'आप' की सरकार बनाना एक ऐतिहासिक महत्व की बात होगी। यह एक आश्चर्य है कि राजनीति में अनुभवहीन और जनता के बीच से अपरिपक्क लोगों को उम्मीदवार बनाकर चुनाव में जीत हासिल कर शीला दीक्षित जैसी नेता को शिकस्त दे दी। नया इतिहास वही रचता है,जो जुनूनी होता है। अरविंद केजरीवाल एक जुनूनी और धुनी व्यक्ति हैं।
यह राजनीति में वैसा ही करिश्मा है जैसा अपने समय में जयप्रकाश नारायण ने किया था। उनकी बात दूसरी थी,क्योंकि उनका कद बहुत ऊंचा था और उनके पीछे सारे दल थे। केजरीवाल को सभी नौसखिया मानते थे। बात भी सही थी जिसने कभी चुनाव नहीं लड़ा , जिसने कभी राजनीति की गर्म हवा का झोंका नहीं सहा ,वह विजय के सबसे ऊंचे शिखर पर पहुंच जाये। अब वे सरकार बनाएंगे। इसके बाद ही शुरू होगा राजनीति का दांव-पेंच , व्यूह-रचना, जिसमें केजरीवाल भूल-भटक सकते हैं। बात सामने आ रही है। कांग्रेस ने बिना शर्त समर्थन देने का आश्वासन दिया था, वही अब शीला दीक्षित के जरिए कह रही है कि बिना शर्त देने की बात कांग्रेस ने नहीं कही थी। वह तो तब तक ही समर्थन देगी, जब तक 'आप' अपनी घोषणा के अनुरूप काम करती रहेगी। यानी कांटे की नोंक पर ओस का एक कतरा बनी रहेगी 'आप'।
कांग्रेस वादा कर के मुकरने में उस्ताद रही है। पहले भी दो-दो बार उसने सरकार गिराई है। केजरीवाल ने उस पर भरोसा करके गलत किया है। कांग्रेस कब क्या पैंतरा बदले यह कहना मुश्किल है। राजनीति में ईमानदारी और नैतिकता का रास्ता अख्तियार कर केजरीवाल ने भले एक मिसाल कायम की हो , लेकिन कांग्रेस के लिए तो राजनीति की वही पुरानी परिभाषा है कि राजनीति और जंग में नैतिकता-अनैतिकता और छल सब जायज होता है। कांग्रेस में राजनीति की शतरंज खेलने वालों की कमी नहीं है, जो कि सब कुछ उलट- पुलट दें , यह कहा नहीं जा सकता। केजरीवाल सरकार तो बनाने जा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस निश्चय ही अपनी हथेली की भाग्य- रेखा बदल देगी और 'आप ' हथेली से उसकी लाइफ लाइन धूमिल कर देगी। 'आप' के लिए सरकार बनाना एक आग का दरिया है, जिससे उसे तैर कर गुजरना होगा।
लेखक अमरेन्द्र कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं.