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सुख-दुख...

हरे प्रकाश उपाध्याय के उपन्यास ‘बिआह की पढ़ाई’ के कुछ अंश (2)

: (पार्ट एक से आगे) : ज्वाला सिंह के खेतों की कटनी के लिए हार्वेस्टर आया है. नोनार के रघु मिसिर का है हार्वेस्टर. वे इलाके के सबसे बड़े खेतीहर हैं. दो सौ बीघा के करीब खेत है उनके जिम्मे. उन्होंने समय पर मजूर न मिलने और हर साल उनके मजूरी बढ़ाते जाने से तंग आकर हार्वेस्टर ले लिया है. उनका अपना भी काम आसान हो गया है और वह भाड़ा अलग कमा रहा है. जवार भर में हाथी की तरह रौंदता हुआ घूम रहा है हार्वेस्टर. जवार भर के मजूरों ने उसका नाम राकस रख दिया है. वह राक्षस ही तो है, मजूरों की रोजी को हड़प रहा है. उसने किसान-मजदूरों के आपसी रिश्ते को तहस-नहस करने की ठान ली है. यह तो भला कहो छोटी जोत वालों का कि वे अभी भी हाथों से कटनी करा रहे हैं पर कब तक?

: (पार्ट एक से आगे) : ज्वाला सिंह के खेतों की कटनी के लिए हार्वेस्टर आया है. नोनार के रघु मिसिर का है हार्वेस्टर. वे इलाके के सबसे बड़े खेतीहर हैं. दो सौ बीघा के करीब खेत है उनके जिम्मे. उन्होंने समय पर मजूर न मिलने और हर साल उनके मजूरी बढ़ाते जाने से तंग आकर हार्वेस्टर ले लिया है. उनका अपना भी काम आसान हो गया है और वह भाड़ा अलग कमा रहा है. जवार भर में हाथी की तरह रौंदता हुआ घूम रहा है हार्वेस्टर. जवार भर के मजूरों ने उसका नाम राकस रख दिया है. वह राक्षस ही तो है, मजूरों की रोजी को हड़प रहा है. उसने किसान-मजदूरों के आपसी रिश्ते को तहस-नहस करने की ठान ली है. यह तो भला कहो छोटी जोत वालों का कि वे अभी भी हाथों से कटनी करा रहे हैं पर कब तक?

राजबलम राम ने मीटिंग बटोरा है रेज टोली में. मजदूरी बढ़ाने के लिए और जो मिसिर का यह राकस दनदनाता फिर रहा है पूरे जवार में उसका क्या इलाज हो? राजबलम राम आईपीएफ के नेता हैं. सीढ़ी छाप. कहते हैं नीचे रहोगे तो लोग नीच कहेंग. सीढ़ी लगाओ और लोगों के कपार पर चढ़ जाओ, लोग भय खाएंगे. उनको अन्याय बर्दाश्त नहीं होता. वे खुद मजदूरी करते हैं और मजदूरों के हक-हुकूक की बात करते हैं. मीटिंग में डीह पर के महतो, यादव और मौलाना लोग भी बुलाए गए हैं. हालांकि इनमें से कइयों के पास दो-चार बीघे अपने खेत भी हैं पर हैं दरअसल वे मजदूर ही. यादव जी लोगों का दूध का कारोबार मंदा पड़ गया है, जबसे गांव में बड़ टोली के ललू राय ने डेयरी खोला है. महतो जी लोग भी बड़का लोगन से नराज हैं कि बाजार के दिन सब्जी बेचने वालों से वसूली की रकम वे लगातार बढ़ाते जा रहे हैं. महीने में एकाध बार बाजार से देर रात सब्जी बेचकर घर लौटने वाली सब्जी बेचने वालियों से बदसलूकी और छीन-छोर अलग. अनेत बढ़ता जा रहा है. कब तक सहा जाय और कैसे निपटा जाए? मौलाना लोग की मुर्गियां और बकरियां सुरक्षित नहीं. जब मन आता है दाम दिए-न दिए उठा ले जाते हैं बाबू लोग.

घुरी राम ने एक अलग सवाल उठा दिया कि इस साल मालिक लोग को मजूरों के बोझे देखकर आंखें फट रही हैं. उनके खलिहान में बोझे रखने पर खतरा है. उन्हें अपने पहाड़ जैसे बोझे के टाल नहीं दिखते. मजूरों के दस-बीस बोझे उनकी आंखों में गड़ते हैं.

‘‘गड़ने दीजिए. का कर लेंगे लोग? कौनो चुरा के ला रहे हैं हम लोग? पसीना बहाकर कमा रहे हैं.’’

‘‘हाँ उनलोगों का तो सिर्फ खेत ही है. उपजा तो हम ही रहे हैं.’’

‘‘बहुत राजपूत भूमिहार लोगों को तो अपना खेते नहीं नहीं मालूम है जी. हम जोतते-कोड़ते, उपजाते हैं और वे लोग खाकर सिरिफ झाड़ा फिरते हैं.’’

‘‘ ए काका, गांव में रहना मोसकील हो गया है. हम भी आदमी हैं पर हमारा कोई इज्जत ही नहीं है. हमारी जनानियों को वे लोग अपना माल बूझते हैं.’’

‘‘ बिना मतलब हमसे मार-पीट करे हैं. रास्ते चलते गाली देते हैं. ’’

‘‘ टाइम पर मजूरी नहीं देते हैं. मजूरी मांगने जाओ तो ऐसे करते हैं जैसे हम भीख मांग रहे हों. ’’

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‘‘हमने सहजा सिंह के खेत में बंटाई पर सब्जी की खेती की है. मेहनत से खून-पसीना बहा के सिंचाई-निराई करते हैं पूरा परिवार मिलकर. वे बिना कहे-बताए जब मन करे, सारी सब्जियां तोड़ ले जाते हैं. एक दिन टोक दिया तो खेत में ही उन्होंने हाथ छोड़ दिया. गाली देने लगे. ’’

‘‘पिछले इतवार को मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. मुझे दस्त हो रही थी. मैं अपने घर के आगे बैठा था. मालगुदन जी आए और कहने लगे बरिसवन पाहुन के घर पाहुर पहुंचा आओ. जब मैंने उनसे कहा मलिकार मुझे दस्त हो रहा है, ठीक हो जाऊंगा तो एक-दो दिन में चला जाऊंगा या फिर किसी और को देख लीजिए तो मुझ पर उन्होंने लात चला दी और कहने लगे, कमकर राम तुम्हारा पिछवाड़ा तोड़ देंगे. नेता बनते हो. ’’

‘‘अब हम नहीं सहेंगे जुलुम. हम भी आदमी है. ’’

‘‘लड़ने के लिए एक होना पड़ेगा. ’’

‘‘एक कहाँ हो रहा है कोई. देखिए, आज मीटिंग है और कितने लोग नहीं आए हैं, काम पर गए हैं. ’’

‘‘पिछली हड़ताल में भी हमारी एका नहीं रही थी. कुछ लोग काम करते रहे. ’’

‘‘ लड़ाई के लिए एका जरूरी है. ’’

‘‘ ऊ लोग सुनते हैं कि मीटिंग में गया था तो गाली देते हैं. ’’

‘‘गाली से निजात पाने के लिए भी गाली सुननी होगी.’’

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‘‘ इंकलाब जिंदाबाद. ’’

‘‘हर जोर जुलुम के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है.’’
3

आज ललन बाबा के दुआर पर सुबह-सुबह मजमा लगा है. पूरी बड़ टोली जुट गई है. ललन बाबा की माई धारा प्रवाह गालियों का स्वस्ति वाचन कर रही हैं. वे हैं एक नंबर की पिड़काह. गाली देने की गजब की प्रतिभा है उनके पास. राह चलते कोई मिल जाए और उसे वे दो गाली न दे दें, ऐसा हो ही नहीं सकता. लोग बचते हैं. गली में लोग उन्हें देखकर रास्ता बदल लेते हैं पर गाँव के लड़कों को उनसे उलझते हुए शायद बहुत मजा मिलता है. वे जितनी गालियां देती हैं, उतना ही उन्हें चिढ़ाने में इन्हें मजा मिलता है. ललन बाबा आजिज आ गए हैं गाँव के लौंडों से और अपनी माई से. तरह-तरह का यत्न कर चुके हैं पर किसी का कोई इलाज नहीं.

आज सुबह-सुबह गाँव के जगने के पहले ही उनके दरवाजे पर कुछ लड़कों ने सिंदुर, एक छोटी शीशी सरसो तेल, एक जोड़ी रिबन और गेंदे के चार बड़े-बड़े फूल रख दिए हैं. जिन लड़कों ने यह काम किया है, वे अपने-अपने घरों में जाकर इत्मीनान की नींद ले रहे हैं. और उनके कृत्य ने बड़ टोली में तूफान खड़़ा कर दिया है. ललन बाबा की माई को जिस-जिस पर संदेह हो रहा है, उनके सात पुश्तों को एक किए दे रही हैं और जिनको गालियां दी जा रही हैं, वे जुटकर सफाई दे रहे हैं या गुस्से में मारने-मरने पर उतारू हैं. कुछ लोग बीच-बचाव कर रहे हैं. ललन बाबा का पूरा परिवार डरा हुआ है कि रात में किसने आखिर उनके दरवाजे पर भूत-प्रेत रख दिया है. कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि अरे किसी की शरारत भी तो हो सकती है, पर अधिकांश लोग इसे शरारत मानने को कतई तैयार नहीं हैं. कोई कह रहा है कि देख नहीं रहे हो कि सिंदूर और रिबन रखा है, जरूर कोई प्रेतीन सटा गया है. देख लेना महीना नहीं लगेगा, घर हिला देगी यह. कोई कुछ- कोई कुछ. जितनी मुंह उतनी बातें. तरह-तरह की आशंकाएं और तरह-तरह के डर. ललन बाबा जाकर लोटन बहू को उसके घर से पीटते-गलियाते खींच लाए हैं. लोटन बहू उनके पैरों पर गिरकर सफाई मांग रही है कि उसका काम नहीं है पर कौन सुने? उसने आकर दरवाजे का सारा ताम-झाम उठा लिया है. ललन बाबा धमका रहे हैं कि जाकर सोन में फेंक आओ इसे और अगर घर में कुछ खरमंडल हुआ तो तुम भुगतोगी. वह रोते हुए सब सामान लेकर चली गई है.  भैरव को अच्छी नहीं लगी है ललन लोटन बहू के साथ ललन बाबा की बदतमीजी. वह किसी से कह रहा है कि इस गाँव में अबरा की कोई इज्जत नहीं है.  बड़टोली के किसी ने उसकी दलील सुन ली है और गाली बकते हुए कहा, ‘‘हं नान्ह राम, अबरा के इज्जत नहींए है पर जल में रहकर मगर से बैर भी कौनो अच्छा चीज नहीं है. आज ज्वाला सिंह के दुअरिया पर कोई भूत रख के देखे, गंड़ीए फट जाएगी.’’

भैरव ने इस बड़बड़ाहट को सुना नहीं है. वह किसी जल्दबाजी में था, निकल गया है. शायद मैदान होने जा रहा था. लोटा लिए हुए तेजी से खेतों की ओर चला गया है. ललन बाबा को कोई सलाह दे रहा है कि घुरिया को बुला के कुछ झाड़-फूंक करा लीजिए. कौनो भरोसा है, कुछ हो-हवा गया तो अउर महंगे पड़ेगा.

लोटन बहू के सामान समेटकर ले जाने के बाद ललन बाबा की माई दरवाजे पर जुटी भीड़ को ही गाली देने लगी हैं, ‘‘का इहाँ पतुरिया का नाच हो रहा है? तुम सब के घर माई-बहिन नहीं है का रे? इहाँ तमासा हो रहा है? धर के मुड़ीए ममोर दूंगी….’’ भीड़ तीतर-बीतर हो गई है.

घुरी राम गाँव का माना हुआ ओझा है. बहुत ख्याति है उसकी. जवार भर के पांच-छह गाँवों में जबरदस्त पूछ है. किसी को कोई हवा-बयार लग जाए, किसी को भूतीन-प्रेतीन पकड़ ले, किसी को बेटा चाहिए, किसी का मरद मान नहीं रहा है, किसी का सवांग कलकता से लौटा नहीं चार साल से- दौड़ो घुरिया के पास, पकड़ लाओ. किसी को भभूत देता है, किसी को फूल देता है, किसी से अंग्रेजी दारू और मुर्गा लेके शमशान में जाकर साधना करता है और सबकी बाधा दूर कर देता है. दूर न भी करे तो मोसिबत हलुक तो कर ही देता है. उसकी ओझई से परेशान रहते हैं सुमेसर तिवारी. वह उनका बनिहार है. कई बार काम अकाज होता है उनका घुरिया के ओझई से पर सुमेसर तिवारी झेले जा रहे हैं. गाँव के नान्ह टोली का कई ‘टॉप माल’ चखा चुका है उन्हें. यह बात कौन नहीं जानता. मुर्गा-दारू की कभी कमी नहीं होने दी. सुमेसर तिवारी की चार बात सह भी लेता है. गाँव-जवार में उसकी इतनी प्रतिष्ठा है फिर भी सुमेसर बाबा सबके सामने उसे चार बात कह लेते हैं, यह कम है क्या? बाबा इसी बात की लाज निबाहते हैं और बर्दाश्त किए जा रहे हैं घुरिया को. दोनों परस्पर एक-दूसरे को लाभान्वित कर रहे हैं.

घुरिया के बारे में कई किस्से मशहूर हैं जवार भर में. मैनेजर तिवारी ने एक किस्से का काफी प्रचार किया है. वे इसे सौ फिसदी हकीकत कहते हैं, जबकि घुरिया इसे इसे सौ फिसदी झूठ कहता है. गाँव में इस पर मिली-जुली राय है. पचमा मास्साब के लड़के की शादी के चार साल हो गए और कोई बाल-बच्चा नहीं. पूरा परिवार चिंतित. टोला-जवार चिंतित. हितई-नतई चिंतित. लड़की बांझ है. नहीं का बात करते हैं मरदे, लड़की तो हीरोईन है रे, मुअल बिया छीट दो तो फसल लहलहा जाएगी. लइकवे नामरद लगता है. आरे नहीं जाइएगा, एक से एक सुभेख गाय गाँव में बहिला नहीं निकल गई है. सुभेख होने से क्या होगा, खेत बंजर है. मरद में कभी दोस होता है हो. आरे आपको मालूम है, उसका हथियारे काम नहीं करता है, तो खेत उपजाउए होके झांट उखाड़ लेगी. ए मरदे कइसन बात कर रहे हो, देखे हो उसका हथियार? तरह-तरह की बातें. कुछ चिंता में, कुछ रस लेने के लिए विचार गोष्ठियां जगह-जगह. इन विचार गोष्ठियों की खबरें पचमा मास्साब तक भी पहुंचती. फलाने ने ये कहा, अलाने ने ये कहा. तरह-तरह की दवाई, तरह-तरह के उपाय. कथा-मनौती सब पर सब बेकार. हार कर घुरी को बुलाया पचमा मास्साब ने, घुरी तुम तो जानते ही हो. राम जी के दया से चार साल हो गया. घर में बाल-बुतरू न हो तो मनहूसी जैसा लगता है. घुरी थोड़ा कहना, ज्यादा समझना की तर्ज पर सब समझ गए, बस-बस मलिकार. घबराने की बात नहीं है. कब काम आएगा घुरिया. मलिकार दशहरा आने दीजिए.

दशहरा आया. दिन में दुर्गा सप्तशति का पाठ करते मैनेजर तिवारी. रात में घुरिया पचमा मास्साब को बहू को एक कमरे में बंद कर ना जाने कौन टोटरम करता. मुर्गा का मांस बनवाकर और अंग्रेजी दारू का पौव्वा, दो पाकेट अगरबती, एक शीशी सेंट और एक सोटा लेकर घुस जाता कोठरी में. कोठरी का दरवाजा बंद. कह दिया था, मलिकार जेतना दिन चलेगा मनेजर बाबा के पूजा, ओतने दिन चलेगा हमरा भी टोटरम. रात-रात भर हमको भगवती काली, कौड़ी कमछेयावाली के सुमिरन करना होगा. मलकिनी नहा धोके रात नौ बजे तैयार हो जाएं. बारह बजे कोठरी बंद करता था घुरिया. उसने पूरे परिवार को चेता दिया था कि सब लोग अपना इत्मीनान से सोए. खबरदार रात में कोई ढुका नहीं लगाएगा. कवाड़ी नहीं खटखटाएगा. अंदर से मलकिनी का भूत चिल्लाए तो खबरदार आना नहीं है. तरह-तरह की शर्त. संतान के लिए छाती पर पत्थर रखकर मान लिया पूरे परिवार ने.

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पहिला दिन तो परिवार के सब लोग जागते रहे. दूसरे दिन पूरा परिवार सो गया, जिसकी बीवी की ओझाई हो रही थी, वहीं जागता रहा और बेचैन रहा. अगले दिन पूछा उसने अपनी मेहरारू से- आ हो, का करता है घुरिया भीतरवा?

वह बोली, कुछ नहीं जी. आसनी बिछा के बैठ जाता है. अगरबती जलाते रहता है और दारू जमीन पर ढरकाते रहता है. का दो बुदबुदाते रहता है. कभी मीटवा खाता है और कभी सोटवा जमीन पर पटकता है. इहे भर रात. बारह बजे अइबे करता है, तीन बजे भोरहरिए निकल लेता है. तीन घंटा पूजा बस.

आ तुम का करती हो?

हम का करेंगे, हम खटोलवा प सुत जाते हैं अउर सपना देखते हैं.

पूरा परिवार आश्वस्त होकर सोने लगा अगली रात से.पर मनेजर तिवारी अपने घर में करवटें बदलते रहे.

छठ बाद सुनाई पड़ा कि पचमा मास्साब दादा बनने वाले हैं. धूमधाम से छठ करवाया मैनेजर तिवारी ने, पर कहते हैं कि घुरिया साला हरामी है.

लोग पूछते हैं कइसे, तो जो किस्सा सुनाते हैं मैनेजर तवारी, उसके पहले कहते हैं -किसी से कहना मत. पर मैनेजर तिवारी के जलने से का होता है. घुरिया भी बाभन का ही बेटा है. नान्ह के घर जन्मा है, बीज बाभन का है. देखते नहीं हैं कइसे बरता है उसका चेहरा. भक-भक. छह फीट का सुडौल शरीर दिया है परमात्मा ने और परमात्मा की दया से उसका जस बढ़ता ही जा रहा है. कोई कुछो कहे. नान्ह से बड़ तक चलती है उसकी पुरोहिती. जहाँ दवा-दारू-दुआ, पूजा-पाठ सब फेल, उहाँ घुरिया. घुरिया कोई न कोई जुगत निकाल देता है. गाँव में घुरिया नहीं होता तो लोटन बहू कितनों को खा गई होती. मनेजर तिवारी जोड़ते हैं, घुरिया लोटन बहू को खाता है. खाता है माने बूझते हैं ना?

***

भू्अर दुसाध चार दिन से बीमार पड़े हैं. पेट चल रहा है और बुखार टूट नहीं रहा है. लेदरा ओढ़ के सोए हैं और कंपकपी छूट रही है. गाँव मे सरकारी होस्पीटल है. होस्पीटल क्या है, भुवनेश्वर सिंह के दालान की एक कोठरी है जो नियम से खुल जाए तो महीने में तीन दिन खुलती है, नहीं तो भगवान जब चाहते हैं तब खुलती है. पीरो से एक कम्पोडर साब आते हैं. जिस दिन कोठरी खुलती है, उस दिन उसमें झाड़ू लगा देता है रमचरना. रमचरना कमकर भुवनेश्वर सिंह का चरवाह. वह होस्पीटल का चपरासी भी है. तीन सौ दरमाहा पाता है. कोठरी में रखे जग को मांजकर पानी भर देता है. कंपोडर साब पीरो के बड़का अस्पताल से फूकौना लाते हैं और जो उनसे मिलने आता है, उसको देते हैं. कहते हैं ई हथियार में पहिन के खेला करने पर बच्चा नहीं होता है. पीठ पीछे पूरा गाँव उनका मजाक उड़ाता है और उन्हें फूकौना डाक्टर कहता है. सामने लिहाज वश सब कमपोडर साब कहते हैं. उनके फूकौने को बच्चे गाँव में फूला-फूलाकर खेलते रहते हैं. एक दिन कंपोडर साब ने सिपाही अंकल को टोका, आप लोग फूकौनवा का इस्तेमाल नहीं का करते हैं? देखते हैं कि बच्चा सब दिन भर उसी से खेलता रहता है. सिपाही अंकल बिगड़ गए कम्पोडर साब पर, आरे मरदे का मजाक करते हैं. ई फूकौना पेन्ह के ऊ कुल्ह काम होगा? मजे नहीं आएगा. आ बच्चा तो भगवान जी नू देते हैं. ई फूकौना रोकेगा जी भगवान जी के देल? सरकारो बहिनचो गजबे चीज है. एगो मैडम बनी थी प्रधानमंतरी तो लोगिन के धर-धर के बधिया बनाने लगी थी. आ अब फूकौना बंटवाया जा रहा है. एकरी बहिन के सरकार…

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खैर लब्बोलुआब यह कि कम्पोडर साहब तो गाँव वालों के लिए दर्शन के भी दुर्लभ थे और कभी दर्शन देते भी थे तो लोग जानते थे कि फूकौना ही उन्हें मिल सकता है. इस प्रकार होस्पीटल गाँव में हेल्थ की दृष्टि से नहीं मनोरंजन के लिहाज से अपनी थोड़ी-बहुत उपयोगिता सिद्ध किए हुए था.

गाँव से होस्पीटल का ऐसा कोई समझौता तो था नहीं कि जिस दिन कम्पोडर साब आते उसी दिन गाँव के लोग बीमार पड़ते और आते ही खटाखट दवा लेकर निरोग हो जाते. लोग सालो भर बीमार पड़ते रहते थे और वे गाँव के नीमहकीम देवनारायण सिंह के भरोसे बीमार होते रहते थे और उनकी दवा खाकर अक्सरहाँ रोग से ही नहीं बल्कि जीवन से भी मुक्ति पाते रहते थे. जो थोड़े समर्थ थे वे ज्वाला सिंह की जीप में बैठकर जेठवार जाकर इलाज कराते थे. वहाँ के डॉक्टर तो रोज लगभग उपस्थित हो जाते थे पर कब आएंगे और कब चले जाएंगे-उनका भी ठिकाना नहीं था. खैर लोगों को भी बहुत फर्क नहीं पड़ता था. उनका तो यह मानना था, देखिए खोखी-सरदी छोड़ दीजिए तो कवनो बड़हन बीमारी असही नहीं हो जाती है. कवनो पाप किए होंगे तबे होती है. एह जनम में नहीं तो पिछला जनम में किए होंगे. आ जब पाप किए हैं तो डॉक्टर मैयाचो क्या करेगा जी, आपको सजाए तो भोगना ही न पड़ेगा. चलिए ठीक है गाँव में होस्पीटल है, भुनेसर भाई के दुआर पर खुल गया है. किरयवा तो मिल रहा है. कवनो बढ़िया काम किए होंगे पूरुब जनम में आज फल उठा रहे हैं.

प्रतिकार करते भुवनेश्वर सिंह, आरे का बढ़िया काम किए होंगे. नौ महीना से किराया नहीं मिला है. आपलोग जो खूब फूकौना फूला रहे हैं, एक दिन भगाएंगे कम्पोडर राम के तब बुझाएगा.

छांगुर सिंह ने कहा, आरे महराज ऐसा होइए नहीं सकता, नौ महीना में तो जनानी बाचा दे देती हैं. सरकार छिनरी कैसे नहीं पैसा देगी जी. लेने का लूर नू चाहिए.

भुवनेश्वर सिंह ने बोल छोड़ा, चंदना दुसाध बो बूझ रहे हैं का गोवरनमिंट को?

इधर लोग सरकार की मइया-बहिन को याद कर रहे थे. डॉक्टर, हॉस्पिटल आदि को फालतू करार दे रहे थे. उधर गाँव के एक कोने की टूटी और फूटी हुई कोठरिया में लेदरा ओढ़ के भुअर दुसाध एक सौ चार डिग्री बुखार से तड़प रहे थे. उल्टी कर रहे थे. बिस्तरा गंदा कर रहे थे. लछमीनिया रो रही थी, परवतिया रो रही थी.  अपनी ढही हुई और खाली नाद पर खूंटे से बंधी रंभाती-छटपटाती उनकी भइसिया रो रही थी. परवतिया कपड़ा भिगा लाई थी और उनका चेहरा पोंछ रही थी, बाबू, ए बाबू अंखिया तनी खोलो ना. तनी ताको ना. कईसन तबीयत है बोलो बाबू…बोलते-बोलते खुद ही रोने लगी परवतिया. परवितया रो रही है और भूअर के चेहरा पोंछ रही है. लछमीनिया भूअर के तलवे में तेल मल रही है. अचानक लछमीनिया भी बोकार फाड़ कर रोने लगी. परवतिया भागी देवनारायण सिंह के यहाँ, माई डगडर साहेब के लिआ के आते हैं, बाबू आंख नहीं खोल रहे हैं.

देवनारायण सिंह बिहिया बाजार जाने के लिए धोती पहन रहे हैं. जाकर पैर पर गिर पड़ी परवतिया, जान बचा लीजिए ऐ डगडर चाचा, बाबू कइसे -कइसे तो  कर रहे हैं. लगता हैं बचेंगे नहीं. आप ही भगवान हैं ए डगडर चाचा. जान बचा लीजिए बाबू के. बाबू बिना हमलोग कइसे जिएंगे, कइसे उबार होगा हो डगडर चाचा.

धत् साली, कुछो नहीं होगा भुअरा के. नान्ह कठजीव होता है, जल्दी मरता नहीं है. आ रहे हैं बिहिया से त चल एगो सूई देंगे टनमना जाएगा.

ना ए डगडर चाचा. बाबू अंखियो नहीं खोल रहे हों डगडर चाचा. चल के तनी देख लीजिए हो चाचा.

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धत् साली, जतरा प चोन्हा का कर रही है. कह रहे हैं न कि आ रही बिहियां से. ऊ मरेगा एतना झट से? बिहिए बड़ा विदेश में है. दू-चार घंटा में आ रहे हैं, चल…

ना ए चाचा जनवा बचा लीजिए बाबू के. बाबू बचेंगे ना ए चाचा..

देवनारायण सिंह की पत्नी बोली, जाके देख काहे नहीं लेते हैं, गरीब को. बेचारा सिरियस होगा. रो रही है बेचारी तो बड़का डगडर बन रहे हैं, अइसा गजब आदमी होता है?

तुम औरत सब न, नाक नहीं होता तो मइला खाती. तुम्हीं जानती हो कि मर जाएगा? ढेर मोह आ रहा है तो जाके तुम्हीं देख लो ना.. अपनी जनानी को डांटा देवनारायण सिंह ने.

ए महराज, मत जाइए बाकि घर में लड़ाई-झगरा मत कीजिए. अइसा निसरधी आदमी होता है…भुनभुना रही हैं वे.

आकाश-पाताल एक कर के रो रही है, रोए जा रही है परवतिया.

देवनाराण सिंह ने दवाई वाला चमड़े का बैग उठा लिया है- चल देख लेते हैं, नखरा मत पसार.

घर से बाहर निकलकर गली में सुनसान पाकर परवतिया की छाती दबोच लेते हैं देवनारायण सिंह.

छोड़िए हो चाचा. केहू देख लेगा हो चाचा.

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चुप्प साली. माल तो मजिगर हो गया है. उसकी छाती छोड़कर पीछे-पीछे चल रहे हैं देवनारायण सिंह. आगे-आगे भाग रही है परवतिया.

भूअर के घर पहुंचते ही नाक ढंक लेते हैं देवनारायण सिंह. बैग में काफी देर उटकेर कर एक पुराना सीरिंज और नीडल निकाल कर एक छोटी शीशी में दवा भर कर कहते हैं, चूतर पर लगेगा. कपड़ा हटाओ.

मालिक, गंदा किए हुए हैं सब. जवाब देती है लछमीनिया.

जाने दो, कहकर भूअर की बांह में सूई लगा देते हैं वे.

भूअर में कोई हरकत नहीं.

लाओ, जल्दी निकालो पचास रुपया. बिहिया जाना है. लेट मत करो.

मलिकार हम दे देंगे. परवतिया के बाबू ठीक हो जाएंगे तो दे देंगे कमाकर.

तोहनी सब में इहे कमी है. इसीलिए मैं जल्दी दवा-दारू नहीं करता. जल्दी ले आओ. नेटुअई मत पसारो. लाओ. डांटते हैं देवनारायण सिंह.

मलिका…र …

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ए जादा चालू नहीं. निकाल…

पुराना टीन के बक्सा हिलकोर के एक, दो, पांच, दस के कई फटे-पुराने-नए नोट मिलाकर वह सब देवनारायण सिंह के हाथ में रखती  है.

भूअर गों गों गों कर उल्टी कर रहे हैं.

देवनारायण सिंह इत्मीनान से रुपया गिन रहे हैं, हाँ बयालिस रुपया है. आठ रुपया बकाया है ध्यान रखना. वे पैसे लेकर चल देते हैं.

भूअर की हालत बिगड़ती जा रही है. शाम चार बजे तक वे मुंह से अजीब ढंग की आवाज निकालने लगे हैं. नाक से पानी बह रहा है और शरीर कांप रहा है. नन्ह टोली के काफी लोग इकट्ठा हो ए हैं.

ए परवतिया के माई कौनो ओझा से दिखाओ हो. लगता है, ई कौनो भूत-उत धर लिया है इनको. देख नहीं रही हो कइसे बोल रहे हैं.

हं हो लगता है उतरवारी अलंग वाला प्रेतवा धर लिया है.

आ दूर, बुलवा काहे नहीं लेती हो घुरी बचवा के. जान लोगी का तुम लोग भुअर बेचारू के. एक बूढ़ी महिला ने सलाह दी है.

घूमते-फिरते खुदे आ गए हैं घुरी. एक हाथ पर खैनी रखकर दूसरे हाथ के अंगूठे से उसे इत्मीनान से मसल रहे हैं. वे बहुत ध्यान से देख रहे हैं भुअर को. काफी देर देखते-देखते अचानक बोले हैं, उतर भर के ब्रह्म बाबा हैं. काफी नाराज हैं. अकेले नहीं होगा. नोनार के रामचन को भी बुलाना पड़ेगा.

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कोई रामचन को बुलाने भागा है. कुछ देर बाद हाथ में सोटा लिए रामचन अउर घुरी आ गए हैं, खटोला पर से जमीन पर उतारो बर्ह्म को.

सुध घी मंगाया गया. घर में ही था एक पाव. एक पाव से नहीं होगा. चलो शुरू करते हैं फिर देखा जाएगा. गाय के गोबर से बना गोइठा चाहिए. बगल के घर से आ गया है. परवतिया भाग के बलेसर साह के दुकान से लौंग और बाकी सामग्री ले आई है, जो जो घुरी और रामचन ने बताया है.

कोठरी में आग जला दी गई है. उसमें घी, सामग्री, लौंग डाला जा रहा है. सब देखनिहार लोगों को भगा दिया गया है. कोठरी का दरवाजा भिड़का दिया गया है. दोनो सयाने नशे में हैं. टोटरम शुरू करने के पहले लछमीनिया से मांगकर वे दम भर महुए की दारू चढ़ा चुके हैं. रामचन ने जलती आग में चार-पांच सूखी लाल मिर्चे झोंक दी है. भूअर का दम घुटने लगा है. वे छटपटाने लगे हैं.  दोनो सयाने झूम रहे हैं, तरह-तरह का अभिनय कर रहे हैं. और जब-जब भूअर छटपटाकर कुछ कहना चा रहे हैं, कभी उनके पैर, कभी हाथ पर सोटे से ठोक रहे हैं. भूअर दर्द से कराह रहे हैं. दोनों भूत उतारनेवाले धीरे-धीरे और क्रूर होते जा रहे हैं, मारो साले बर्ह्म को ऐसे नहीं उतरेगा. चमड़ी खींच लेना पड़ेगा. उन दोनों की निर्दयता देखकर परवतिया छटपटा रही है, कब ठीक होंगे हमार बाबू हो भइया? इनको का हो गया हो भइया?

लछमीनिया कभी-कभी उन दोनों को मारने से मना भी करती है, हाथ जोड़ती है तो वे उसे डपट देते हैं.

दोनो मां-बेटी छाती पर पत्थर रखकर ये सब झेल रही है. इसके पीछे वह अंधविश्वास है कि जो मार पड़ रही है वह भूअर पर नहीं बर्ह्म पिचास पर पड़ रही है. पर हर चोट के बाद भुअर कराह उठते हैं. वे उसी तरह निरुपाय हैं जैसे हलाल किया जा रहा बकरा.

सुबह होने को है. अब सयानों को लग गया है कि भुअर अब कुछ ही घंटों के मेहमान हैं. आपस में आंखों के इशारे से दोनों ने बतिया लिया.

घूरी बोला, लछमीनिया भुअर के बचे के चानस कम है. अब तैयारी कर लो. लगता है कि अब चला-चली की बेर आ रही है.

उसके इतना कहते हीं भूअर से लिपट के लछमीनिया और परवतिया विलाप करने लगी. लगा जैसे अपने विलाप से यमराज को मजबूर कर देंगी. भूअर को मरने नहीं देंगी. उन दोनो के हृदय विदारक विलाप सुन कर दोनों सयाने तेजी से खिसक लिए.

सुबह में मैदान होने के लिए हीरा बाबा नान्ह टोली की ओर से ही निकल रहे थे कि उन दोनों के विलाप सुनकर ठिठक गए. चोरी-ओरी हो गई का? परवतिया के साथ कौनो कुछ खेल गया का? भूअरा की आवाज नहीं आ रही है, भूअरा बीमार थ-मू गया का? उनसे रहा नहीं गया. चले गए उसके घर की ओर. वहाँ के हालात देखे तो उनका मन करुणा और क्रोध से एक साथ भर गया. नब्ज टटोली भूअर की…. और लगा कि अभी जिंदा है तो बिगड़ पड़े लछमीनिया पर, मुआना चाहती है का रे इसको? इ अब-तब कर रहा है, आ तुम सब बइठ के रो रही है. आरे ले के भागो जेठवार, उहाँ होगा डाक्टर नहीं तो मर जाएगा बेचारा. जल्दी करो. और पता नहीं क्या बड़बड़ाते हुए वे वहाँ से निकल गए. रास्ते में नान्ह टोली का जो दिखा, उसको गलियाते हुए और भूअरा को जल्दी अस्पताल ले भागने की नसीहत देते हुए वे मैदान की ओर निकल गए.

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धीरे-धीरे भुअर के दरवाजे पर भीड़ जुट गई. उसके कपड़े बदल कर उसे खटोला पर लिटाया गया और चार लोगों ने उठा लिया. पीछे-पीछे लछमीनिया लोटा में पानी लिए हुए और कुछ कपड़ा-लता और एक गठरी सम्हाले परवतिया. दोनों सुबकते हुए चल रही हैं. खटोला पर भुअर को सम्हाले लोग जल्दी पहुंचने के लिए दुलकी चाल से चल रहे हैं. ज्योंही गाँव से बाहर कुछ आगे निकले थे कि भुअर ने मुंह से अजब ढंग से आवाज निकाला. देखने के लिए खटोला जमीन पर रखा गया और देखते-देखते भुअर ने छटपटाकर प्राण त्याग दिए. उनका चेहरा एक ओर झूल गया.

छाती पीट-पीट कर और भूअर की लाश पर माथा पटक-पटक कर विलाप करने लगी लछमीनिया और परवतिया.

बीच-बीच लछमीनिया विलाप करते हुए बोलती जा रही थी-आरे कौन दुसमनिया निकले हो परवतिया के बाबू. आही हो रामा…. अब के हम लोगों को देखेगा हो रामा..चारू ओर अन्हार हो गया हो रामा…. ए परवतिया के बाबू, ए परवतिया के बाबू अंखिया तनी खोल…. परवतिया भी बाबू-बाबू चीखते हुए भूअर को जगाने का यत्न करने लगी.

जो लोग ले जा रहे थे, उनमें से भी दो की आंखें छलछला आई और उन्होंने गमछे से आंसू पोंछ लिया.

सुबह का समय था. गाँव के और लोग भी इकट्ठा होने लगे. लाश गाँव में वापस लाई गई.

दाह-संस्कार की तैयारी होने लगी. कोई कफन लाने भागा. ललन बाबा ने कहा कि टिकटी के लिए उनके बंसवार से बांस ले लिया जाए. कोई किसी के घर से रस्सी मांग लाया. पूरा गाँव गमगीन. भूअर के सीधेपन और परिश्रमी व्यक्तित्व की चर्चा होने लगी. जगह-जगह लोग आपस में उनसे जुड़े अनुभवों को आपस में बांटने लगे. ऐसे थे भूअर-वैसे थे भूअर. भूअरा गौ आदमी था. बड़टोली में भी मातम पसर गया.

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