औरंगाबाद जिले के पत्रकारों का हाल भी अजीब है, पहले तो आंदोलन करते है, जिलाधिकारी को अल्टीमेटम देते है, फिर कब मान जाते है पता ही नहीं चलता। करीब एक माह पूर्व औरंगाबाद के पत्रकारों ने सूचना भवन में एक आपात बैठक बुलाई थी। बैठक में हिंदुस्तान अखबार को छोड़कर बाकी सभी अखबारो एवं इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। सभी ने एक मत से कहा की औरंगाबाद एसडीओ राजीव रौशन के विदाई समारोह में उन्हें बुलाया नहीं गया और जिलाधिकारी खबरों को लेकर पूरी जानकारी नहीं देते है इसलिए हम लोग खबरों का बहिष्कार करेंगे और जिलाधिकारी के नाम और फ़ोटो नहीं छापेंगे।
उसके बाद लगातार कई बैठकें हुयी और जिला एवं प्रखंड स्तर के पत्रकारों से भी कहा गया की प्रशासन की खबरों का बहिष्कार करें और साथ-साथ चलें। बैठके में संघ बनाने से लेकर कई मुद्दो पर चर्चा हुई। यहाँ तक हुआ की पत्रकारों ने जिला सुचना संपर्क पदाधिकारी बिरेन्द्र शुक्ल के विदाई समारोह का बहिष्कार किया। लेकिन नतीजा रहा वही ढाक के तीन पात। कुछ दिनों पूर्व हसपुरा में हुई 6 मौतों को लेकर डीएम ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स बुलायी तो पत्रकार दौड़ पड़े और जिलाधिकारी के सभाकक्ष में उपस्थित हो गए। जिलाधिकारी ने प्रेस कांफ्रेंस शुरु की तो पत्रकार उनकी बातो को नोट करने लगे। हद तो तब हो गई जब पत्रकारों के सामने नए प्रभारी डीपीआरओ राजेश कुमार ने कहा की सर पत्रकारों की भी कुछ समस्याए हैं, तो पत्रकार अपनी समस्या गिनाने लगे। जिलाधिकारी ने आश्वासन दिया कि पत्रकारों को पूरी जानकारी दी जायेगी। इस पर पत्रकार खुश हो गए और जिलाधिकारी के नाम और फ़ोटो दोनों छापना शुरू कर दिया।
मलाल इस बात का है की कल तक पत्रकार कोई भी निर्णय बैठको में करने का बात कहते थे लेकिन बिना बैठके के नाम और फ़ोटो छापना पत्रकारो के निर्णय और आंदोलन पर सवाल खड़ा करता है।
धीरज पाण्डेय
औरंगाबाद(बिहार)
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