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b4m 5thbday : …उस भड़ास4मीडिया से सम्मान पाना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है : प्रयाग पांडेय

: मुझे बुलंदियों की हवस नहीं है, भड़ास4मीडिया ने जो दिया है मेरे लिए वही बहुत है : लोकप्रिय हिंदी न्यूज पोर्टल  "भड़ास फॉर मीडिया" का पांचवें जन्मवार के सुअवसर पर शुक्रवार १७ मई २०१३ को राजेन्द्र भवन नई दिल्ली में स्व. प्रभाष जोशी एवं स्व. आलोक तोमर जी की स्मृति को समर्पित "व्याख्यान, संगीत और सम्मान समारोह"  मेरे तकरीबन तीस साल के पत्रकारीय विद्यार्थी जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और यादगार रहा।

: मुझे बुलंदियों की हवस नहीं है, भड़ास4मीडिया ने जो दिया है मेरे लिए वही बहुत है : लोकप्रिय हिंदी न्यूज पोर्टल  "भड़ास फॉर मीडिया" का पांचवें जन्मवार के सुअवसर पर शुक्रवार १७ मई २०१३ को राजेन्द्र भवन नई दिल्ली में स्व. प्रभाष जोशी एवं स्व. आलोक तोमर जी की स्मृति को समर्पित "व्याख्यान, संगीत और सम्मान समारोह"  मेरे तकरीबन तीस साल के पत्रकारीय विद्यार्थी जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और यादगार रहा।

वह इसलिए कि समाजोन्मुख जनपक्षीय पत्रकारिता के लिए सैद्धांतिक और वैचारिक रूप से कतई प्रतिबद्ध देश की मुख्यधारा के चोटी के संपादक / पत्रकार सर्वश्री अनिरुद्ध बहल, शम्भुनाथ शुक्ल, राम बहादुर राय, निशीथ राय, आनंद प्रधान समेत दर्जनों वरिष्ठ संपादक और पत्रकारों व देश एवं समाज की बेहतरी तथा अभिव्यक्ति की आजादी के लिए अपने-अपने तौर-तरीकों से लड़-भिड़ रहे विचारवान लोगों और  पत्रकारीय कर्म और धर्म के प्रति सर्वस्व दांव पर लगा देने के जज्बे से लैस स्पष्ट दृष्टि वाले सैकड़ों युवा पत्रकारों, रचनाकर्मियों व मीडिया जगत की कई हस्तियों की मौजूदगी में सर्वश्री असीम त्रिवेदी, दयानंद पांडे, मयंक सक्सेना, आलोक कुमार, संजय शर्मा, मुकेश भारतीय और सुजीत सिंह "प्रिंस" जैसे पत्रकार और रचनाधर्मियों के साथ मुझ जैसे आजन्म "अंशकालिक" पत्रकार को भी "भड़ास विशिष्ट सम्मान 2013" पाने का सुअवसर मिला। पत्रकारिता के विद्यार्थी के रूप में यह मेरा पहला पुरस्कार / सम्मान था। हालाँकि मैंने किसी सम्मान / पुरस्कार पाने की कभी   कल्पना भी नहीं की थी। संभव है कि यह सम्मान / पुरस्कार पहला और आखिरी हो।

सवाल पुरस्कार / सम्मान का नहीं है। सवाल मंच का है और उस मंच में मौजूद लोगों का। भड़ास4मीडिया जैसे लड़ाकू तेवरों वाले न्यूज पोर्टल के मंच से समाजोन्मुख जनपक्षीय पत्रकारिता के लिए सैद्धांतिक और वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध देश की मुख्यधारा के चोटी के संपादक / पत्रकारों के मध्य सम्मान पाना मेरे जैसे श्रमजीवी पत्रकार के लिए बेहद गर्व की बात है। इस सम्मान का मूल्य इसलिए भी बहुत ज्यादा है कि आज जबकि अल सुबह से देर शाम तक पुलिस चौकी / थाने से लेकर आला सरकारी अफसरानों, विभिन्न सियासी पार्टियों के छोटे-बड़े नेताओं और विभिन्न स्रोतों से प्राप्त प्रेस विज्ञप्तियों के आधार पर अख़बारों के सफ़ेद कागजों को काले करने में जी-जान से जुटे और खुद को मुख्यधारा का पत्रकार मानने और समझने वाले साथी भी सक्रिय पत्रकार मानने को राजी न हों। पत्रकारिता का मतलब अफसरों, नेताओं और समाज के दबाव ग्रुपों के झूठे-सच्चे बयान और प्रेस विज्ञप्तियां छापना हो गया हो। ऐसे परिवेश में मेरे लिए "भड़ास विशिष्ट  सम्मान 2013" के मायने हैं। निहितार्थ हैं कि पत्रकारिता का मतलब झूठे-सच्चे बयान और प्रेस विज्ञप्तियां छापना तक ही सीमित नहीं है। गहन अध्ययन और शोध के बद हफ्ते-पन्द्रह दिनों में ही सही, समाज के असल सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर फीचर / रिपोर्ताज और आलेख लिखने वाले भी पत्रकारों की श्रेणी में आते हैं।

अब वह जमाना गया जब जन संचार माध्यम समाज और देश हित में जनमत तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। जन संचार माध्यम एक बेहतर समाज का राष्ट्रीय एजेंडा तैयार करने के लिए लोक शिक्षक का अहम रोल अदा करते थे। अपनी असंदिग्ध जन पक्षधरता के चलते जन संचार माध्यमों ने दुनिया के कितने दमनकारी और जन विरोधी तानाशाहों के तख्त पलटे और अनगिनत जन विरोधी सरकारों को बदला। भारत के जन संचार माध्यमों और पत्रकारों ने न केवल दमनकारी ब्रितानी हुकूमत से जमकर लोहा लिया बल्कि भारत की स्वतन्त्रता की खातिर अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया। जन संचार माध्यमों और पत्रकारों द्वारा न्याय संगत राज व्यवस्था और बेहतर समाज के निर्माण में अतीत में दिए गए अति महत्वपूर्ण योगदान और समाज हित में किए गए त्याग के उदाहरणों से विश्व और भारत का इतिहास भरा हुआ है। लेकिन नई सूचना तकनीक के वजूद में आने के बाद जब जन संचार माध्यम " मीडिया " हो गए।  पत्रकारिता "मिशन" से ग्लेमर बन गई, तब से जन संचार माध्यमों के सरोकार बदल गए। नतीजन "साख" में भी बट्टा लग गया।

असल में पत्रकारिता की साख और सरोकारों में आ रही इस गिरावट के लिए वही लोग सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं जो आज समाचार संस्थानों में उच्च पदों पर बैठे हैं। ये लोग पत्रकारिता को लेकर बात भले ही जितनी ऊँची हांक लें पर वे खुद मालिकों की चाकरी कर रहे हैं। उनकी तिजोरी भर रहे हैं। बदले में मोटी तनख्वाह पा रहे हैं। देश में पूंजीवाद, बाजारवाद और उपभोक्तावाद को बढ़ाने में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं। इस घुप अँधेरे में उजाले की मंद किरण अभी बची है। अनेक खामियों / गिरावटों के वावजूद विश्व के तमाम लोकतान्त्रिक मुल्कों में आज भी आधुनिक "मीडिया" ही मजबूत विपक्ष की भूमिका निभा रहा है। खासकर भारत में। भड़ास फॉर मीडिया इसका जीता-जागता सबूत है। उस भड़ास4मीडिया से सम्मान पाना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।  

भड़ास विशिष्ट सम्मान ने अंशकालिक पत्रकार और मुख्यधारा के पत्रकार की गहरी खाई को कम किया है। मुझे जीवन के बचे-खुचे वक्त में और बेहतर लिखने के लिए प्रेरित किया है। या यूँ कहूँ कि एक अंशकालिक पत्रकारिता का भावी एजेंडा / लक्ष्य तय कर दिया है। मुझे समाजोन्मुख जनपक्षीय पत्रकारिता के असल मायने समझा दिए हैं।  लिहाजा अब मुझे बुलंदियों की हवस नहीं है,  भड़ास फॉर मीडिया ने जो दिया है, मेरे लिए वही बहुत है। धन्यवाद श्री यशवंत भाई। धन्यवाद भड़ास फॉर मीडिया।  भड़ास फॉर मीडिया के पांचवें जन्मवार की शोभा बढ़ाने वाले मीडिया जगत की सभी हस्तियों का धन्यवाद।

लेखक प्रयाग पांडेय उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं.


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