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‘क्या अंबानी को जरूरत है समाजवाद की’: साहित्यकार डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी

बेगूसराय। गोदरगावाँ के विप्लवी पुस्तकालय के 84वें वार्षिकोत्सव में 'आजादी के दीवानों के स्वप्न और वर्तमान भारत' विषय पर आयोजित आमसभा में बोलते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि जब लोग अपने लिए लड़ते हैं तभी हारते हैं। सही जगह पहुँचने के लिए सही घोड़ा औए ठीक सवार का होना ज़रूरी है। उन्होनें कहा कि लोभ व्यक्ति को डरपोक बनाता है और आज के समय में जो लोग संस्कृति की बात करते हैं वे कभी उन्होंने- नरहरि दास, मीरा, कबीर, सूर व तुलसी का नाम नहीं लेते। देश में आर्थिक समाजवाद की ज़रूरत पर बल देते हुए उन्होने कहा कि हमारी आज की व्यवस्था में अमीर अपनी ख्वाहिशें पूरी कर लेता है लेकिन गरीब बेरोजगार की फौज बिकने के लिए तैयार रहती है, वही राजनीतिज्ञों के बहकावे में आकर उनके हाथ का खिलौना बन जाती है। उन्होनें व्यंग करते हुए पूछा क्या अंबानी को जरूरत है समाजवाद की?

बेगूसराय। गोदरगावाँ के विप्लवी पुस्तकालय के 84वें वार्षिकोत्सव में 'आजादी के दीवानों के स्वप्न और वर्तमान भारत' विषय पर आयोजित आमसभा में बोलते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि जब लोग अपने लिए लड़ते हैं तभी हारते हैं। सही जगह पहुँचने के लिए सही घोड़ा औए ठीक सवार का होना ज़रूरी है। उन्होनें कहा कि लोभ व्यक्ति को डरपोक बनाता है और आज के समय में जो लोग संस्कृति की बात करते हैं वे कभी उन्होंने- नरहरि दास, मीरा, कबीर, सूर व तुलसी का नाम नहीं लेते। देश में आर्थिक समाजवाद की ज़रूरत पर बल देते हुए उन्होने कहा कि हमारी आज की व्यवस्था में अमीर अपनी ख्वाहिशें पूरी कर लेता है लेकिन गरीब बेरोजगार की फौज बिकने के लिए तैयार रहती है, वही राजनीतिज्ञों के बहकावे में आकर उनके हाथ का खिलौना बन जाती है। उन्होनें व्यंग करते हुए पूछा क्या अंबानी को जरूरत है समाजवाद की?

विषय प्रवेश करते हुए दूरदर्शन के एंकर सुधांशु रंजन ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भारतीय परंपरा के पौराणिक ऐतिहासिक उदाहरणों को श्रोताओं के सामने रखा। उन्होंने कहा कि न्यायोचित समाज का निर्माण करना देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। हमारे यहाँ नेता सत्ता का मोह नहीं छोड़ते। एक समय प्रतिस्पर्द्धा थी कि कौन कितना त्याग करता है और आज कि कौन कितना संचय करता है। एक तरह का विश्वासघात है उन शहीदों के साथ।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक प्रो. वेदप्रकाश ने कहा कि भगत सिंह क्रांतिकारी के साथ प्रखर बुद्धिजीवी भी थे। पुस्तकालय कैसे क्रांति का केंद्र बन सकता है यह भी भगत सिंह ने सिखाया। इंकलाब निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ आलोचक डा. खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस गांधी के विकल्प बन गये थे। प्रेमचंद की एक नारी पात्र कहती है कि जान की जगह गोविन्द को बैठाने से क्या होगा, चेहरा बदलने से क्या होगा? उन्होंने आगे कहा कि जनतंत्र सिमटता जा रहा है, जिसके पास खाने-पीने का साधन नहीं है उसके लिए कौन सा जनतंत्र है। जिस जनतंत्र पर जनता का नियंत्रण नहीं है उसे मानवीय बनाने की जरुरत है।

उत्तर प्रदेश प्रलेस महासचिव डॉ. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि देश में चाय की चुस्कियों के साथ सांप्रदायिकता की खेती की जा रही है। बिहार प्रलेस महासचिव राजेन्द्र राजन ने कहा कि युवा पीढ़ी में आधुनिक और करोड़पति, अरबपति बनने की होड़ लगी है, एक तरफ़ इनके ठाट-बाट हैं तो दूसरी ओर भूख, अभाव, शिक्षा आवास व सुरक्षा के लिए तरसते लोग। उन्होनें कहा कि युवाशक्ति की ऊर्जा क्षीण हो रही है, ऐसे में हम किस हिन्दुस्तान को बनाना चाहते हैं? एक नई किस्म की कुर्सी की राजनीति चल रही है ऐसे में समाज को मानवीय बनाने के लिए सपने देखने की जरुरत है।

समारोह का यादगार क्षण प्रसिद्ध रंगकर्मी प्रवीर गुहा द्वारा निर्देशित व रवीन्द्रनाथ टैगोर लिखित नाटक 'विशाद काल' का मंचन एवं दिनकर शर्मा द्वारा प्रेमचंद की कहानी का एकल मंचन भी महत्वपूर्ण रहा। समारोह के दूसरे दिन 27 फ़रवरी को चन्द्र्शेखर आजाद(शहादत दिवस) के सम्मान में आयोजित संगोष्ठी के मुख्य वक्ता दैनिक 'हिन्दुस्तान' के प्रधान संपादक शशि शेखर(नई दिल्ली) थे। उन्होंने 'लोक जागरण की भारतीय संस्कृति और कट्टरता के खतरे' पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विचार की भूमि से ही विचार पैदा होता है। क्या कारण था कि 1947 से पहले स्कूलों में अलख जगा करता था। हम आसानी से एक हो जाते थे। आज वैसी सोच नहीं है। हमने उस आइने को छिपा दिया है जिसे कन्फ़्युशियस अपने पास रखते थे। यह आईना हमें हमारी जिम्मेदारी का एहसास कराता है। उन्होंने कहा कि सवालों के हल शब्दों से नहीं कर्म से होता है।

प्रो. वेदप्रकाश ने कहा कि लोक जागरण भारत कि विरासत रही है। आत्म जागरण का मतलब आत्म कल्याण के साथ-साथ जन कल्याण भी होनी चाहिए। डॉ. संजय श्रीवास्तव ने संगोष्ठी के वैचारिक विमर्श को आगे बढ़ाते हुए कहा कि लोक जागरण का अग्रदूत कबीर से बड़ा कोई नहीं हुआ मुर्दे को जगाने का काम कबीर कर रहे थे। बुद्धकाल को लोक जागरण नहीं मानना हमारी बड़ी भूल होगी। हम आज भी कबीर के सहारे खड़े हैं। हमें आज कबीर की जरुरत है।

इस सत्र में डॉ. विशनाथ त्रिपाठी, सुधांशु रंजन ने भी अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता जीडी कालेज के पुर्व प्राचार्य प्रो. बोढ़न प्र. सिंह ने की। कार्यक्रम में उमेश कुवंर रचित पुस्तक 'भारत में शिक्षा की दशा व दिशा' का लोकार्पण भी किया गया। समारोह में दैनिक 'हिन्दुस्तान' के प्रधान संपादक शशिशेखर ने स्कूली बच्चों को सम्मानित किया। इस अवसर पर 'हिन्दुस्तान' के वरीय स्थानीय संपादक डॉ. तीरविजय सिंह, विनोद बंधु सहित अतिथि एवं स्थानीय साहित्यकार मौजूद थे। हजारों दर्शक व श्रोंताओं साथ भाकपा राज्य सचिव राजेन्द्र सिंह, रमेश प्रसाद सिंह, नरेन्द्र कुमार सिंह, धीरज कुमार, आनंद प्र. सिंह, सर्वेश कुमार, डॉ. एस. पंडित, डॉ. अशोक कुमार गुप्ता, सीताराम सिंह, चन्द्रप्रकाश शर्मा बादल, दीनानाथ सुमित्र, सीताराम सिंह, अनिल पतंग, दिनकर शर्मा, वंदन कुमार वर्मा, अमित रौशन, परवेज युसूफ, आनंद प्रसाद सिंह, मनोरंजन विप्लवी, अरविन्द श्रीवास्तव आदि की उपस्थिति ने आयोजन को यादगार बना दिया।

 

गोदरगावाँ, बेगूसराय से अरविन्द श्रीवास्तव की रिपोर्ट। मो- 9431080862 ईमेलः [email protected]

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