एक छोटी सी पहल बड़ा रूप लेकर जीवन की दशा और दिशा बदल सकती है। लोग जो सोचते हैं उसके उलट भी कुछ होता है, यह इंसान जान सकता है। समझ सकता है। बाहरी आवरण के नीचे की चीजें देख सकता है। संभल सकता है। फैसला ले सकता है। भड़ास उसी पहल का नाम है। इसे हल्के में लेने वाले लोग घर जाकर लैपटॉप पर चुपचाप पढ़ते हैं।
भड़ास को कितनों के जीवन बचाने का श्रेय है। कईयों को सच्चाई बताने का क्रेडिट हासिल है। देश की पत्रकारिता में कई बड़े नाम के संपादक और उनके मालिक लिहाज करना सीख गए। उनकी गैरत कभी कभार दूसरे का दर्द पढ़कर जग गई। कई दूर-दराज के क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों ने अपनी व्यथा को भड़ास के साथ शेयर किया। लोगों ने जाना कि इस पेशे में कैसे-कैसे लोग और शोषणकर्ता मौजूद हैं।
स्ट्रिंगर नाम के मजदूरों का बड़ी कंपनियां कैसे शोषण करती हैं। कैसे किसी संस्था के लोग रेप और महिला सम्मान पर चिल्लाने वाले लोग अपनी महिला सहकर्मियों का दृष्टिभोग करते हैं। कुछ तो सबकुछ भोग जाते हैं। कई महिलाओं ने नौकरी छोड़ना तक पसंद किया। ऐसे लोगों के बारे में भड़ास ने बताया। कई संस्थाओं के कुत्सित मानसिकता वाले लोगों ने पूरे पेशे पर सवाल उठाया। लेकिन भड़ास ने सही नजर से सही खबर दी।
भड़ास को मेरे पति पढ़ते हैं। मैंने उनसे पढ़ना सीखा। मेरी दोनों बेटियां सिम्बॉयसिस से मास कॉम कर चुकी हैं। लेकिन इस पेशे में नहीं हैं। मैंने मना किया था। ऐसा नहीं इस पेशे में अच्छे और इमानदारी लोगों की कमी है। नहीं। ईमानदार भी हैं प्रतिबद्ध भी।
भड़ास ने अपनी 5 वीं सालगिरह मनाया। अच्छा लगा। ऐसा लगा एक चिंगारी अब आग का रूप ले चुकी है। लोग उसे पसंद करते हैं। यशवंत जैसा कि दिखता है उनके लेखों में। जीवट इंसान हैं। दुर्रानी के कुफ्र की तरह। रहना भी चाहिए। भड़ास पर लिखे गए शब्दों का असर दिखता है। अब उसमें जो वोटिंग की व्यवस्था है। बेहतर है। लोग बताते हैं। क्या अच्छा लगा। क्या बुरा। भड़ास लोकतंत्र का एक अंग लगता है। वैसे लोगों को लिए जो साफगोई पसंद होते हैं। यह चापलूसों और छुद्र मानसिकता वालों के लिए नहीं है।
भड़ास एक क्रांति का नाम है। भड़ास जिंदादिली का नाम है। भड़ास विद्रोह का नाम है। भड़ास उन शोषित लोगों की आवाज है जो नौकरी बचाने के चक्कर में गूंगे बन गए थे। कम से कम उन्हें मंच तो मिला। मेरी ओर से भड़ास को तहे दिल से हार्दिक शुक्रिया, शुभकामना।
डा. सरिता सिन्हा
भोपाल
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