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‘आप’ की बढ़ती लोकप्रियता से मोदी के ‘मतवाले’ बेचैन!

दिल्ली की चुनावी जीत से राजनीतिक ऊर्जा लेकर आम आदमी पार्टी (आप) के हौसले एकदम बढ़ गए हैं। इस पार्टी ने लोकसभा चुनाव में कारगर राजनीतिक हस्तक्षेप का लक्ष्य बनाया है। इसी के तहत ये नवोदित पार्टी तेजी से अपना राजनीतिक दायरा बढ़ाने में जुट गई है। उसकी कोशिश है कि विभिन्न क्षेत्रों के तमाम जाने-माने चेहरे चुनावी राजनीति के लिए उनके कारवां में जुड़ जाएं। शुरुआती दौर से ‘आप’ नेतृत्व को भारी समर्थन मिलने लग गया है। दर्जनों जाने-माने लोग टोपी पहनकर ‘आप’ का हाथ मजबूत करने के लिए खुलकर सामने आ गए हैं। दिल्ली ही नहीं, पूरे उत्तर भारत में ‘आप’ के लिए भारी उत्साह सड़कों पर भी दिखाई पड़ने लग गया है। ऐसे में, भाजपा और कांग्रेस जैसे दलों के अंदर भी भारी राजनीतिक दबाव महसूस किया जा रहा है।

दिल्ली की चुनावी जीत से राजनीतिक ऊर्जा लेकर आम आदमी पार्टी (आप) के हौसले एकदम बढ़ गए हैं। इस पार्टी ने लोकसभा चुनाव में कारगर राजनीतिक हस्तक्षेप का लक्ष्य बनाया है। इसी के तहत ये नवोदित पार्टी तेजी से अपना राजनीतिक दायरा बढ़ाने में जुट गई है। उसकी कोशिश है कि विभिन्न क्षेत्रों के तमाम जाने-माने चेहरे चुनावी राजनीति के लिए उनके कारवां में जुड़ जाएं। शुरुआती दौर से ‘आप’ नेतृत्व को भारी समर्थन मिलने लग गया है। दर्जनों जाने-माने लोग टोपी पहनकर ‘आप’ का हाथ मजबूत करने के लिए खुलकर सामने आ गए हैं। दिल्ली ही नहीं, पूरे उत्तर भारत में ‘आप’ के लिए भारी उत्साह सड़कों पर भी दिखाई पड़ने लग गया है। ऐसे में, भाजपा और कांग्रेस जैसे दलों के अंदर भी भारी राजनीतिक दबाव महसूस किया जा रहा है।

दिल्ली की गद्दी संभालने के बाद ‘आप’ नेतृत्व लगातार दिल्ली सरकार के जरिए लोकप्रिय कदम उठाने में लगा है। इस पार्टी ने सादगी और खांटी ईमानदारी को अपना सबसे मजबूत राजनीतिक हथियार बना लिया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित उनके सभी मंत्री यथासंभव सादगी को अपना रहे हैं। इन लोगों ने शुरुआती दौर से ही सरकारी तंत्र के तमाम तामझाम को किनारे लगा दिया है। संदेश यही दिया जा रहा है कि अब राष्ट्रीय राजधानी में आम जनता की सरकार आ गई है। ऐेसे में, सारे काम पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता से किए जाएंगे। सरकार ने शासन तंत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी मुहिम शुरू कर दी है। भ्रष्टाचार निरोधक सरकारी तंत्र को चौकस कर दिया गया है। मुख्यमंत्री ने ऐलान किया है कि अब दिल्ली की आम जनता एंटी करप्शन इंस्पेक्टर की भूमिका में रहेगी। भ्रष्टाचार के खिलाफ इस कारगर मुहिम के शुरू हो जाने से यह मुद्दा एक जनांदोलन में बदल गया है। इसका पूरा श्रेय मुख्यमंत्री को मिल रहा है।

सरकार ने प्रयोग के तौर पर शनिवार को जनता दरबार का आयोजन किया था। लेकिन, उम्मीद से ज्यादा भीड़ उमड़ आई, तो अव्यवस्था फैल गई थी। इसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा था कि वे तीन दिन बाद दोबारा व्यवस्थित ढंग से जनता दरबार शुरू करा देंगे। लेकिन, सोमवार को तमाम मंत्रणा के बाद सरकार को यह समझ में आ गया कि जनता दरबार में भीड़ को नियंत्रित करना संभव नहीं है। इस बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय को खुफिया एजेंसियों ने इस आशय की खबरें भी दे दीं कि जनता दरबार जैसे आयोजनों में भारी भीड़ के बीच कुछ अराजक तत्व मुख्यमंत्री पर प्राणघातक हमला कर सकते हैं। ऐेसे में, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को समझाया कि वे लोकप्रियता पाने के चक्कर में इस तरह के आयोजनों से बचें।

सूत्रों के अनुसार, जनता दरबार को लेकर तमाम तरह की परेशानियों को देखते हुए अंतत: इस व्यवस्था को ही रद्द करने का फैसला किया गया। सरकार ने कह दिया है कि अब जनता दरबार की योजना रद्द कर दी गई है। क्योंकि, भारी भीड़ के अंदर सभी मामलों की सुनवाई कर पाना व्यवहारिक नहीं लगता। यह जरूर है कि मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया है कि वे हर शनिवार को आम जनता से खुले तौर पर मिलेंगे। उनकी कोशिश यही रहेगी कि संचार के विभिन्न माध्यमों से लोगों की अर्जियां सरकार तक पहुंचे। इन सब अर्जियों पर समय से उचित निस्तारण करने का वायदा भी किया गया है। सरकार के इस संकल्प के बाद भी भाजपा नेतृत्व ने जनता दरबार के बदले फैसले को लेकर केजरीवाल सरकार की तीखी आलोचना की है। पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि सरकार के ताजा फैसले से ‘आप’ नेतृत्व की पोल खुलने लगी है। साबित हो गया है कि सस्ती लोकप्रियता बटोरने के लिए यह सरकार तमाम हथकंडे अपना रही है। इस सरकार को समझ में नहीं आ रहा कि जनता को किए गए लंबे-चौड़े दावों पर अमल कैसे किया जाए?

कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व ने भी धीमें स्वरों में सरकार की कार्यशैली की आलोचना शुरू की है। लेकिन, इनके स्वरों में कटाक्ष का ही पैनापन है। जबकि, भाजपा के नेता तो बौखलाहट भरे बयान दे रहे हैं। पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर कहते हैं कि ‘आप’ नेतृत्व की वास्तविकता अब सामने आने लगी है। भाजपा पहले से ही इस पार्टी को कांग्रेस की ‘बी’ टीम मानती रही है। शुरुआती दौर से ही केजरीवाल सरकार के कामकाज से यह बात सही साबित होने लगी है। ये लोग अपनी सादगी और ईमानदारी के नगाड़े ज्यादा बजा रहे हैं। कुछ इस तरह से इसे प्रचारित किया जा रहा है, मानो ‘आप’ के अलावा और कोई खांटी ईमानदारी की राजनीति करता ही नहीं है। जबकि, यह बात सरासर गलत है।

सादगी और ईमानदारी के राजनीतिक एजेंडे को लेकर अब भाजपा नेतृत्व ने होड़ की राजनीति शुरू कर दी है। इसकी शुरुआत रविवार को चर्चित नेता नरेंद्र मोदी ने गोवा रैली से की थी। उन्होंने इस रैली में कहा था कि यह न समझा जाए कि सादगी और ईमानदारी के पुतले नई पार्टी (आप) के लोग ही हैं। जबकि, हकीकत यह है कि भाजपा में लाखों कार्यकर्ता ऐसे हैं, जो खांटी ईमानदारी से समाज की सेवा में जुटे रहते हैं। ये लोग अपनी ईमानदारी के लिए प्रचार का डंका भी नहीं बजाते। उन्होंने इस मौके पर गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर का खास तौर पर जिक्र किया। यही कहा कि पार्रिकर की सादगी और ईमानदारी का जज्बा गोवा में बच्चा-बच्चा जानता है। जबकि, दिल्ली में इस मुद्दे पर चर्चा उनकी होती है, जो कि इन दिनों टोपी लगाकर ईमानदारी की बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं। जाहिर है, उनका यह कटाक्ष ‘आप’ नेतृत्व के लिए था। उन्होंने यह भी कह डाला कि केवल टीवी स्क्रीन पर दिखने से ही परिवर्तन की राजनीति नहीं हो जाती।

मोदी की इस टिप्पणी को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच भी सोमवार को राजनीतिक रार काफी बढ़ गई। कांग्रेस के महासचिव शकील अहमद और दिग्विजय सिंह ने मोदी की जमकर खबर ली है। अपने ट्विटर संदेश में शकील अहमद ने यह सवाल उछाला कि आखिर, बड़ी-बड़ी बातें करने वाले मोदी को ‘आप’ से इतना डर क्यों लगने लगा है? दिग्विजय सिंह ने अपने ट्विटर संदेश में मोदी की कई टिप्पणियों को सरासर अभद्र करार किया है। दरअसल, गोवा में मोदी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री जयंती नटराजन पर गंभीर आरोप उछाला। कह दिया कि पिछले दिनों तक दिल्ली में उद्योगपतियों को ‘जयंती टैक्स’ देना पड़ता था। इसी के बाद पर्यावरण मंत्रालय से कोई फाइल आगे बढ़ती थी। उल्लेखनीय है कि जयंती नटराजन पर्यावरण मंत्रालय ही संभाल रही थीं। मोदी की चुटकी सीधे तौर पर जयंती पर हमला था। इसी को लेकर दिग्विजय सिंह ने नाराजगी जताई है।

बात केवल बड़े नेताओं तक ही सीमित नहीं रही, संघ परिवार के तमाम घटक ‘आप’ नेताओं के खिलाफ पिल पड़े हैं। क्योंकि, मोदी के तमाम ‘मतवालों’ को यह आशंका हो गई है कि कहीं ‘आप’ का बढ़ता तूफानी राजनीतिक दायरा मोदी का निर्णायक रास्ता रोक न ले। देखने में यही आया है कि पिछले कई दिनों से मोदी के बजाए मीडिया का फोकस केजरीवाल एंड कंपनी की तरफ हो गया है। अब लगातार इस आशय की खबरें आ रही हैं कि ‘आप’ के उम्मीदवार कांग्रेस और भाजपा के सभी दिग्गज नेताओं से चुनावी मुकाबले करने वाले हैं। ‘आप’ के कोर ग्रुप ने फैसला कर लिया है कि पार्टी गुजरात की सभी संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इस पार्टी का सदस्यता अभियान सबसे ज्यादा गुजरात में तेज है। यहां तक कि अहमदाबाद में एक सप्ताह के अंदर ही इस पार्टी के करीब चार लाख सदस्य बन गए हैं।

यूं तो इस पार्टी ने लक्ष्य रखा है कि 26 जनवरी तक ही पार्टी सदस्यता का अभियान तेज करके एक करोड़ का आंकड़ा छू लेगी। राजनीतिक हल्कों में माना जा रहा है कि यदि इस पार्टी ने इतनी अवधि में ही सदस्यता का इतना बड़ा लक्ष्य हासिल कर लिया, तो यह पार्टी दोनों राष्ट्रीय दलों के लिए एक बड़ी चुनौती जरूर बनेगी। रविवार को ही ‘आप’ के नेता कुमार विश्वास ने राहुल के संसदीय क्षेत्र अमेठी में मुकाबले का खूंटा गाड़ दिया है। स्थानीय कांग्रेसियों के तमाम विरोध के बावजूद कुमार विश्वास की रैली काफी सफल रही। यहां पर कुमार ने कांग्रेस की वंशवादी राजनीति के खिलाफ हुंकार लगाई है। ‘आप’ सूत्रों के अनुसार, नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी ‘आप’ अपने किसी मजबूत नेता को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी में है। इस मामले में एक पेंच यही फंसा है कि खुद मोदी किस संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं? इसका खुलासा अभी नहीं हुआ है।

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सोमवार को नई दिल्ली में ‘आप’ के नेता प्रशांत भूषण की प्रेस कॉन्फ्रेंस में संघ परिवार से जुड़े कुछ लोगों ने भारी हंगामा कर दिया। हिंदू सेना नाम के संगठन ने प्रशांत भूषण को देशद्रोही करार किया। इन लोगों ने तोड़फोड़ की कोशिश की। दरअसल, ये लोग प्रशांत भूषण के एक विवादित बयान को लेकर नाराज हैं। जाने-माने वकील प्रशांत ने कश्मीर में आंतरिक सुरक्षा मुद्दे पर रायशुमारी कराने का विचार व्यक्त किया था। इसको लेकर ‘आप’ नेतृत्व ने भी किनारा कर लिया है। इसके बाद भी विवाद शांत नहीं हुआ। इस विवाद की आग बुझी भी नहीं थी कि इस बात की चर्चा हो गई कि नक्सलवाद के मुद्दे पर प्रशांत ने एक और विवादित राय जाहिर की है। इसी को लेकर प्रशांत अपनी सफाई देने के लिए मीडिया कॉन्फ्रेंस कर रहे थे, इसी में हमला कर दिया गया।

पिछले तीन दिनों से भाजपा नेतृत्व का कोर ग्रुप भी अनौपचारिक तौर पर इस मंत्रणा में जुटा है कि ‘आप’ के नए राजनीतिक दबाव से कैसे उबरा जाए? इसको लेकर संघ परिवार के सभी घटकों को मोर्चे पर जुटाने की तैयारी हुई है। इसी अभियान के तहत जिला इकाईयों तक में यह प्रचार तेज कर दिया है कि ‘आप’ की राजनीति को कांग्रेस के नेता एक रणनीति के तहत ही आगे बढ़वा रहे हैं। ताकि, नरेंद्र मोदी का रास्ता रोका जा सके। पूर्व आईपीएस अफसर किरण बेदी ने तो खुलकर कह दिया है कि ‘आप’ को वोट देने से कांग्रेस की ही मदद होगी। ऐसे में, लोग इस खतरे को अच्छी तरह पहचान लें। उल्लेखनीय है कि अन्ना आंदोलन के दौर में टीम केजरीवाल के साथ किरण बेदी भी साथ थीं। लेकिन, अब इनके रास्ते अलग-अलग हो गए हैं। दलीय राजनीति के खिलाफ उंगली उठाने वाली किरण बेदी अब भाजपा समर्थक हो गई हैं। वे खासतौर पर मोदी-मुहिम का हिस्सा बनने जा रही हैं। ऐसे में, उन्होंने ‘आप’ को वोट न देने की अपील कर डाली है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में ‘आप’ की राजनीतिक मुहिम के खिलाफ संघ परिवार के कार्यकर्ता और ज्यादा आग उगलते नजर आएंगे।

 

लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।

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