जी हां, आप के सामने जो सवाल खड़ा है वो कोई कोरी बकवास नहीं है। बल्कि हक़ीक़त है। अन्ना की छवि एक साफ़ और ईमानदार समाज सुधारक की है जिस पर वो लीपा-पोती करने में जुटे हैं, नहीं तो उनको क्या पड़ी है ममता का आँचल पकड़ने की। क्या अन्ना ममता बनर्जी के बारे में नहीं जानते हैं, कि दीदी यूज-एंड-थ्रो की नीति पर चलती हैं। अगर नहीं तो जान लें, वर्ना दीदी इनको भी यूज किये हुए कंडोम की तरह किसी कूड़ेदान में फेंक देंगी। कुछ लोगों का नाम गिनवा दे रहा हूँ अन्ना चाहे तो पता लगा लें और फिर भरोसा करें।
आप लोगों को शायद पता नहीं होगा जब ममता बनर्जी बंगाल में युवा कांग्रेस की अध्यक्षा थीं उस वक़्त इनकी तानाशाही से प्रदेश कांग्रेस के नेता इस कदर नाखुश थे की इनको पार्टी में दरकिनार कर दिया गया था। पंकज बनर्जी उस वक़्त इनके सबसे बड़े मददगार के रूप में सामने आए, उन्होने ममता को हौसला दिया, बाद में सुदीप बंदोपाध्याय आये, इन लोगों ने तृणमूल कांग्रेस को रोपा। बाद में पूर्व केंद्रीय मंत्री अजित पांजा भी ममता के साथ आए।
आज पंकज बनर्जी किस हाल में हैं ये किसी को पता नहीं। सुदीप शायद अपना अतीत नहीं भूले होंगे जब उन्हें ममता को बुरा-भला कहते हुए कांग्रेस में वापस जाना पड़ा। वे आज समझौते की बेहतर ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं। अजित पांजा रोते कलपते ममता की उपेक्षा और यूज एंड थ्रो की राजनीति का शिकार होकर दुनिया से विदा हो गए। इस तरह के कई उदहारण हैं। ताज़ा उदहारण विजय उपाध्याय का है। सिंगुर मुद्दे पर ममता के रिकार्ड अनशन में उनकी पार्टी के नेता भाग खड़े हुए, लेकिन विजय अंत तक ममता के साथ अनशन में शामिल रहे। विजय समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़कर ममता का साथ निभाते आ रहे हैं, लेकिन आज भी ये हाशिए पर हैं।
जाहिर सी बात है जिस ईमानदारी के आधार पर अन्ना ममता को देश की बागडोर देना चाहते हैं वो जरा ममता के परिवार के लोगों और मुकुल राय सारिखे नेताओं की घोषित और अघोषित संपत्ति पर नज़र डालें और तय करे की ईमानदारी की परिभाषा क्या हो। अगर अन्ना इसमें चूकते हैं तो केजरीवाल की तरह इनको भी एक बड़ा झटका लगाने जा रहा है क्यूंकि ममता ममता हैं उनकी नीति है यूज एंड थ्रो।
लेखक नवीन कुमार रॉय से संपर्क ईमेल [email protected] द्वारा किया जा सकता है।