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भड़ास4मीडिया शिखर पर, सफलता के कई रिकार्ड तोड़े

भड़ास4मीडिया डाट काम इन दिनों सफलता के नए पायदान पर है. एलेक्सा रैंकिंग से पता चलता है कि भड़ास बहुत तेजी से नई उंचाइयों को छू रहा है. हिंदी में मीडिया से जुड़े समाचारों पर आधारित कोई ऐसी वेबसाइट नहीं है जो भड़ास के आसपास भी हो. भड़ास ने बहुत पहले अंग्रेजी मीडिया वेबसाइटों को पछाड़ दिया था. अब तो इनसे फासला भी डबल हो गया है.

भड़ास4मीडिया डाट काम इन दिनों सफलता के नए पायदान पर है. एलेक्सा रैंकिंग से पता चलता है कि भड़ास बहुत तेजी से नई उंचाइयों को छू रहा है. हिंदी में मीडिया से जुड़े समाचारों पर आधारित कोई ऐसी वेबसाइट नहीं है जो भड़ास के आसपास भी हो. भड़ास ने बहुत पहले अंग्रेजी मीडिया वेबसाइटों को पछाड़ दिया था. अब तो इनसे फासला भी डबल हो गया है.

ताजे आंकड़ों के मुताबिक भड़ास4मीडिया ने एक्सचेंज4मीडिया को बहुत पीछे छोड़ दिया है. बेस्ड मीडिया इनफो भी भड़ास से काफी पीछे है. यहां तक कि जनसत्ता अखबार की वेबसाइट जनसत्ता डाट काम और प्रभात खबर अखबार की वेबसाइट प्रभात खबर डाट काम भी भड़ास से पीछे है. अलेक्सा रैंकिंग का तुलनात्मक अध्ययन करने पर पता चलता है कि भड़ास इस वक्त देश की न्यू मीडिया और सरोकारी मीडिया से जुड़ी वेबसाइटों में नंबर वन पर है. प्रवक्ता, हस्तक्षेप, विस्फोट, मोहल्ला, मीडिया खबर, जनसत्ता समेत दर्जनों वेबसाइटों से बहुत आगे है भड़ास4मीडिया.

देखें…

भड़ास4मीडिया डाट काम के संस्थापक और संपादक यशवंत सिंह कहते हैं कि प्रतिदिन करीब पंद्रह लाख हिट्स बटोरने वाली वेबसाइट भड़ास4मीडिया को नए अवतार में सामने लाने की तैयारी चल रही है. भड़ास की लोकप्रियता के बारे में यशवंत कहना है कि भड़ास की सफलता के पीछे केवल एक चीज का हाथ है, वह है 'कंटेंट' का. हम लोग पीआर टाइप, पेड टाइप और गुडी गुडी कंटेंट को प्राथमिकता नहीं देते. हम लोग सच मायने में आम मीडियाकर्मियों और आम जन की आवाज, समस्या, पीड़ा, ट्रेजडी के साथ साथ बड़े लोगों के घपले, घोटालों, चोरी, साजिश आदि को साहस के साथ प्रकाशित करता है.

यशवंत ने दावा किया कि भड़ास ने कभी कंटेंट के मामले में समझौता नहीं किया और न ही किसी से डरा. हालांकि इस कारण भड़ास से जुड़े लोगों को थाना पुलिस कचहरी जेल तक की यात्राएं करनी पड़ी और अब भी जारी है, लेकिन जब आप खरा सच परोसते हैं तो उन लोगों का रिएक्ट करना लाजिमी है जो इस खरे सच के कारण बहुत कुछ लूज कर जाते हैं. तब वे बदला लेने और सबक सिखाने पर उतारू हो जाते हैं. पर भड़ास ने अब संदेश दे दिया है कि चाहे जो हो, अगर मीडिया में स्याह पक्ष है तो उसे प्रकाशित किया जाएगा.

भड़ास के सामने आर्थिक संकट का जिक्र करते हुए यशवंत कहते हैं कि भड़ास संचालित करने के लिए हर महीने करीब दो लाख रुपये इकट्ठा कर पाना एक बड़ी चुनौती है. सर्वर, आफिस, सेलरी समेत कोर्ट, मुकदमों आदि के घर-बाहर वाले दर्जनों खर्चों के लिए भड़ास अपने पाठकों के डोनेशन और कुछ शुभचिंतक मीडिया हाउसेज के साथ चल रहे ब्रांडिंग एंड कंटेंट सपोर्ट एग्रीमेंट से आने वाले पैसों पर निर्भर है.

यशवंत ने बिजनेस जगत, मीडिया जगत से जुड़े समृद्ध लोगों से अपील की है कि अगर कोई भड़ास को कंपनी के रूप में तब्दील कर इसका छोटा या बड़ा हिस्सा लेना चाहता हो तो उसका स्वागत है. जो भी इच्छुक है वह [email protected] पर मेल कर सकता है. यशवंत का कहना है कि अभी तक भड़ास के आर्थिक पक्ष को समृद्ध करने के लिहाज से कोई सीरियस एफर्ट नहीं किया गया है. कोई मार्केटिंग टीम आजतक नहीं रखी गई है. भड़ास के विस्तार के दौर में जल्द ही इस मोर्चे पर भी काम किया जाएगा और बहुत आसानी से साल में करीब एक करोड़ रुपये एड रेवेन्यू हासिल किया जा सकता है.

यशवंत ने यह भी जानकारी दी कि भड़ास के आर्थिक पक्ष की मजबूती के लिहाज से आनलाइन एड रेवेन्यू पर भी काम किया जा रहा है जिसके शुरुआती नतीजे काफी उत्साहजनक हैं.  पर सबसे जरूरी है भड़ास के पाठकों का सहयोग. जब किसी अखबार या चैनल या वेबसाइट को अपने पाठक से समर्थन मिलता है तो यह वास्तविक समर्थन होता है जो न झुकने को प्रोत्साहित करता है. सरकारी और प्राइवेट विज्ञापन जब आते हैं तो अपने पीछे कई तरह की अघोषित बंदिश भी ले आते हैं जिसका शिकार आजकल की मेनस्ट्रीम मीडिया है. यही कारण है कि भड़ास विज्ञापनों की जगह जन सहयोग को प्राथमिकता देता है.


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