इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने आज सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर द्वारा दहेज़ के कुप्रभावों को रोकने के लिए बनाए गए उत्तर प्रदेश दहेज़ प्रतिषेध नियमावली 1999 के पूर्ण अनुपालन हेतु दायर पीआईएल को ख़ारिज कर दिया।
जस्टिस सुनील अम्बवानी और जस्टिस डीके उपाध्याय की बेंच ने वादिनी की अनुपस्थिति में बिना उन्हें सुने यह निर्णय किया कि यह याचिका बिना किसी रिसर्च के है और लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए की गयी है। यद्यपि कोर्ट ने माना कि समाज में दहेज़ के गंभीर दुष्परिणामों से इनकार नहीं किया जा सकता है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि डॉ. ठाकुर ने यह पीआईएल अच्छे उद्देश्य के लिए दायर नहीं किया है। उन्होंने कहा कि समाज की बुराई दूर करने के लिए बनाए गए किसी भी क़ानून का पालन नहीं होना वादिनी के लिए पीआईएल का विषय हो जाता है।
इसी बेन्च ने एक सप्ताह पहले यह आदेश पारित किया था कि डॉ. ठाकुर प्रत्येक पीआईएल के साथ रजिस्ट्री में 25,000 रुपये जमा कराएंगी।
डॉ. ठाकुर ने कहा कि प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत कहता है कि बिना पक्ष को सुने कोई भी निर्णय नहीं किया जाना चाहिए और वह इस आधार पर इस महत्वपूर्ण मामले में अपील करेंगी।