लोकसभा चुनावों के इस दौर में तमाम राजनैतिक दल जहाँ एक दूसरे पर विभिन्न प्रकार के लांछन तथा आरोप-प्रत्यारोप लगाने में व्यस्त हैं, वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल ने भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी को अंबानी का मोहरा बताया है। देश व दुनिया में आई सूचना क्रांति और सूचना के अधिकार कानून के जरिये अब बड़ी तेजी से राजनेताओं, राजनैतिक दलों, अफसरों तथा व्यापारिक व औद्योगिक घरानों के बीच लंबे समय से पर्दे के पीछे चलते आ रहे गठजोड़ की कलई खुलने लगी है। इनके पारस्परिक अन्योन्याश्रित सम्बंधों में जब जन-जागरूकता के कारण व्यवधान आने लगा, तब इन्हें जारी रखने को नये रास्ते तलाशे जाने लगे हैं। इसी क्रम में अमेरिका तथा यूरोपीय देशों की नकल करते हुए अब भारत में भी बड़े कॉर्पोरेट घरानों द्वारा इलेक्टोरल ट्रस्टों के गठन की शुरुआत की जा चुकी है।
पिछले अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि देश की सत्ता में चाहे जो भी रहा, देश-विदेश के व्यापारिक तथा औद्योगिक घरानों ने उसका जमकर लाभ उठाया और आम आदमी को लूटने में सब एक दूसरे से बढ़चढ़ कर रहे हैं। ये सभी देश के संसाधनों पर कब्जा जमाने से लेकर बाजार हथियाने और प्रतिद्वंद्वियों को मात देने के बड़े माहिर हैं। कुछ समय पहले तक राजनैतिक दल चुनावी उम्मीदवारों तथा पार्टियों को चोरी-छुपे आर्थिक मदद पहुँचाया करते थे परंतु अब देश व दुनिया की बदली परिस्थितियों में हालात यहाँ तक आ पहुँचे हैं कि चुनाव में किसे टिकट मिलेगा, कौन चुनाव जीतेगा, किसकी सरकार बनेगी, किसको कौन-सा मंत्रालय दिया जायेगा और फिर सरकार किन नीतियों का पालन करेगी यह सब कॉर्पोरेट घराने तय करने लगे हैं। विदेशी औद्योगिक जगत के नक्शे कदमों पर चलते हुए अब भारतीय उद्योगपतियों ने भी वही कार्यप्रणाली अपना ली है।
यहाँ गौरतलब है कि आगामी लोकसभा आम चुनावों में देश के कॉर्पोरेट क्षेत्र ने समाज-सेवा के नाम पर चुनावी चंदा देने की पूरी तैयारी कर ली है। पिछले चार महीनों में टाटा, बिड़ला, रिलायंस, महिंद्रा जैसे बड़े कॉर्पोरेट घरानों ने अपने इलेक्टोरल ट्रस्टों का पंजीकरण रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के कार्यालयों में कराया है। अहम बात यह है कि इन सभी कंपनियों ने अपने इलेक्टोरल ट्रस्ट का पंजीकरण सामाजिक सेवाएं देने वाली कंपनी के रूप में कराया है।
कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय के अनुसार विगत नवंबर से जनवरी 2014 तक जिन प्रमुख कॉर्पोरेट घरानों ने अपने इलेक्ट्रोल ट्रस्ट बनाये हैं उनमें टाटा, बिड़ला, रिलायंस, महिंद्रा जैसी कंपनियां शामिल हैं। टाटा समूह ने जनवरी 2014 में ‘प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट’ के नाम से एक ट्रस्ट का पंजीकरण कराया है। जबकि कोलकाता स्थित बिड़ला ग्रुप ने ‘परिबर्तन इलेक्टोरल ट्रस्ट’ जनवरी में पंजीकृत करा लिया था। जनवरी में ही एक और कंपनी ने ‘रिफार्मेटिव इलेक्टोरल ट्रस्ट’ के नाम से पंजीकरण कराया है।
इसी तरह दिसंबर 2013 में ‘महिंद्रा इलेक्टोरल ट्रस्ट’ का और नवंबर के महीने में रिलायंस एडीए समूह द्वारा ‘पीपुल्स इलेक्टोरल ट्रस्ट’ के नाम से पंजीकरण कराया जा चुका है। इसी महीने में एक और कंपनी ने ‘प्रतिनिधि इलेक्टोरल ट्रस्ट’ के नाम से पंजीकरण कराया है। मंत्रालय के मुताबिक सभी कंपनियों ने अपने ट्रस्ट का पंजीकरण सामुदायिक, व्यक्तिगत और सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में काम करने के रूप में कराया है। इनमें से महिंद्रा और गौरी ट्रस्ट को छोड़कर सभी ने अपनी चुकता पूंजी शून्य दिखाई है।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार राजनैतिक दलों को कंपनियों द्वारा जो भी फंडिंग की जानी है, वह इलेक्शन ट्रस्ट के जरिये कर सकती हैं। इसमें कंपनी को केवल यह बताना होगा कि उसने ट्रस्ट को कितनी धनराशि दी है। ट्रस्ट राजनीतिक दलों को कितनी धनराशि देता है, उसे सार्वजनिक करने की जिम्मेदारी केवल ट्रस्ट पर होगी। नये नियमों के तहत ट्रस्ट के जरिये चंदा नकद में नहीं दिया जा सकेगा। साथ ही ट्रस्ट के लिए यह भी जरूरी होगा कि वह जिन व्यक्तियों से पूंजी जुटा रहा है, उनके पैन का विवरण जरूर लें। ट्रस्ट विदेशी कंपनी या नागरिक से पूंजी नहीं जुटा सकेगा।
सीएसआर को लेकर कंपनियों को लगेगा झटका। कॉर्पोरेट क्षेत्र ने भले ही सामाजिक सेवाएं देने के नाम पर अपने ट्रस्टों का पंजीकरण करा लिया है, लेकिन कंपनी कानून के तहत सीएसआर नियमों का उन्हें लाभ नहीं मिलेगा। नये नियमों में स्पष्ट कर दिया गया है कि चुनाव के लिए दिया गया चंदा सीएसआर नहीं माना जायेगा। नये कंपनी कानून में लाभ देने वाली कंपनियों को अपने शुद्ध लाभ का केवल दो फीसदी हिस्सा ही सीएसआर पर खर्च करना होगा।
अब देखना यह होगा कि कंपनियों द्वारा पूर्व में राजनैतिक दलों को जिस तरह चोरी-छुपे फंडिंग की जाती रही है, उस पर कोई अंकुश लग भी पायेगा या नहीं। क्योंकि यह सब जानते हैं कि एक मामूली व्यापारी से लेकर बड़े से बड़े आद्योगिक समूह द्वारा दो तरह के बहीखाते रखे जाते हैं। एक सरकार को दिखाने के लिए और दूसरा अपने वास्तविक लाभ-हानि का लेखाजोखा रखने के लिए। ऐसे में यह उम्मीद करना व्यर्थ होगा कि कॉर्पोरेट क्षेत्र का अब हृदय परिवर्तन हो गया है और उसने अपने सामाजिक दायित्व निर्वहन का ईमानदारी से बीड़ा उठा लिया है।
लेखक एसएस रावत से उनके मो. 09410517799 पर संपर्क किया जा सकता है।