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निदा फाजली ने कहा: अमिताभ की तुलना नहीं की थी कसाब से, मीडिया ने लगायी है आग

 

मशहूर शायर निदा फाजली ने मीडिया पर उनके बयान को तोड़ मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि वो कभी अमिताभ बच्चन की तुलना आतंकवादी अजमल कसाब से नहीं कर सकते। यह विवाद हिन्दी की साहित्यिक पत्रिका 'पाखी' को फाजली के भेजे पत्र के बाद शुरू हुआ जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘एंग्री यंग मैन’ की छवि लेखक सलीम जावेद ने गढ़ी थी जिस तरह कसाब को आतंकवादी हाफिज मोहम्मद सईद ने बनाया था।
 
फाजली ने एक संवाद एजेंसी से कहा, ‘‘मैंने कभी अमिताभ को आतंकवादी नहीं कहा। मीडिया ने मेरे बयान को सनसनी फैलाने के लिये तोड़ मरोड़कर पेश किया और नया विवाद पैदा कर दिया। मैने एंग्री यंग मैन की छवि के बारे में बयान दिया था, अमिताभ के बारे में नहीं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अमिताभ बेहतरीन कलाकार हैं और बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। हर कलाकार की तरह हालांकि उनकी भी सीमाएं हैं।’’ 
 
दरअसल सारा विवाद तब शुरु हुआ जब निदा फाजली के एक पत्र की भाषा पर चर्चा शुरु हुई। उन्होंने पत्र में लिखा था, ‘‘अमिताभ को एंग्री यंग मैन की उपाधि से क्यों नवाजा गया। वह तो केवल अजमल कसाब की तरह गढ़ा हुआ खिलौना है। एक को हाफिज मोहम्मद सईद ने बनाया और दूसरे को सलीम जावेद ने गढ़ा। खिलौने को फांसी दे दी गई लेकिन खिलौना बनाने वाले को पाकिस्तान में उसकी मौत की नमाज पढने खुला छोड़ दिया।’’ उन्होंने इस पर सफाई देते हुए कहा, ‘‘मेरा आशय यहां एंग्री यंग मैन की छवि से था। दूसरे मेरा मानना है कि एंग्री यंग मैन की छवि को सत्तर के दशक में सीमित क्यों कर दिया गया और फिर अमिताभ को ही एंग्री यंग मैन क्यों कहा गया। क्या 74 वर्षीय अन्ना हजारे को हम भूल गए। तब से ज्यादा गुस्सा तो आज है।’’ 
 
फाजली की इस तुलना से साहित्यिक दुनिया में बहस छिड़ गई थी। कवि व चिंतक असद जैदी ने फाजली की इस टिप्पणी का समर्थन करते हुए कहा था, "निदा साहब ने जो समानांतर रेखा खींची है वह सही है। सत्तर के दशक में अमिताभ ने कई ऐसे फासीवादी किरदार बड़े पर्दे पर निभाए जो गैर लोकतांत्रिक प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने वाले थे और ऐसे किरदारों को नायक बनाकर दर्शकों के बीच लाया जा रहा था। यह आज के आतंकवाद की तरह ही थे। यह किरदार निश्चित रूप से सलीम जावेद की जोड़ी ने ही गढ़ा था।"
 
उधर कथाकार असगर वजाहत ने निदा फाजली के बयान की निंदा की थी। असगर वजाहत के मुताबिक ये तुलना हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण है। फिल्मों में किरदार निभाते अमिताभ के स्थान पर उनके व्यक्तिगत जीवन को देखने की जरूरत है। लिखने वाले की बौद्धिक दरिद्रता पर अफसोस करना चाहिए। उन्होंने कहा, "कसाब को ना तो हाफिज सईद ने गढ़ा है और ना ही अमिताभ को सलीम जावेद ने। कोई भी व्यक्ति अपने परिवेश, शिक्षा और संस्कार से बनता और बिगड़ता है। इन दोनों को समानांतर रखना मूर्खतापूर्ण और हास्यास्पद होगा।"
 
सोशल मीडिया में यह मुद्दा पिछले दो दिनों से खासा गर्म था और अमिताभ के फैंस निदा फाजली को देशद्रोही तक करार दे चुके थे। वे इसे कसाब की मौत पर उसके समर्थक शायर की बौखलाहट करार देकर सांप्रदायिक रंग देने में जुटे थे। शायर की सफाई के बाद शायद विवाद कुछ ठंढा हो सके।
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