अगर आप आस्था की शक्ति में विश्वास करते हैं तो मेरे इन शब्दों को पढ़ने से पहले अपनी जिंदगी के बीते दिनों के उन लम्हों को याद करने की कोशिश कीजिए जब आप मुश्किलों के बेहद दर्दनाक दौर से गुजर रहे थे। तब ऐसा लग रहा था कि उम्मीदों के सभी रास्ते हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं और दुनिया में सिवाय दुश्मनों के और कोई जिंदा नहीं बचा। उन हालात से बाहर आने में आपकी सभी कोशिशें नाकाम रहीं कि तभी अचानक कहीं से एक मदद भरे हाथ का साथ आपको मिला और दुनिया की तमाम उलझनें बहुत मामूली लगने लगीं। जिंदगी के कई मोड़ पर ऐसी घटनाओं से रूबरू होने का मौका अक्सर उन लोगों को मिलता है जो किसी विचार या ईश्वर में आस्था रखते हैं। इस पंक्ति को एक बार फिर से पढ़िए कि आस्था की शक्ति जिंदगी में बड़े बदलाव कर सकती है।
वास्तव में मसला सिर्फ आस्था का है, लेकिन यह पूरी तरह से इंसान पर निर्भर करता है कि वह इसे किससे जोड़ता है। एक वयस्क के लिए गीता, बाइबिल या हिमालय आस्था के विषय हो सकते हैं, वहीं एक बच्चे के लिए यह मामला थोड़ा हटकर है। उसके लिए वे परियां आस्था का विषय हो सकती हैं जो हर रात उसके सपने में आती हैं। प्रार्थना और अध्यात्म जैसे विषयों पर हुए शोध यह साबित करते हैं कि आस्था की ताकत हमारे जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव कर सकती है, बशर्ते हमारी प्रार्थना सच्ची हो और उद्देश्य पवित्र। प्रार्थना से होने वाले ज्यादातर बदलाव हमारी कल्पना शक्ति से भी कहीं ज्यादा बड़े होते हैं। अक्सर हम प्रार्थना में जिस बात की आशा करते हैं वह हमारी उम्मीदों के दायरे से भी बड़े रूप में घटित होती है, क्योंकि इससे इंसान की आत्मा और मन बेहद ताकतवर बन जाते हैं। इस स्थिति में वह जिस बात की उम्मीद करता है वह उससे भी बेहतर ढंग से सामने आती है।
प्रार्थना को अगर मन और आत्मा का एंटीवायरस कहें तो ज्यादा ठीक रहेगा, क्योंकि यह हमारी जिंदगी के ऑपरेटिंग सिस्टम को चिंता, डर, ईर्ष्या, क्रोध और घमंड जैसे वायरस से बचाता है। प्रार्थना से पहले जो डर व चिंताएं हावी रहती हैं, वे बाद में बिल्कुल गायब हो जाती हैं और हम खुद को एक नई ऊर्जा से भरपूर महसूस करते हैं। इस तरह प्रार्थना न केवल हमें ताकत देती है बल्कि जिंदगी के उलझे गणित को बहुत आसानी से सुलझा सकती है। लेकिन इसे महसूस करने के लिए न तो आपका गणित में होशियार होना अनिवार्य है और न ही बेहद विद्वान होना। विद्वता, पैसे और होशियारी का यहां कोई काम नहीं। अगर पहले ही इनसे मुक्ति पा लें तो यह हमारे हित में होगा, क्योंकि आस्था के देश में इनकी कोई जरूरत नहीं। यहां जरूरी हैं पवित्र हृदय, अटूट भरोसा व बच्चों जैसी उत्सुकता, जो सपने में परियों का पिटारा खुलने से पहले होती है और परियों को पैसों की जरूरत नहीं होती!
लेखक राजीव शर्मा को उनके ब्लॉग ganvkagurukul.blogspot.com पर भी पढ़ा जा सकता है।