बाबाओं के ढोंग का जिक्र आते ही मेरा मन गहरी कोफ्त से भर जाता है। अध्यात्म की अतुलनीय ताकत की आड़ लेकर अपनी दुकान चलाने की कोशिश करने वाले इन बाबाओं से मैं पूरी तरह असहमत हूं। मेरा स्पष्ट मानना है कि भगवान पर विश्वास किया जा सकता है लेकिन इस तरह के फर्जी बाबाओं पर कतई नहीं। दरअसल, हमारे देश में आस्थावान श्रद्धालुओं की कमी नहीं है। यही वजह है कि इनकी आस्था कब इन्हें किसी फर्जी के झांसे में डाल देती है, उन्हें पता ही नहीं चलता।
हमारे देश में सब कामों को धर्म से इसलिए जोड़ दिया गया था ताकि समाज में कुछ गलत न हो। मगर जैसे-जैसे समय बीतता गया इन कथित बाबाओं की मंडलियों ने धर्म को धंधे में बदल डाला। मेरा दृढ़ विश्वास है कि समय खुद इनका अस्तित्व खत्म कर देगा। इस बात से सब सहमत होंगे कि अध्यात्म विज्ञान का विस्तारित रूप है लेकिन इसे व्यवसाय बना देना गलत है। यदि निर्मल बाबा का उन पर भगवान की कृपा होने का दावा एक पल के लिए सच मान भी लिया जाए तो फिर इस कृपा को भक्तों तक पहुंचाने के एवज में वे हर भक्त से 2000 रुपए क्यों जमा करवाते हैं। रुपए लूटकर कृपा करना, ये कैसी कृपा है!
दरअसल, इन लोगों ने धर्म और धर्मालु लोगों की आस्था को कारोबार बना लिया है। हो सकता है शुरू में ये वास्तव में भक्ति और श्रद्धा से जुड़े रहे हों लेकिन बाद में इनमें लालच बढ़ गया है। इन्हें महिमामंडित करने में इनके चेले-चपाटी अहम भूमिका निभाते हैं। ये लोगों भ्रम फैला देते हैं कि बाबा भगवान का स्वरूप हैं और वे बोल भर दें तो भविष्य बदल जाता है। कुछ फर्जी पीडि़त लोग भी गढ़ लिए जाते हैं और शुरू हो जाता है भोले और पीडि़त लोगों से रुपए गांठने का सिलसिला। असल में ये कृपा नहीं बल्कि विशुद्ध कारोबार है। यदि इन्हें कृपा करना ही हो तो निष्काम कर्म करें। आसाराम बापू से लेकर निर्मल बाबा तक, सबने अपने-अपने कारोबार जमा रखे हैं। इस तरह के बाबाओं के भ्रम में आने वाले लोग तात्कालिक रूप से अकर्मण्य हो जाते हैं। जाहिर है, देश के लोगों का अकर्मण्य हो जाना देश की तरक्की में बाधक बनता ही है। सरकार को इस तरह के तमाम प्रपंचों पर सख्त प्रतिबंध लगाना चाहिए। हालांकि सरकारें ऐसा करेंगी नहीं क्योंकि उनके नुमाइंदे जानते हैं कि उनकी राजनीति धर्म के इर्दगिर्द ही फलती-फूलती है।
लेखक ईश्वर शर्मा भोपाल में राज एक्सप्रेस के न्यूज एडिटर हैं.
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