Connect with us

Hi, what are you looking for?

No. 1 Indian Media News PortalNo. 1 Indian Media News Portal

विविध

कॉन्ट्रैक्ट किलर है मीडिया, इसे एक्सपोज़ करना ज़रूरी है

क्या करें आदत से मजबूर हैं हम। सच कहने से पहले नफा-नुकसान का हिसाब नहीं आता हमें। हम यह नहीं सोच पाते कि मीडिया के खिलाफ बोलने का अंजाम क्या होगा? हमें तो देश को बचाना है। और देश को बचाने की राह में जो भी आएगा हम अपनी राजनीति, अपनी पार्टी तो क्या जान की एक पल भी परवाह किए बिना उससे टकरा जाएंगे। हमें राजनीति की यही परिभाषा आती है और हम ऐसी ही राजनीति करने के लिए वचनबद्ध हैं।

क्या करें आदत से मजबूर हैं हम। सच कहने से पहले नफा-नुकसान का हिसाब नहीं आता हमें। हम यह नहीं सोच पाते कि मीडिया के खिलाफ बोलने का अंजाम क्या होगा? हमें तो देश को बचाना है। और देश को बचाने की राह में जो भी आएगा हम अपनी राजनीति, अपनी पार्टी तो क्या जान की एक पल भी परवाह किए बिना उससे टकरा जाएंगे। हमें राजनीति की यही परिभाषा आती है और हम ऐसी ही राजनीति करने के लिए वचनबद्ध हैं।

 यहां दीपक तले अंधेरा है। पत्रकार तो मोहरा मात्र रह गया है पूंजी-पतियों व राजनीति के तथा कथित खिलाडि़यों का। मीडियाकर्मियों की पीड़ा को शब्द देने के इक्का-दुक्का नए मीडिया माध्यमों में यह दर्द समय-समय पर खुलकर सामने आता रहा है। यह मीडिया जगत का कड़ुआ सच है कि यहां 80 फीसदी पत्रकारों का जमकर शोषण होता है। उद्योगपतियों, राजनेताओं व मीडिया घरानों की सांठ-गांठ मीडिया को इतना ताकतवर बना देती है कि मीडिया के खिलाफ न तो नेता कभी कुछ बोल पाते हैं न ब्यूरोक्रेसी और न आम जनता। कारण स्पष्ट है कि मीडिया के खिलाफ बोलने का कोई इतना सशक्त माध्यम ही नहीं बचता जो देश भर में हृष्ट-पुष्ट हो चुके मीडिया माफिया की पोल खोल सके। यहां तारीफ करनी होगी भड़ास व भड़ास जैसे अन्य न्यू मीडिया माध्यमों की जो बिना संसाधनों के मीडिया के इस दुष्चक्र की सच्चाई आम जनता तक पहुंचाने के लिए निरंतर संघर्षरत हैं। मीडिया के घपलों-घोटालों को उजागर करने के लिए इनके खिलाफ कई झूठे मुकद्दमे तक अदालतों में विचाराधीन हैं। अपने 18 साल के पत्रकारिता करियर में मैंने स्टिंगर से लेकर मुख्य संपादक तक के अपने कार्यकाल में छोटे-बड़े सभी मीडिया समूहों की कार्यप्रणाली करीब से देखी, बल्कि यह कहना ज्यादा न्योचित होगा कि उसका हिस्सा रहा। सच पूछिए यहां कसाईयों से भी बदतर मानसिकता के लोग रहते हैं और देश की जनता की भावनाओं से क्रूरता से खेलते हैं। मीडिया में किसी की छवि को बनाने व खत्म करने का बाकायदा कांट्रेक्ट होता है। और इसी से कई मीडिया घराने पोषित ही नहीं होते बल्कि फलते-फूलते भी हैं।  

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केज़रीवाल ने मीडिया की भूमिका पर सवाल खड़े कर न सिर्फ साहसिक कार्य किया है बल्कि राजनीति के साथ मीडिया के भ्रष्टाचार को भी बेपर्दा करने के अपने इरादे मुखरता से जगजाहिर कर दिए हैं। मीडिया अरविंद के जिन बयानों पर हो हल्ला मचा रहा है वास्तव में हर मीडियाकर्मी अरविंद के बयानों की सच्चाई को न सिर्फ जानता है बल्कि प्रतिदिन मलिकों और नेताओं के इस गठबंधन की प्रताड़ना भी सहता है। देश के हजारों मीडिया कर्मी हर साल मीडिया के इसी रवैए के कारण नौकरी छोड़ कर कोई और व्यवसाय अपनाने को मज़बूर हैं।

आशुतोष व अशीष खेतान जैसे अनुभवी पत्रकारों ने संजय सिंह व दलीप पाण्डेय की मौजूदगी में, बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रैंस कर, अरविंद के मीडिया की कार्यप्रणाली को उजागर करते बयानों का समर्थन कर, पार्टी की नीतियों व उसके मज़बूत इरादों को स्पष्ट कर दिया है। मीडिया की कारगुज़ारियों व मीडिया के घोटालों को देश के सामने लाने की प्रतिबद्धता इससे स्पष्ट परिलक्षित होती है। आइए आपकी क्रांति के माध्यम से हम समझते हैं इस संपादकीय व प्रमोटर्स की तनातनी व मीडिया पर बढ़ते दबावों को।

प्रमोटर्स कौन होतो हैं?
यह अधिकांश मामलों में मीडिया प्रतिष्ठान के मालिक या शेयर होल्डर होते हैं। किसी-किसी प्रतिष्ठान में यह सशर्त इन्वेस्टर्स भी होते हैं।

क्या है मीडिया घरानों व राजनैतिक दलों की सांठ-गांठ ?
इस सांठ-गांठ को समझने के लिए सबसे पहले मीडिया प्रमोटर्स व संपादकीय प्रभाग के बीच के रिश्तों को समझना होगा। अधिकांश मीडिया प्रतिष्ठान पर प्रमोटर्स यही सोच कर पैसा लगाता है कि वह उसके जायज-नाजायज कामों पर पर्दा डालने का काम करे या फिर जब वह किसी विवाद में फंसे उस दौरान वह उसका सच्चा-झूठा पक्ष जनता के समाने रख कर विवाद पर मिट्टी डाले। किंतु इससे भी बढ़ कर प्रमोटर्स मीडिया प्रतिष्ठान से अपेक्षा करता है कि वह राजनेताओं से मधुर संबंध बनाने में उसकी मदद करे। उसके काम निकालने के लिए भूमिका तैयार करे। प्रामोटर्स या इन्वेसटर्स अपना काम निकालने के लिए राजनेताओं या अधिकारियों पर संपादकों को दबाव बनाने के लिए भी मज़बूर करते हैं। संपादक अधिकांश मामलों में क्यूंकि मीडिया समूहों में मुलाज़िम होते हैं इसी लिए वे इस प्रकार के अनावश्यक दवाब सहने के लिए विवश होते हैं कभी नौकरी बचाने के लिए व कभी प्रमोशन पाने या फिर मालिकों के करीबी बने रहने के लिए।

चुनावों के दौरान का खेल।
चुनावों के दौरान राजनैतिक दल अपने-अपने पक्ष में मीडिया समूहों को खबरें दिखाने अथवा लिखवाने के लिए विज्ञापनों के रूप में मोटी धनराशि देते हैं। इसका केवल कुछ प्रतिशत रिकार्ड में लिया जाता है जबकि बाकी तमाम धन दो नम्बर में मीडिया को दिया जाता है। यह सब कुछ पर्दे के पीछे का बड़ा खेल है। अरविंद केज़रीवाल द्वारा मीडिया की जांच से इसी लिए मीडिया बौखला गया है। यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे सब जानते हैं मगर कोई इस पर कुछ कहने के लिए तैयार नहीं। क्यूंकि इसी से मीडिया की दुकान और नेताओं की नेतागिरी चलती है। प्रमोटर्स के स्वार्थ भी इसी गठबंधन के बीच निहित होते हैं। कुल मिला कर मीडिया व नेता आम जनता को गुमराह कर अपनी रोटियां सेंकते हैं किंतु सच्चाई जनता तक कभी नहीं पहुंच पाती। अरविंद के इस बयान ने मीडिया घरानों की चूलें हिला दी हैं। आम आदमी पार्टी मीडिया के इस घोटाले को बेपर्दा करने के प्रति वचनबद्ध है।

क्या है पेड मीडिया ?
खबरों के रूप में दिखाई या लिखी जाने वाली खबरें पेड न्यूज़ हैं। जो समाचार कोई नेता या पार्टी अपनी छवि सुधारने तथा अपने प्रतिद्वंदी की छवि को बिगाड़ने के लिए लिखवाता या दिखवाता है तथा मीडिया पैसों के, पद के अन्य किसी लाभ के लालच में इस कृत्य को खबर के रूप में प्रस्तुत करता है यही पेड न्यूज़ है। पेड़ न्यूज़ को आप झूठा समाचार, खरीदा हुआ समाचार या षड़यंत्र के तहत तैयार किया गया समाचार कह सकते हैं। पेड न्यूज़ में चैनल या अखबार रैलियों के दौरान कम भीड़ को अधिक दिखाना, झूठा ओपिनियन पोल किसी के पार्टी के पक्ष में करवा कर जनता का मत बदलने का प्रयास करना। झूठा स्टिंग आपरेशन कर किसी पार्टी या नेता की छवि खराब करना। प्री-प्लॉन्ड इंटरव्यू इत्यादि तैयार करवाना शामिल है। जनता अखबारों व चैनलों पर दिखाई जाने वाली खबरों को सच मान कर उस पर यकीन करती है तथा उसी से अपना मन किसी पार्टी के पक्ष या विपक्ष में बनाती है मगर जबकि यह सब कुछ वास्तविकता से कोसों दूर पैसे के लिए खेला गया मीडिया का खेल होता है। तो यह जनता को गुमराह करने वाला जघन्य अपराध ही है।

मीडिया के आगे नहीं झुकेंगे।
हमें मालूम है कि राजनीति में मीडिया के साथ मधुर संबंधों की अपनी महत्ता एवं भूमिका है मगर सत्ता के लालच में हम सच के साथ समझौता नहीं कर सकते। मीडिया का वास्तविक चेहरा जनता के सामने लाना जरूरी है और यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। हम जानते हैं कि मीडिया के इस खतरनाक खेल को कोई और सामने लाने की कभी हिम्मत नहीं कर सकेगा इसी लिए आम आदमी पार्टी अपने उन बयानों पर पूरी तरह कायम है। और इस भ्रष्टाचार को भी समूल नष्ट करने के प्रति वचनबद्ध है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

 

लेखक गोपाल शर्मा वरिष्ठ पत्रकार और आम आदमी पार्टी के मुखपत्र 'आप की क्रांति' के मुख्य संपादक हैं।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

… अपनी भड़ास [email protected] पर मेल करें … भड़ास को चंदा देकर इसके संचालन में मदद करने के लिए यहां पढ़ें-  Donate Bhadasमोबाइल पर भड़ासी खबरें पाने के लिए प्ले स्टोर से Telegram एप्प इंस्टाल करने के बाद यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Advertisement

You May Also Like

विविध

Arvind Kumar Singh : सुल्ताना डाकू…बीती सदी के शुरूआती सालों का देश का सबसे खतरनाक डाकू, जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गयी थी…

सुख-दुख...

Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा।...

विविध

: काशी की नामचीन डाक्टर की दिल दहला देने वाली शैतानी करतूत : पिछले दिनों 17 जून की शाम टीवी चैनल IBN7 पर सिटिजन...

प्रिंट-टीवी...

जनपत्रकारिता का पर्याय बन चुके फेसबुक ने पत्रकारिता के फील्ड में एक और छलांग लगाई है. फेसबुक ने FBNewswires लांच किया है. ये ऐसा...

Advertisement