अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपनों को देय. यह कहावत अजमेर जिले की यावर नगर परिषद के सभापति डॉ. मुकेश मौर्य पर सटीक साबित होती है. अपने चहेतों को उपकृत करने के लिए सभापति हमेशा सुर्खियों में रहते हैं. कुछ समय पूर्व सफाई कर्मचारी भर्ती मामला और अवैध कॉम्पलैक्स निर्माण विवादों में रहा था। इस बार तो सभापति ने सारी हदें पार कर दी. अपना उल्लू साधने के लिए पार्षदों को लड़ाने में माहिर सभापति ने अब पत्रकारों में फूट डाल दी.
कांग्रेस राज में जमकर कथित भ्रष्टाचार करने वाले यावर नगर परिषद सभापति मुकेश मौर्य भाजपा राज आते ही सकते में आ गए हैं. सत्ता बदलते ही भाजपा पार्षदों ने भी भ्रष्टाचार की पोल खोलना शुरू कर दिया है. सभापति की शिकायतें स्वास्थय शासन विभाग और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में की गई.
समाचार पत्रों में यह खबरें प्रकाशित होते ही सभापति की नींद उड़ गई. उन्हें भ्रष्टाचार का खेल एसीबी और मुख्यमंत्री तक पहुंचने का डर सताने लगा. इस मामले को दबाने और गोरखधंधों को छिपाने के लिए सभापति ने चुनिंदा पत्रकारों को भूखण्डों की लॉलीपोप थमा थी. प्रमुख समाचार पत्रों के प्रभारियों और परिषद की बीट देखने वाले संवाददाताओं को भूखण्ड आवंटित कर दिए. इतना ही नहीं सभापति ने अपने ‘चमचों’ को राजी करने के लिए उनसे जुड़े कम्प्यूटर ऑपरेटर और फोटोग्राफर्स के नाम भी भूखण्ड आवंटित कर दिए.
हालांकि दिखावे के लिए भूखण्ड आवंटन की यह प्रक्रिया 20 दिसंबर को पत्रकारों के सामने अंजाम दी गई मगर इस प्रक्रिया में 52 आवेदकों में से सिर्फ 13 आवेदकों को ही लाभ दिया गया. शेष फाइलें मौके पर मौजूद तक नहीं थी. भूखण्ड से वंचित पत्रकारों द्वारा कारण पूछे जाने पर सभापति ने टालमटोल जवाब दिए. न तो उनकी फाइलें मौके पर मंगवाई गई और न हीं उन्हें बताया गया कि फाइलों में आखिर ऐसी क्या कमी रही जिनकी वजह से उन्हें इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया. पत्रकारों के नाराजगी जाहिर करने पर सभापति कक्ष में भूखण्ड का लाभ पाने वाले पत्रकार भड़क गए और सभापति की हिमायत करने लगे.
मॉर्निंग न्यूज के विष्णुदत्त धीमान, ईटीवी के सुमित सारस्वत, केशवधारा के संपादक संदीप बुरड़ ने सभी पत्रकारों की फाइलें मौके पर मंगवाने और फाइलों में कमियां बताने की बात कही. इस पर भूखण्ड का लाभ लेने वाले राजस्थान पत्रिका के भगवत दयाल सिंह और दैनिक नवज्योति के किशनलाल नटराज आगबबूला हो गए. पत्रिका का भगवत दयाल तो इतना भड़क गया कि संदीप बुरड़ से गाली-गलौच करते हुए मारपीट के लिए दौड़ पड़ा. मौके पर मौजूद पत्रकारों और कर्मचारियों ने बीच बचाव किया. ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाने वाले सभापति मुस्कुराते हुए यह सारा नजारा देख रहे थे.
उनके चेहरे की कुटिल मुस्कान साफ बयान कर रही थी कि वे अपना उल्लू साधने में सफल रहे. सभापति ने पत्रकार विमल चौहान, राहुल पारीक, हेमंत कुमार साहू, कमल किशोर प्रजापति, संतोष कुमार त्रिपाठी, किशनलाल नटराज, मोमीन रहमान, राजेश कुमार शर्मा, पदम कुमार सोलंकी, कमल कुमार जलवानियां, तरुणदीप दाधीच, भगवत दयाल सिंह, महावीर प्रसाद को पत्रकार कॉलोनी में भूखण्ड आवंटित किए हैं. शेष आवेदकों को सभापति ने झांसा देकर टरका दिया.
सभापति कक्ष से बाहर आकर पत्रकार मनीष चौहान, दिलीप सिंह, बबलू अग्रवाल, संदीप बुरड़, सुमित सारस्वत, विष्णु धीमान, बृजेश शर्मा, विष्णु जलवानियां, यतीन पीपावत ने नाराजगी जाहिर की. पत्रकारों की यह नाराजगी भगवत दयाल को रास नहीं आई और उसने धमकी दे डाली कि ‘देखता हूं अब तुम लोग प्लॉट कैसे लेते हो. तुम्हारी …. में दम हो तो सभापति से लेकर दिखाना.’
उसके इस कथन से साफ जाहिर होता है कि दलाल सरीके ये पत्रकार चाटुकारिता करते हुए सभापति के तलुवे चाटते हैं और उनकी गुलामी करते हैं. इस बयान से मिलीभगत भी साफ जाहिर होती है. हमारे सूत्रों ने तो इतना तक बताया कि प्रक्रिया शुरू होने से पहले सूची कुछ और थी, जिसे बाद में बदल दिया गया. इस बीच किशनलाल को सभापति कक्ष में सभी पत्रकारों की फाइलें टटोलते हुए देखा गया. इस बात को लेकर वहां मौजूद कुछ पार्षद भी हैरत में पड़ गए थे कि आखिर सभापति के राज में यह सब क्या हो रहा है.
सभापति द्वारा अंजाम दी गई कि यह पूरी कार्यवाही अवैध थी. इसे पारदर्शी बनाने की बजाय गोपनीय रखा गया. सभापति ने नियमों को दरकिनार कर चहेतों को रेवडियों की तरह भूखण्ड आवंटित कर दिए, ताकि उनके मुंह बंद रहें. यह प्रक्रिया पूरी तरह नियम विरूद्ध थी, जो कई सवाल खड़े करती है.
नियमानुसार इस प्रक्रिया का चयन उस कमेटी द्वारा होना चाहिए था, जिसमें सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी एवं संपादकीय टीम से जुड़ा कोई वरिष्ठ पत्रकार सदस्य शामिल हो. जबकि सभापति द्वारा मनमर्जी से गठित की गई पांच सदस्यों की कमेटी में न तो पीआरओ प्रतिनिधि था और न ही कोई संपादकीय सदस्य. सभापति की अध्यक्षता में बनी कमेटी में आयुक्त ओमप्रकाश ढीढवाल, सहायक लेखाधिकारी घनश्याम तंवर, कार्यालय अधीक्षक दुर्गालाल जाग्रत, वरिष्ठ लिपिक भंवरनाथ रावल शामिल थे.
वंचित आवेदकों ने प्रक्रिया पर संदेह जताते हुए भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि कुछ आवेदकों को योग्य नहीं होने के बावजूद भूखण्ड दे दिए गए हैं, जबकि योग्यता रखने वाले आवेदकों की अनदेखी की गई. सभापति ने कुछ समय पूर्व पत्रकारिता में कदम रखने वाले अनाडियों को पत्रकार की श्रेणी में शामिल कर लिया, जबकि राज्य सरकार द्वारा अधिस्वीकृत पत्रकारों को दरकिनार कर दिया. सभापति ने जिस मोमीन रहमान को भूखण्ड आवंटित किया है वो कुछ समय पूर्व नव'योति में कम्प्यूटर ऑपरेटर के पद पर लगा था. प्रेस फोटोग्राफर कमल किशोर प्रजापति उर्फ सुमन प्रजापति अशिक्षित है. यह फोटोग्राफर अपनी कारगुजारियों के कारण किसी भी संस्थान में एक साल से 'यादा नहीं टिकता है. महावीर प्रसाद दैनिक भास्कर के सर्कुलेशन विभाग में कार्यरत है. सुबह उठकर अखबार बेचने वाले को भी सभापति ने न जाने क्यों प्रक्रिया में शामिल कर भूखण्ड का लाभ दे दिया. वर्षों से पत्रकारिता में जीवन झोंक रहे 80 वर्षीय अधिस्वीकृत पत्रकार भंवरलाल शर्मा को योजना का लाभ नहीं दिया गया.
आखिर क्या वजह रही कि चयन कमेटी में संपादकीय सदस्य और पीआरओ को शामिल नहीं किया गया? वर्षों से सिर्फ पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों की अनदेखी क्यों की गई? आखिर ऐसी क्या सांठ-गांठ रही कि किशनलाल को सभापति कक्ष में पत्रकारों की फाइलें टटोलने की परमिशन दी गई? आखिर क्या वजह रही कि राजेश शर्मा, किशनलाल और भगवत दयाल पूरी प्रक्रिया के तहत अगुवाई करते हुए घर-घर जाकर फार्म भरवाते रहे और बाद में घालघुसेड़ कर खुद को भूखण्ड मिलने के बाद चुप्पी साध गए? सात दिवस की निर्धारित अवधि में आवेदन फार्म जमा करवाने के बाद परिषद ने नोटिस थमाकर आपूर्तियां पूरी करने के लिए तीन दिवस का समय दिया था। निर्धारित अवधि में पत्रकारों ने कमियों की पूर्ति कर दस्तावेज जमा करवा दिए। इसके बाद फिर कौनसी कमियां रह गई जिनकी वजह से लॉटरी के वक्त फाइलों को मौके पर नहीं मंगवाया गया? आखिर लॉटरी प्रक्रिया के दौरान वंचित आवेदकों को पूछने पर भी फार्म की कमियां क्यों नहीं बताई गई?
नियमानुसार सभी फाइलें चैक होने के बाद चयनित फाइलों के आवेदकों की लॉटरी निकालनी थी, जबकि सभापति ने प्लॉट की लॉटरी निकाली. 27 में से 13 प्लॉट आवंटित करने के बाद अब 14 प्लॉट शेष बचे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि शेष 14 प्लॉट बचे हुए 39 आवेदकों को कैसे दिए जाएंगें? इन सभी सवालों को दरकिनार कर सभापति ने अपने शेष कार्यकाल को राजी-खुशी निकालने के लिए पत्रकारों को मैनेज किया है. वैसे राजनीति में लेन-देन की परंपरा तो वर्षों से चली आ रही है, मगर काले कारनामों को छुपाने के लिए भूखण्ड देकर मुंह बंद करने का यह तरीका नया है जो जनप्रतिनिधियों के साथ शहर में चर्चा का विषय बन गया है. अब देखना है कि संवेदनशील और पारदर्शी सरकार के शासन में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाले इन पत्रकारों के साथ क्या न्याय होगा.
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.