महज चार दिनों बाद ही मतदान के चरणों की शुरुआत होने जा रही है। भाजपा नेतृत्व की कोशिश है कि ऐन वक्त पर मतदाताओं के दिल और दिमाग में यह बात अच्छी तरह से बैठा दी जाए कि सत्ता में नरेंद्र मोदी आ गए, तो देश की तस्वीर बदल जाएगी। कांग्रेस की सत्ता में कालेधन का जाल बहुत विस्तृत हो गया है। लाखों करोड़ रुपए की रकम काले धन के रूप में विदेशी बैंकों में जमा है। यह जमा रकम गलत तरीके से कमाई गई है। इसी काली अर्थ व्यवस्था ने ही देश में कई तरह के आर्थिक संकट खड़े किए हैं। यदि भारी बहुमत से मोदी आते हैं, तो यह गारंटी समझी जाए कि एक साल के भीतर यह धन वापस आ जाएगा। इस खजाने से गरीबों और वंचितों के लिए कारगर कल्याणकारी योजनाएं शुरू की जाएंगी। ताकि, पूरे देश में खुशहाली आ जाए। इन निर्णायक चुनावी क्षणों में मोदी जोर-शोर से यह राजनीतिक ‘सपना’ बेचने में जुट गए हैं। वे जगह-जगह चुनावी रैलियों में यह बताना नहीं भूलते कि विदेशों में जमा काले धन से कांग्रेस के आला नेताओं के तार जुड़े हुए हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम कई मौकों पर इस मुद्दे पर सफाई दे चुके हैं। बजट के दौरान भी उन्होंने उल्लेख किया था कि सरकार ने कालेधन को वापस लाने के लिए किस तरह की ताबड़-तोड़ कोशिशें की हैं?
उल्लेखनीय है कि 2009 के चुनावी अभियान में लालकृष्ण आडवाणी ने भी काले धन को कांग्रेस के खिलाफ एक निर्णायक मुद्दा बनाने की कोशिश की थी। इस चुनाव में एनडीए के ‘पीएम इन वेडिंग’ आडवाणी ही थे। उनके रणनीतिकारों को लग रहा था कि अरबों का विदेशों में पड़ा काला धन वापस लाकर वे लुंज-पुंज अर्थतंत्र में एक नई जान डाल देंगे। इसी चक्कर में भाजपा के नेताओं ने काले धन के आंकड़े को मनमाने ढंग से प्रचारित किया था। इस तरह का सपना बेचने की कोशिश की थी, मानो विदेश से यह पैसा आ गया, तो देश का हरेक गरीब भी कम से कम लखपति तो जरूर बन जाएगा। बताने की कोशिश की गई थी कि कैसे इतने धन से देश के हर गांव तक पक्की सड़क पहुंच सकती है और हर गांव को 24 घंटे बिजली मुहैया कराई जा सकती है? इस मुद्दे के बहाने यूपीए सरकार को घेरने की कोशिश हुई थी। लेकिन, 2004 की तरह ही इस चुनाव में भी भाजपा ने सियासी हार का स्वाद ही चखा था।
2009 की चुनावी हार के बाद ही भाजपा की राजनीति में आडवाणी को हाशिए पर डालने की मुहिम तेज हो गई थी। इसके साथ ही भाजपा में संघ नेतृत्व का हस्तक्षेप बढ़ता गया। संघ की कृपा से ही मोदी को ‘पीएम इन वेटिंग’ बनने का मौका मिला। जबकि, आडवाणी और उनकी लॉबी ने पूरी ताकत लगा दी थी कि मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार न घोषित किया जाए। पिछले दो महीनों में मोदी का कद काफी बढ़ गया है। अब तो हालात ये हैं कि मोदी की छवि के मुकाबले पार्टी का कद बौना लगने लगा है। मीडिया सर्वेक्षणों में बताया जा रहा है कि देश के बड़े हिस्से में मोदी की चुनावी लहर चल पड़ी है। इसके चलते ही कांग्रेस का राजनीतिक मनोबल एकदम टूट गया है। एक हद तक यह जमीनी हकीकत भी मानी जा रही है। जयराम रमेश जैसे कांग्रेस के चर्चित नेता खुलकर कहने भी लगे हैं कि इस बार चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं होने जा रहा है। क्योंकि, केंद्र सरकार का संवाद आम जनता से ठीक ढंग से नहीं हो पाया। इसका बड़ा नुकसान कांग्रेस को झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए।
कांग्रेस के सहयोगी दल एनसीपी के प्रमुख शरद पवार पिछले दिनों ही कह चुके हैं कि इस बार चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है। उन्होंने भी आशंका जताई है कि कांग्रेस को काफी बड़ा चुनावी धक्का लग सकता है। क्योंकि, महंगाई जैसे मुद्दों पर देश की जनता में नाराजगी है। हमारी सरकार लोगों को ठीक से यह नहीं बता पाई है कि आखिर, महंगाई पर नियंत्रण किन वजहों से नहीं हो पाया है? इसके चलते यूपीए सरकार को ही आम आदमी गुनहगार मानने लगा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जयराम रमेश और पवार जैसे नेताओं की ये टिप्पणियां यूपीए की हताशा की झलक दे ही रही हैं। इससे भाजपा नेतृत्व के हौसले काफी बढ़ गए हैं। उनकी कोशिश है कि चुनावी लोहा अभी गर्म है, ऐसे में इस दौर में इतने जोरदार प्रहार किए जाएं कि कांग्रेस का रहा-सहा हौसला भी पस्त हो जाए। नवादा (बिहार) की चुनावी रैली में मोदी ने काले धन का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। उन्होंने बिहार के लोगों से अपील कर डाली कि वे सत्ता में आएंगे, तो हर हाल में विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस ले आएंगे। इसका उपयोग गरीबों की जिंदगी संवारने में लगाएंगे। उन्होंने इशारों-इशारों में ही काले धन की अर्थ व्यवस्था के लिए सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को कोसा। यह सवाल किया कि जब स्विस बैंक अमेरिका को उन लोगों की सूची दे सकता है, जिन्होंने अवैध ढंग से उनके यहां पैसा जमा किया है, तो भारत सरकार ऐसी सूची क्यों नहीं हासिल कर पाई? वे कटाक्ष करते हैं कि यह सूची इसीलिए नहीं आई, क्योंकि काला धन जमा करने वालों में उनके ही तमाम लोग हैं।
इस संदर्भ में वित्तमंत्री पी. चिदंबरम पहले ही कह चुके हैं कि उनके मंत्रालय ने कई बार स्विस सरकार पर दबाव बनाया कि वह स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा धन का ब्यौरा दे और जिनके खाते हैं, उनकी सूची दे दे। जी-20 जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भी उन्होंने स्विस सरकार पर दबाव डालने के लिए कई बार मुद्दा उठाया है। लेकिन, जवाब यही मिला कि अमेरिका सरकार को जो डाटा मिला है, वह ‘चोरी’ का है। ऐसे में, इस तरह के गैर-सरकारी डाटा को वे किसी और देश को नहीं दे सकते। इसके बाद भी सरकार अंतरराष्ट्रीय मंचों से दबाव बनाने में लगी है। ऐसे में, भाजपा नेताओं का यह आरोप सरासर गलत है कि विदेश से काले धन को वापस लाने के मुद्दे पर यूपीए सरकार गंभीर नहीं रही। उन्होंने सवाल किया है कि छह साल तक केंद्रीय सत्ता में एनडीए सरकार भी रही है। लेकिन, उस दौर में यह सरकार विदेशों में पड़ी ब्लैक मनी क्यों नहीं ला पाई थी? इसका भी जवाब भी मोदी जैसे नेताओं को देना चाहिए।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर कहते हैं कि विदेशों में जमा काले धन का मुद्दा भाजपा ने केवल चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल किया है। सच्चाई यह है कि कई राज्यों में भाजपा सरकारों में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला है। इसी भ्रष्टाचार की संस्कृति से काले धन का जाल फैलता है। मणिशंकर ने आरोप लगाया कि तमाम कॉरपोरेट घराने मोदी-मुहिम के समर्थन में हैं। यह हकीकत है कि ये लोग अरबों रुपए का काला धन भाजपा की चुनावी मुहिम में लगा रहे हैं। ऐसे में, कॉरपोरेट घरानों के समर्थन से सत्ता की कुर्सी का सपना देखने वाले मोदी भला कितना कुछ कर पाएंगे? भाजपा सूत्रों के अनुसार, इस दौर में काले धन का मुद्दा बाबा रामदेव को खुश करने के लिए भी उठाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि योगगुरु इस मुद्दे पर देशव्यापी आंदोलन चला चुके हैं। उन्होंने पिछले दिनों भाजपा नेतृत्व पर दबाव बनाया है कि काले धन के मुद्दे को चुनाव में जोर-शोर से उठाया जाए। क्योंकि, ऐसे मुद्दों से कांग्रेस की राजनीतिक घेराबंदी करना ज्यादा आसान होगा।
लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।