उत्तर प्रदेश सरकार में जमीनी हकीक़त इसके विपरीत जान पड़ती है।
इन दोनों ने उत्तर प्रदेश सरकार की वेबसाइट पर प्रदर्शित 81 विभागों का आरटीआई एक्ट की धारा 4(1)(बी) में निर्धारित 'अनिवार्य सूचना की आवश्यकता' की दृष्टि से अध्ययन किया और पाया कि लगभग किसी भी विभाग ने अपने कार्यों में प्रयुक्त नियम, नियमावली, निर्देश, मैनुअल और रिकॉर्ड आदि को इलेक्ट्रॉनिक स्वरुप में प्रस्तुत नहीं किया है। यह भी पाया गया कि ज्यादातर सूचनाएँ काफी पुरानी हैं। इसीलिए आज भी आरटीआई के सरकारी अभिलेखों में नसीमुद्दीन सिद्दीकी, नारायण सिंह, लालजी वर्मा तथा जगदीश नारायण राय मंत्री के रूप में दर्ज हैं, जबकि वे मार्च 2012 में पद छोड़ चुके हैं. इसी प्रकार काफी पहले रिटायर हो चुके अफसरों को कार्यरत दिखाया जा रहा है और बहुत पुराने सालों की बजट की जानकारी दी जा रही है।
अतः अमिताभ और नूतन ने अनिवार्य सूचना प्रदान करने सम्बंधित आरटीआई एक्ट के निर्देशों का पूर्ण अनुपालन कराये जाने की प्रार्थना हाई कोर्ट से की थी।