रुद्रपुर (उत्तराखंड)। प्रेस क्लब, ऊधम सिंह नगर और कुमाऊं युवा प्रेस क्लब के पदाधिकारी लगभग तीन दर्जन पत्रकारों के साथ एडीएम एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से मिले और उन्हें ज्ञापन सौंप कर अमर उजाला ब्यूरो चीफ द्वारा की जा रही निंदनीय कार्यवाही के संबंध में निष्पक्ष जांच कर उचित कार्यवाही की मांग की। पत्रकारों ने अधिकारियों को सौंपे ज्ञापन में कहा कि अमर उजाला ब्यूरो चीफ अनुपम द्वारा अपने खिलाफ पत्रकार केपी गंगवार द्वारा की गई शिकायतों से चिढ़कर फोटोग्राफर मनोज आर्या की ओर से तीन पत्रकारों के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज कराया गया और फिर अमर्यादित भाषा का प्रयोग करते हुए समाचार प्रकाशित किए गये। जिससे स्थानीय पत्रकारों के मान-सम्मान को ठेस पहुंची है। उन्होंने अनुपम के खिलाफ की गई शिकायतों, अमर उजाला छायाकार मनोज आर्या लगाए गये आरोपों की निष्पक्ष जांच कराने और अमर उजाला द्वारा द्वेषपूर्ण समाचारों के प्रकाशन पर रोक लगाने की मांग की। अपर जिलाधिकारी निधी यादव ने जहां इस प्रकरण पर दुःख व्यक्त किया वहीं वरिष्ठ पुलिस अधीक्ष रिद्धिमा अग्रवाल ने पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराने का भरोसा दिया।
एडीएम का ज्ञापन देते पत्रकार
एसएसपी को ज्ञापन देते पत्रकार
ज्ञापन देने वालों में प्रेस क्लब, ऊधम सिंह नगर के अध्यक्ष बीसी सिंघल, महामंत्री अनिल चैहान, उपाध्यक्ष कमल श्रीवास्तव, कुमायूं युवा प्रेस क्लब अध्यक्ष सौरभ गंगवार, गुरबाज सिंह, ललित राठौर, सुरेंद्र गिरधर, हरविन्दर सिंह खालसा, जितेन्दर सिंह जठौल, विनोद कुमार आर्या, सुशील बठला, मनीष ग्रोवर, हिमांशु नरूला, सोनू राणा, मनीष आर्या, दीपक कुकरेजा, दीपक चन्द, संजय भटनागर, हेमलाल, रंजीत कुमार, सुभोद्युती कुमार मंडल, नरेन्द्र राठौर, विकास कुमार, गोपाल सिंह गौतम, सुदेश जौहरी, जगदीश चन्द्र, ललित शर्मा, अमन सिंह, सोनू राणा, जगदीश सागर, वेद प्रकाश, दीपक शर्मा, हरपाल दीवाकर, विक्रांत सक्सेना, अरविन्द दूबे, बबलू पाल, प्रदीप मंडल, सागर, वेद प्रकाश एपी भारती, जुगल किशोर आदि थे।
मामले की संक्षिप्त रिपोर्ट
रुद्रपुर (उत्तराखंड)। ‘जोश सच का’ उद्घोष के साथ प्रकाशित हो रहा हिंदी दैनिक अमर उजाला आजकल ऊधम सिंह नगर जिले (उत्तराखंड) में अपनी भद्द पिटवा रहा है और सच का गला घोंटने पर आमादा है। अमर उजाला, नैनीताल के ऊधम सिंह नगर संस्करण में 11 जनवरी 2014 के अंक में पृष्ठ संख्या 2 पर रुद्रपुर से ‘अमर उजाला टीम पर हमला’ शीर्षक से खबर छपी, जिसमें बताया गया कि अमर उजाला समय-समय पर नगर में अतिक्रमण के बारे में अभियान चलाता रहा है, इस क्रम में अमर उजाला के फोटोग्राफर मनोज आर्या को भूतबंगला मोड़ पर फोटो खींचने के दौरान वहां मौजूद लोगों ने गाली-गलौच की, कैमरा छीनने का प्रयास किया और जान से मारने की धमकी दी।
यहां अमर उजाला के पाठक का सवाल है कि अतिक्रमण की कोई खबर अमर उजाला में नहीं है, तो क्या अभियान बाधित हो गया। क्या अमर उजाला इतना कमजोर है कि इस घटना से उसने अपना अभियान स्थगित कर दिया? सवाल यह भी है कि खबर अमर उजाला टीम पर हमले की है तो टीम कम से कम दो लोगों की हो सकती है। एक व्यक्ति टीम नहीं हो सकता। खबर में केवल फोटोग्राफर मनोज का ही नाम है टीम के अन्य सदस्यों का नाम नहीं है। टीम में और लोग भी थे तो उनका नाम क्यों नहीं है या केवल मनोज गये थे तो टीम की बात खबर में गलत लिखी है? अगले दिन के अमर उजाला में पत्रकारों की एक बैठक की खबर ‘ब्लैकमेलरों का होगा पर्दाफाश’ है जिसमें कहा गया है कि अमर उजाला टीम पर हुए हमले की निंदा की गई और ब्लैकमेल करने वाले फर्जी पत्रकारों का पर्दाफाश किया जाएगा। इसमें प्रमुख मीडिया हाउसों के प्रतिनिधि शामिल थे। अगले दिन यह लोग अधिकारियों से भी मिले।
इन दोनों खबरों को हम इनके वास्तविक संदर्भ में रखकर देखेंगे। दस जनवरी को भड़ास4मीडिया सहित कुछ मीडिया वेबसाइटों पर अमर उजाला के रुद्रपुर ब्यूरो चीफ के खिलाफ स्थानीय पत्रकार केपी गंगवार का वह पत्र छपा जो उन्होंने अमर उजाला के प्रबंध निदेशक श्री राजुल माहेश्वरी को भेजा था, जिसमें ब्यूरो चीफ पर लेन-देन के आरोप थे। केपी गंगवार की शिकायतों पर ब्यूरो चीफ के बारे में पहले से जांच चल रही बताई जाती है। यहां लोगों में इस बात की चर्चा है कि मीडिया वेबसाइटों की खबर से तिलमिलाए चीफ ने पंगा खड़ा करने को फोटोग्राफर का इस्तेमाल किया और वहां अतिक्रमण की फोटो लेने अपने छायाकार को भेजा जहां केपी बैठते हैं। संयोग से केपी मौके पर नहीं थे, वह उस समय पीएसी में आयोजित कोई कार्यक्रम कवर कर रहे थे। दूसरे नामजद हरपाल सिंह भी अनुपस्थित थे। मौजूद लोग अविवेक का परिचय देते हुए फोटोग्राफर से कुछ उलझ गये और फिर उसके खिलाफ रंगदारी मांगने की तहरीर चैकी में दे दी। इसका इस्तेमाल कर चीफ ने केपी और हरपाल सहित तीन लोगों के खिलाफ फोटोग्राफर से गाली-गलौच, कैमरा छीनने आदि के आरोप में मनोज की ओर से रिपोर्ट दर्ज करवा दी। पुलिस प्रशासन ने बड़े बैनर के दबाव में तुरंत मुकदमा कायम कर दिया। जबकि दोपहर में मनोज के खिलाफ जो तहरीर दी गई थी, उस पर मुकदमा दर्ज नहीं किया गया।
13 जनवरी, शाम को लगभग तीन दर्जन स्थानीय पत्रकार लोनिवि अतिथि गृह में एकत्र हुए और इस मसले पर बात हुई। वे अमर उजाला द्वारा आयोजित पत्रकारों की बैठक में किए गये इस प्रहार से आहत थे कि कुछ लोग पत्रकारिता की आड़ लेकर लोगों को ब्लैकमेल करते हैं, उनका पर्दाफाश किया जाएगा। वक्ताओं ने सवाल किया कि माफिया, पूंजीपति, घोटालेबाज आदि बड़े मीडिया को मैनेज करेंगे या कि छोटे मीडिया को? और अगर जो कहा गया है कि ब्लैकमेलरों का पर्दाफाश किया जाएगा, तो वह अभियान तुरंत शुरु कर दिया जाना चाहिए था। यहां जब किसी संस्थान में कोई बड़ा फाल्ट सामने आता है तो छपी खबरों से उस संस्थान नाम गायब कर दिया जाता है। नाम की जगह ‘एक फैक्ट्री’, एक कंपनी या ‘एक संस्थान’ विशेषण का इस्तेमाल किया जाता है। वक्ताओं ने सवाल किया कि ऐसा क्यों होता है ? सवाल किया कि अमर उजाला को छोटे लोग ही अतिक्रमणकारी क्यों दिखते हैं धन्नासेठों के अतिक्रमण पर वह क्यों मौन साधे रहता है ? सही तो यह होता कि यदि झगड़ा केपी से था तो उस पर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए थी। पाठक कोई भी अखबार इस भरोसे से पैसा देकर लेता है कि वह सही सूचनाएं देगा। यदि सूचनाएं भ्रामक हैं तो पाठक अखबार प्रबंधन से स्पष्टीकरण की मांग करने का अधिकारी है। वह मामले को उपभोक्ता फोरम में भी उठा सकता है। यहां हर पत्रकार, प्रशासन और आदमी को सोचने की जरूरत है कि बड़े पाठक/दर्शक से बचने के लिए धन्नासेठ बड़े मीडिया को मैनेज करेंगे या कि कम प्रसार/दर्शक वाले छोटे मीडिया को?
वक्ताओं ने कहा कि अमर उजाला भ्रम फैलाना बंद कर मामले को ईमानदारी से, तार्किकता के साथ सुलझाए। अपनी साख और पत्रकारिता की गरिमा को बचाए। अन्यथा बहुसंख्य स्थानीय पत्रकार अपने मान-सम्मान की रक्षा के लिए आंदोलन करने को बाध्य होंगे, इसमें अमर उजाला का बहिष्कार भी किया जा सकता है। इस बैठक में नगर के समस्त पत्रकारों को फोन कर बुलाया गया था, लेकिन ब्यूरो चीफ अमर उजाला के साथ लामबंद पत्रकार बैठक में नहीं आए। आयोजकों का कहना था कि मामले को आपसी बातचीत से हल किया जाना कहीं अधिक बेहतर होता।
रुद्रपुर से अमन सिंह की रिपोर्ट।