सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर द्वारा अधिवक्ता अशोक पाण्डेय के साथ इलाहाबाद हाई कोर्ट, लखनऊ बेंच में जस्टिस डॉ सतीश चंद्रा के लखनऊ से इलाहाबाद बेंच में हुए ट्रांसफर तथा जजों के सम्बन्ध में शिकायत प्रकोष्ठ बनाए जाने सम्बन्धी पीआईएल के बाद उन्हें आज गाली गलौज तथा तीव्र दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। जहां कुछ अधिवक्ताओं ने उन्हें कोर्ट नंबर 2 के बाहर भी धमकी दी वहीँ गेट नंबर 3 के सामने काफी संख्या में अधिवक्ताओं ने उन्हें घेर कर उनसे बदसलूकी की। उन्होंने कहा कि वे किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा बार के मामले में दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं करेंगे और डॉ ठाकुर को कोर्ट परिसर में घुसने नहीं देंगे। बड़ी मुश्किल से कोर्ट सुरक्षाकर्मियों द्वारा डॉ ठाकुर को उनके वाहन तक पहुँचाया जा सका।
डॉ. ठाकुर ने इस की रिपोर्ट भारत के मुख्य न्यायाधीश और इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजी है और कोर्ट परिसर में अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कराये जाने की मांग की है। उन्होंने वजीरगंज थाने में भी एफआइआर के लिए प्रार्थनापत्र दिया है और डीजीपी यूपी को इस सम्बन्ध में शिकायत भेजी है।
डॉ. ठाकुर द्वारा दायर पीआईएल के अनुसार जस्टिस डॉ. चंद्रा पर लगाए गए दुर्व्यवहार के आरोप की बिना किसी जांच के उन्हें मात्र वकीलों की हड़ताल के कारण ट्रांसफर किया जाना अनुचित है, इससे गलत सन्देश जाएगा, अतः उसे निरस्त किया जाये।
डॉ. ठाकुर द्वारा थाना प्रभारी को लिखा गया पत्र
सेवा में,
थाना प्रभारी,
थाना वजीरगंज,
लखनऊ
विषय- मा० इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ बेंच में मेरे द्वारा दायर एक जनहित याचिका संख्या 735/2014 (एम/बी) में आज दिनांक 03/02/2014 को घटित आपराधिक घटना के क्रम में
महोदय,
कृपया निवेदन है कि मैं डॉ नूतन ठाकुर एक सामाजिक कार्यकर्ता हूँ जो विभिन्न सामाजिक विषयों पर कार्य करती हूँ और इस सम्बन्ध में मा० न्यायालयों में जन हित याचिका भी दायर किया करती हूँ।
मैंने अधिवक्ता श्री अशोक पाण्डेय के साथ दिनांक 29/01/2014 को मा० इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ बेंच में मा० जस्टिस डॉ सतीश चंद्रा के लखनऊ बेंच से इलाहाबाद बेंच में हुए ट्रांसफर और एक न्यायिक शिकायत प्रकोष्ठ के गठन के सम्बन्ध में एक जनहित याचिका संख्या 735/2014 (एम/बी) दायर किया है, जिसकी उस पत्र में किये उल्लेख के अनुरूप आज दिनांक 03/02/2014 सोमवार को सुनवाई हुई। सुनवाई कोर्ट नंबर दो में जस्टिस इम्तियाज़ मुर्तजा और जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय की बेंच के सामने हुई। बहस के दौरान भी शोर शराबा किया गया और सुनवाई में व्यवधान का प्रयास किया गया। कोर्ट में सुनवाई समाप्त होते ही अन्दर कोर्ट में ही एक महिला अधिवक्ता ने नाराजगी भरे स्वर में मुझे कहा कि वैसे तो कोई बात नहीं बनती है, बड़ी मुश्किल से एक मामले में सफलता मिली और उसमे भी ये टांग अड़ाने चली आयीं, इनसे क्या मतलब है?
जब मैं कोर्ट नंबर दो से बाहर आई तो कुछ अधिवक्तागण ने कहा है कि बाहर से जो लोग आते हैं और बार के नहीं हैं, उन्हें न्यायालय परिसर में घुसने नहीं देना चाहिए। पता नहीं इन्हें घुसने कैसे देते हैं?
फिर जब मैं गेट नंबर तीन के पास पहुंची और वहां समय लगभग 11.30 बजे एक बेंच पर बैठ कर अपना कुछ काम कर रही थीं तो वहां एक महिला अधिवक्ता, जिन्हें मैं नाम से नहीं जानती पर जिनसे मिलती रही हूँ और जिन्हें देख कर आसानी से पहचान लूंगी, मेरे बगल में आ कर बैठ गयीं। वे मुझे काफी धमकी भरे स्वर में यह पीआईएल करने के लिए दोषी ठहराने लगीं। मैं उनके सामने अपना पक्ष रख ही रही थी कि वहां एक साथ कई सारे अधिवक्तागण आ गए। उनकी संख्या करीब तीस-चालीस की होगी। वे लोग एक साथ क्रुद्ध और आक्रोशित भाषा में मुझे भला-बुरा कहने लगे। एक ने कहा कि आगे से बार के मामलों में नहीं पड़ें। वे सारे लोग शोर-शराबा कर रहे थे और मुझे कई प्रकार से धमकियां दे रहे थे। यह होते ही मुझे चारों तरफ से सुरक्षाकर्मियों ने घेर लिया जिनमे न्यायालय परिसर में तैनात सीआरपीएफ के लोग तथा स्थानीय पुलिसवाले भी थे। इस प्रकार मेरे चारों तरफ सुरक्षाकर्मियों का घेरा था और उसके चारों ओर कई अधिवक्तागण की भीड़ थी जो मेरे तरफ धमकी भरी बातें कर रहे थे। इनमे महिला तथा पुरुष अधिवक्ता दोनों थे। वे लोग ज्यादातर यह कह रहे थे कि ये बाहर की औरत यहाँ हमारे मामले में कैसे चली आई, इसकी हिम्मत कैसे हुई। हम इसे आगे से कोर्ट में घुसने ही नहीं देंगे। हम इसका कोर्ट में घुसना बंद करा देंगे। वे कह रहे थे कि जब ये बार की सदस्य नहीं है तो कोर्ट में आई क्यों और हमारे मामले में किस हैसियत से पड़ी। वे लोग लगातार अनुचित धमकाने वाली बातें कर रहे थे। जब यह सब घटना घट रही थी तो एक पुलिस सब-इन्स्पेक्टर भी मौके पर आये थे, जो संभवतः स्थानीय थाना प्रभारी थे। उन्होंने अपना फोन नंबर 094500-33399 भी दिया था कि आगे से कोई बात हो तो हमें तुरंत बताईयेगा।
करीब बीस-पच्चीस मिनट तक यह सिलसिला चलता रहा. इसके बाद सुरक्षाकर्मी मुझे कोर्ट परिसर से बाहर ले गए. वहां मैं अपने वाहन पर बैठ कर किसी तरह उस स्थान से निकल सकी। चूँकि उपरोक्त कृत्य आपराधिक कृत्य में आता है, अतः मैं आपसे निवेदन करती हूँ कि इस सम्बन्ध में प्रथम सूचना रिपोर्ट अंकित कर अग्रिम आवश्यक कार्यवाही किये जाने की कृपा करें। मैंने इस याचिका के अतिरिक्त भी मा० उच्च न्यायालय में कई सारी याचिकाएं की हुई हैं जिनमे मुझे अक्सर मा० न्यायालय जाना पड़ता है मैं नहीं समझती कि इस घटना से डर के मेरा कोर्ट जाना न्यायहित में किसी भी प्रकार से उचित होगा। जिस प्रकार से मुझे बाहरी व्यक्ति कह कर धमाका गया और कोर्ट परिसर में नहीं घुसने की धमकी दी गयी, वह भी अपने आप में एक गंभीर मामला है। अतः कृपया मेरे द्वारा प्रस्तुत तथ्यों की गोपनीय तथा/अथवा खुली जांच के आधार पर आवश्यकतानुसार सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने की कृपा करें ताकि मैं निर्भीक भाव से कोर्ट परिसर में आ-जा सकूँ और आज जो घटना घटी है, उसकी पुनरावृत्ति ना हो सके।
मैं निवेदन करुँगी कि कृपया इसे सर्वोच्च प्राथमिकता देने की कृपा करें ताकि पुनः आज घटित घटना की किसी भी प्रकार से पुनरावृत्ति ना हो जाए।
पत्र संख्या- NT/DSC/HC/01
दिनांक-03/02/2014
भवदीय,
(डॉ नूतन ठाकुर )
5/426, विराम खंड,
गोमतीनगर,
लखनऊ-226010