किसी भी नई सरकार के गठन के बाद यह परंपरा रही है कि उसे अपने चुनावी घोषणापत्र पर अमल के लिए कम से कम एक वर्ष का समय अवश्य दिया जाता है। विपक्षी दल भी इससे पहले सरकार पर टीका टिप्पणी करने से परहेज करते हैं। हिमाचल प्रदेश में भी इसी कारण वीरभद्र सरकार का एक वर्ष होने तक विपक्षी दल भाजपा ने संयम बरते रखा और ऐसा हमेशा से होता आया है।
लेकिन दिल्ली में आप(आम आदमी पार्टी) की सरकार को मीडिया और समस्त विपक्षी दलों ने एक सप्ताह तक का भी समय नहीं दिया। सब आप सरकार के पीछे पड़ गए हैं। दिल्ली में 28 दिसंबर को स्पष्ट हुआ कि वहां आप की सरकार बनने जा रही है। दो जनवरी को केजरीवाल सरकार ने विधानसभा में शपथ लेकर कार्यभार संभाला। नई सरकार को कुर्सी संभाले एक सप्ताह नौ जनवरी को होगा। लेकिन हमारा तथाकथित राष्ट्रीय इलैक्ट्रॉनिक मीडिया और तमाम विपक्षी दल सरकार को सांस तक नहीं लेने की फुरसत नहीं दे रहे। छोटी-मोटी बातों पर भी पूरे-पूरे दिन खबरें चल रही हैं।
कांग्रेस और भाजपा की बात तो समझ में आती है कि आप के कारण अब उनकी जान पर बन आई है। लेकिन इलैक्ट्रानिक मीडिया को क्या हो गया है। वह क्यों जनता में पत्रकारिता की फजीहत करने पर तुला हुआ है। मीडिया को किसी के हाथों में इतना भी नहीं खेलना चाहिए कि लोग उसे सरेआम बिकाऊ मीडिया… नियंत्रित मीडिया… कंट्रोल्ड मीडिया… रेग्युलेटेड मीडिया जैसे नामों से पुकारने लगें।
लेखक शिमला में रहते हैं, उनसे संपर्क [email protected] पर किया जा सकता है।