कोई भी बाबा या भविष्यवक्ता भविष्य के बारे में सच नहीं जान सकता. वह चाहे जितने भी दावे करे. प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था बना रखी है कि सभी गतिशील हों, सभी संघर्ष में रहें. अगर भविष्य सच में पता हो तो कोई भी कुछ भी क्यों करेगा, चुपचाप बैठा रहेगा. इसीलिये प्रकृति ने भविष्य के सारे दरवाजे, सारी खिड़कियाँ बंद कर रखीं हैं. बाहर से कुंडी भी लगा दी है. केवल वर्तमान की कुंजी ही इसे खोल सकती है. भविष्य और कुछ नहीं है बल्कि अतीत और वर्तमान का संश्लिस्ट स्वरुप है. अगर आप वर्तमान को ठीक से जी रहे हैं तो भविष्य अपने आप ठीक होगा. असल में लोग वर्तमान को छोड़कर भविष्य की चिंता में जुट गये हैं. उन्हें अपने काम पर, अपनी मेहनत पर भरोसा नहीं रह गया है. बस इसी वजह से इन बाबाओं की पौ बारह है. ये स्वयं अपना भविष्य नहीं जानते.
एक राजा था. वह एक बार बाहरी सेना से घिर गया. वह लड़ने निकलता तो संकट था, नहीं लड़ने निकलता तो भी संकट था. उसने अपने राज ज्योतिषी को बुलाया, उससे पूछा, क्या करना चाहिए. ज्योतिषी ने कहा, महाराज, ग्रह अच्छे नहीं हैं, न निकलिए तो ज्यादा बेहतर रहेगा. राजा ने सोचा तो उसे लगा कि नहीं निकले तो राजमहल में ही मारे जायेंगे, उसने निश्चय किया कि निकलना है. सेना सज गयी. उसने फिर अपने ज्योतिषी को बुलाया, पूछा, मैं कितना जीऊंगा. ज्योतिषी बहुत उदास होकर बोला, महाराज आप पर ग्रह संकट है, आप की जान खतरे में पड़ सकती है. आप युद्ध के लिए न जाइये. राजा निश्चय कर चुका था, उसने ज्योतिषी से पूछा, अच्छा तुम्हारी उम्र कितनी है. ज्योतिषी ने कहा, बहुत लम्बी , ९० साल. राजा ने सेनापति से तलवार मांगी और ज्योतिषी का सर कलम कर दिया. सेनाएं दुश्मन से लड़ने के लिए बढ़ गयी और उन्हें अपनी सीमाओं से खदेड़ कर बाहर कर दिया.
भविष्य बताने वालों के बारे में उन सभी लोगों को इसी तरह सोचना चाहिए, जो कर्म, संकल्प और वर्तमान में भरोसा करते हैं. बाबाओं ने देश का बहुत कबाड़ा किया है, मीडिया को उनके फरेब से लोगों को बचाने का काम करना चाहिए, न कि उनके हाथों बिक जाना चाहिए. यह टी आर पी का बेहूदा खेल भी बंद होना चाहिए. इसकी वजह से ही हिन्दुस्तानी मीडिया मदारियों जैसे करतब दिखाने में जुटा रहता है. खास तौर से हिन्दी मीडिया. अंग्रेजी मीडिया तो फिर भी कुछ गंभीर बातें करता दिखाई पड़ता है लेकिन हिंदी चैनलों पर अत्यंत कारुणिक और मार्मिक प्रसंगों पर भी वीर रस में बोलने वाले एंकरों ने तो तबाही मचा रखी है. यही लोग हैं, जो घटिया दर्जे के बाबाओं से लेकर भूत-प्रेत की कहानियों और प्रलय की अंतर्कथाओं को पेश करके टी आर पी बढाने में जुटे रहते हैं. देश के ज्वलंत मुद्दों पर बात करने की जगह फूहड़ लाफ्टर कार्यक्रमों को दिखाने से लेकर न जाने क्या-क्या दिखाते रहते हैं. अब समय आ गया है जब नया मीडिया और सही समझ रखने वाले लोग इन मुद्दों में ठोस दखल दे.
लेखक सुभाष राय वरिष्ठ पत्रकार और हिंदी दैनिक डेली न्यूज एक्टिविस्ट के प्रधान संपादक हैं.