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आपको लोगों ने ईमानदार समझा लेकिन आप तो बड़े वो निकले : अजीत अंजुम

 

Ajit Anjum: हमने कब कहा कि हम ईमानदार हैं …आपको लोगों ने ईमानदार समझा लेकिन आप तो बड़े वो निकले ……हमने कब कहा कि हम सरोकारी हैं लेकिन आप तो सरोकारों के खजांची बनते थे …फिर एक ही घंटे में जिंदगी भर की जमा पूंजी क्यों लुटा बैठे ……….
 
Purushottam Singh: jaane dijiye sar bhram tuta….subh se pata nahi kanha much chhipaye baithe hai……..hahahahhahaha
 
Manoj Shrivastav: Sir….chhor dijie!
 
Abhishek Tiwari: Wo Isliye Ki Wo Jamaa Kiye Hi The Lutaane Ke Liye . . . . . . Khud To Dube Pure Kaaynat Par Chhite Laga Baithe . . . . . .
 
Rahul Chauhan: Kuch jyada hi naraz lag rahe hain apne dost se..
 
Ravish Kumar: ये लाइन थोड़ी गड़बड़ है सर आपकी । पर्सनल बना रहे हैं क़्या । थोड़ा इंतज़ार करना चाहिए । मतलब कहीं आप खुद को जस्टिफाई तो नहीं कर रहे हैं । आपका इरादा भले न ऐसा हो लेकिन मुझे ऐसा ही लगा । क्या इस नतीजे पर पहुँचा जाए कि हम सब ढोंगी हैं , जो कि हैं भी , ये साबित होना भी चाहिए लेकिन इससे सवाल हल्के हो जाते हैं । मुझे ऐसा लगा ।
 
Ajit Anjum: रवीश , बात यहां मुद्दे की है , अगर आप जमाने भर को कठघरे में खड़ा करके सवाल पूछते हैं …अगर दूसरों को रीढ़ विहीन घोषित करते हुए खुद को सीधे खड़े रखने और दिखने की कोशिश करते हैं और अगर आप वही करते हैं, जो बाकी कर रहे हैं तो जवाब तो आपको भी देना चाहिए…. ( जब मैं आप कह रहा हूं तो जाहिर है आपको नहीं कह रहा हूं….)
 
Ajit Anjum: सवाल हल्के क्यों हो जाते हैं रवीश ……ये तो ज्यादा बड़े सवाल हैं….जो पूछे जाने चाहिए ….जो सबसे सवाल पूछते हैं , जो सबको सवालों के घेरे में रखते हैं , जो नैतिकता और सरोकार की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठकर परोपदेशे पाण्डित्यं की मुद्रा में होते हैं , उनसे क्यों नहीं सवाल पूछे जाने चाहिए ….आपने क्यों नहीं तय की थी अपनी लक्ष्मण रेखा ……और अगर आप भी इतनी ही मजबूर हैं तो कहिए कि जब तक मजबूरियों के इम्तेहान से आप गुजरे नहीं थे , तभी तक सरोकारी थे……..
 
Ajit Anjum: और हां …ये मैं किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं कह रहा हूं . अगर आप किसी व्यक्ति से जोड़कर मेरे कमेंट को देख रहे हैं , उसके लिए आप खुद जिम्मेदार हैं …………मैंने किसी का नाम नहीं लिया ….मेरी भावनाओं को कोई चेहरा मत दीजिए …..निराकार में कोई आकार मत खोजिए ……..
 
सिंह उमेश: SIR EK KADAM AAGE BHI HAI DEKHIYE AUR VICHAR KARIYE……HUM WAHIN DOSHI HAIN JAHAN GUNJAISH HAI YAHAN TO HUM MAANNE KO HI NAHI TAIYAR HAIN AUR NA MANNE KI KOI DAWA NAHI SIVAY NEECHE LIKHI BATON KI YAHI EK DAWA HAI JO KARGUJAR HAI SIR 
उम्मीद की सहर होते ही शाम होती है, खुदा ये सल्तनत तेरी है
हर दफ़े उम्मीद करता हूँ तेरे सहर का, क्या हर दफ़े गलती मेरी है
सजाया मुझे जख्मों में अब नासूर करते हो, क्या यही रज़ा तेरी है
गुनाहे अजीम भी पसंद है ग़र तुझे ,गुनाहगार तुम हो, तो क्या तोहमतें ही मेरी है__
उमेश सिंह
 
Dhiraj Bhardwaj: जगजीत सिंह की एक गज़ल है…
देखा जो आइना तो मुझे सोचना पड़ा,
खुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा..
 
Praveen Dube: media guide lines…need of the hour….lakshman rekha must be defined…for all sides….
 
 
Umashankar Singh: ख़बर के रूप आने वाले भ्रष्टाचार से जुड़े हर मामले में मीडिया ने अगर 'थोड़ा ठहर कर', 'कानून-सम्मत फैसले का इंतज़ार कर', या 'किसी भी आरोपित की व्यक्तिगत मान-मर्यादा' का ख़्याल करने का सऊर और संयम दिखाया होता तो इसके नवीनतम लाभार्थियों में नितिन गडकरी भी होते। इस ख़ास गिरफ्तारी के मौक़े पर यही लाभ 'मीडियाकर्मियों' को भी मिलता। लेकिन 'दूसरों' से जुड़ी ख़बर बांचने के टाईम में हम 'मीडिया के अरविंद केजरीवाल' बन जाते हैं और 'ख़ुद' से जुड़ी ऐसी सच्चाई आने पर कानून मंत्री की तरह बात करने की कोशिश करते हैं। वैसे तथ्यपरक रिपोर्टिंग और भावनाप्रधान फेसबुक पोस्टिंग में कुछ तो अंतर होता है। 🙂
 
(वरिष्ठ पत्रकार और न्यूज़-24 के संपादक अजीत अंजुम की फेसबुक वॉल से साभार)
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