प्रतिभूति बाज़ार की नियामक संस्था, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड(सेबी) के प्रयास चिटफंड कम्पनियों की फर्जी योजनाओं से राहत नहीं दिला पा रहे हैं। सेबी हालांकि लगातार प्रयास कर रही है कि जनता की मेहनत की कमाई को फर्जी योजनाओं के सब्जबाग दिखा कर लूटने वाली कम्पनियों पर लगाम कस सके। ऐसा होना अभी भी मुमकिन नहीं दिख रहा है क्योंकि सरकारी नुमायंदों, सेलिब्रटीज और नेताओं का गठबंधन बार-बार आड़े आ जाता है। यहाँ तक कि खिलाड़ी और अभिनेता भी इसमें लिप्त पाये जाते है।
बहरहाल, एक बार फिर सेबी ने तथाकथित रियल स्टेट कही जाने वाली चिटफंड या सामूहिक निवेश वाली कम्पनियों पर लगाम कसते हुए उनके नकद निवेश पर रोक लगा दी है। अब केवल चेक, बैंक-ड्राफ्ट जैसे बैंकिंग चैनलों के जरिये ही इन योजनाओं में निवेश किया जा सकेगा। सेबी के इस कदम का फायदा आम निवेशकों तो मिलेगा ही, साथ ही इससे फर्जी स्कीमों के जरिये मनीलांड्रिंग की गतिविधियों पर भी रोक लगेगी। नियामक की ओर से जारी नए नियम गुरुवार से ही लागू हो गए हैं।
सेबी के नए नियम निवेशकों को सारधा जैसे घोटालों का शिकार होने से बचाएंगे। इनसे सीआइएस के जरिये फंड जुटाने की गतिविधियों में पारदर्शिता आएगी। इसके साथ ही धन के स्त्रोत और ऐसी स्कीमों में पैसा लगाने वाले असल निवेशकों की भी आसानी से पहचान की जा सकेगी। हाल के वर्षो में बड़ी तादाद में ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें भोले-भाले निवेशकों को गैरकानूनी सामूहिक निवेश योजनाओं के जरिये ठगा गया है। कई मामलों में तो ऐसी स्कीमों के संचालक नियामकों और कानून लागू कराने वाली एजेंसियों द्वारा पकड़े जाने पर निवेशकों को रकम लौटा देने का दावा कर बच निकलने की कोशिश करते हैं।
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