मैं व्यक्तिगत तौर पर फल-सब्जी वाले से लेकर तमाम रेहड़ी वालों की मेहनत का कद्रदान हूं। हमेशा उनकी मदद करने को इच्छुक रहता हूं। आज रविवार को फुर्सत के क्षण में अपने मुहल्ले (वसुंधरा, गाजियाबाद) की एक मुख्य सड़क पर कुछ फल-सब्जी वालों से बतिया रहा था। तभी मुझे जानकर खुशी और हैरानी दोनों एक साथ हुई। एक सब्जी वाला, वसुंधरा में ही 10 हजार रुपया महीना किराए के मकान में रह रहा था। अब उसने एक बिल्डर से, वसुंधरा में 25 लाख रुपये में दो कमरे का मकान खरीद ले लिया है और उसका परिवार अब वहीं रहने चला गया है। इसके पहले उसने दिल्ली में भी 50 गज का प्लॉट खरीदकर उस पर मकान बना लिया था, वहां से भी हर महीना किराया आ रहा है।
इसी तरह वसुंधरा में फल बेचने वाले एक परिवार ने प्रहलादगढ़ी में दो प्लॉट खरीदकर उन पर मकान बनवा लिए, जिनका करीब 55 हजार रुपये महीना किराया आता है। फल बेचकर 40 से 50 हजार रुपया महीने की आमदनी अलग। पूछने पर बताया कि पैन कार्ड है मगर उसने आयकर कभी नहीं भरा। आम तौर पर दो लाख से ऊपर की सालाना आमदनी वालों के लिए आईटी रिटर्न भरना जरुरी है। आईटी रिटर्न न भरने पर तमिलनाडू की मुख्यंमत्री जयललिता एक मुकदम का सामना कर रही हैं। भाग्यशाली, अरबपति मायावती और उनके अरबपति भाई आयकर के मुकदमे से बरी हो चुके हैं।
आयकर विभाग ने अपने यहां बहुत सुधार किया है मगर अब भी कई काम बाकी हैं। अब आयकर न चुकाने वाले लोगों को नोटिस मिल रहे हैं और उन पर भारी जुर्माना भी लग रहा है। मगर वहां अफसरों और कर्मचारियों की कमी है ऐसे में वे आयकर चोरी करने वालों के खिलाफ बड़ी मुहिम चलाने में लाचार हैं। इस वजह से सब्जी और फल बेचकर मकान बनाने और गांव में हर साल मोटी रकम भेजने वालों पर अभी नकेल नहीं कसी जा सकी है।
अंत में, मेरे तमाम पत्रकार और इंजीनियर मित्र और रिश्तेदार, जो 30 हजार से 3 लाख महीने का वेतन पाते हैं, अपनी कमाई पर पाई-पाई का आयकर भरते हैं। फिर भी सरकार उनकी बुरे वक्त में कोई सुध नहीं लेती। न उनके लिए पेंशन की बेहतर व्यवस्था और न ही बुढ़ापे में (नौकरी न रहने पर) मुफ्त इलाज का इंतजाम। जीवन भर आयकर देने वालों के लिए सरकार के पास कोई योजना ही नहीं है। कहिए, केजरीवाल जी, आप आयकर अधिकारी रह चुके हैं और क्या आप बताना चाहेंगे कि आपकी पार्टी को केंद्र में सरकार बनाने का मौका मिला तो लाखों की कमाई करने वाले अनाम कारोबारियों से टैक्स वसूलने का इरादा रखते हैं। मगर आप तो कारोबारियों के लिए वैट में भी मेहरबान हैं। चाहें आप के नेता हों या भाजपा या कांग्रेस वाले, कोई भी कारोबारी के टैक्स पर बोलना नहीं चाहता। कहीं उनका वोट बैंक न खिसक जाए।
राय तपन भारती, आर्थिक पत्रकार/दिल्ली। ईमेलः [email protected]