ये चित्र, फोटो-पत्रकार अभिनव राजन चतुर्वेदी का है, दैनिक जागरण,जनसंदेश से लेकर कई अखबारो में काम कर चुके हैं। इन्हें और इनके साथियों को अब से दो साल पहले, सितम्बर 2012 में गोरखपुर मेडिकल कालेज के नवोदित डाक्टरों ने मार-मार कर मरणासन्न कर दिया था। कानपुर मेडिकल कालेज में हुए बवाल के बाद डाक्टरों के आंदोलन का जो असर है, उसकी फोटो फेसबुक और अन्य माध्यमों में देख कर अब से दो साल पहले जिला अस्पताल के बेड पर लगभग बेसुध पड़े अभिनव का चेहरा मेरे दिमाग में घूम गया। सवाल ये उठता है कि कहाँ से आ जाते है हर छोटे से हूं-तूं के बाद झुण्ड के झुण्ड डॉक्टर लड़ने मारने को और वो भी हाकी-डंडो और कट्टो से लैस होकर। कितनी असुरक्षा की भावना इनमें होती है कि हर बात पर ये उग्र और आंदोलित हो जाते है।
जब ये पत्रकारों (गोरखपुर में), पुलिस और सत्ताधारी नेताओ (कानपुर में) से इतनी बुरी तरह उलझते है तो आम लोगों से ये कैसे बात करते होंगे। कानपुर में क्या हुआ, ये कोई नही जानता लेकिन गोरखपुर से लेकर पूरे प्रदेश और देश में लाखों मरीजों की जान पर बन आयी है। डॉक्टरों को इससे कोई मतलब नहीं, ये लड़ेंगे, बदला लेंगे। बदला न मिलने तक सबको बिना इलाज़ के मार देंगे। अरे अब से दो साल पहले ही गोरखपुर में भी यदि कोई यशस्वी यादव एसएसपी होता तो स्पष्ट सन्देश दे देता, क्या कसूर था उन पत्रकारो का, सिर्फ फोटो खीचने से मना करने पर न मानने पर जान से मार दोगे क्या? ये भगवान् बनते है, संवेदना तो है नही, चार लाठी खाए तो पढ़ाकू बच्चे बन गए। आज गोरखपुर में भव्य आंदोलन-प्रदर्शन हुआ, पर किसी को इससे मतलब नही कि किसी का बेटा, किसी का भाई, किसी का बाप इलाज़ के बगैर मर गए तो उसका जिम्मेदार कौन होगा। मरीजों से शोषक नही चूषक की तरह व्यवहार करेंगे, संवेदन-शून्य हो कर मरीजो और उनके परिजनो से व्यवहार करेंगे, हर किसी से उलझेंगे लेकिन जब दांव उल्टा पड़ेगा तो इन्सान होने की दुहाई देंगे। अरे अगर वास्तव में असली डॉक्टर हो तो एक स्वर में कहो हर मरीज का इलाज़ होगा, बेहतरीन होगा और इंसानो की लड़ाई में इंसान नही पिसेगा।
लेखक अजित कुमार राय से संपर्क उनके मो. 9450151999, 9807206652 या ईमेल [email protected] पर किया जा सकता है।