सोनभद्र।। मिर्जा असदुल्लाह बेग खान उर्फ गालिब जयंती के अवसर पर मित्र मंच, सोनभद्र की ओर से स्थानीय विवेकानंद प्रेक्षागृह में शुक्रवार की रात ‘ऑल इंडिया इण्डोर मुशायरा’ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि और सदर विधायक अविनाश कुशवाहा द्वारा गालिब की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन से हुआ।
गालिब के फाकामस्ती भरे जीवन पर प्रकाश डालते हुए अविनाश कुशवाहा ने कहा कि गालिब ने 11 साल की उम्र में शायरी करनी शुरू कर दी थी और पूरी उम्र उनकी शायरी में गम का कतरा घुलता रहा। इस दौरान उन्होंने गालिब की कुछ शेर भी पढ़े-
"न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता। डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।।….पूछते हैं वो कि गालिब कौन है, कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या….इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के।"
भदोही के खम्हरिया से आए चर्चित शायर कासिम नदीनी ने मुशायरे का आगाज कुछ इस तरह से किया-
"खशबू मिली, बहार मिली, दिलकशी मिली…जन्नत से भी हंसी तुम्हारी गली मिली…इरफां मिला सऊर मिली आग भी मिली…जिगर-ए-नबी से हमको नई जिंदगी मिली।।…"
फिर उन्होंने जो शेर पढ़े वह लोगों की दिलों में हिन्दुस्तान के जज्बात पैदा कर गए-
"मैं मर जाऊं तो मेरी सिर्फ ये पहचान लिख देना…मेरे माथे पे मेरे खून से हिन्दुस्तान लिख देना…हम उस भारत के वासी हैं जहां होता है….हर एक धर्म का सम्मान लिख देना…हमारे मुल्क का इतिहास जाके तुम कभी लिखना…मुसलमानों को दिल और हिन्दुओं को जान लिख देना…वहीं अजमतों को पाक दिल की जन्नत भी निछावर है…वो है मेरे भारत के खेत और खलिहान लिख देना….जो तुमसे स्वर्ग का संक्षिप्त वर्णन कोई करवाए…तो इक कागज उठाकर सिर्फ हिन्दुस्तान लिख देना…मैं मर जाऊं तो मेरी सिर्फ ये पहचान लिख देना…हमारी सभ्यता और एकता लक्ष्य तो आधा…ग्रन्थ बाइबिल, गीता है और कुरान लिख देना।
कानपुर से आईं शायरा रुही नाज ने अपनी नज्म से लोगों को जिंदगी से कुछ इस तरह रूबरू कराया-
"चांद से दूर जरा चांदी के हाले कर दूं…दिल तो कहता तो है कि हर शम्त उजाले कर दूं…इस तरह तेरे सुलगने से बेहतर तो ये है…जिंदगी ऐ तुझको, जिंदगी के हवाले कर दूं।"
इसके बाद उनकी एक-एक कर गजलों ने श्रोताओं को वाह-वाह करने पर कुछ इस तरह मजबूर किया-
"मेरे बहते हुए अश्कों ने पुकारा तुमको…दिल की हसरतें ही हैं कि मैं देखूं
दुबारा तुमको…मेरी हर सांस तेरे नाम से चलती ही रही…पास आओ तो दिखाऊं ये
नजारा तुझको…बात ठुकराई है हर राह पर तुमने मेरी…फिर भी हर मोड़ पे देती
हूं सहारा तुमको।"
मध्य प्रदेश के ग्वालियर से आए अख्तर ग्वालियरवी के शेर स्रोताओं के दिलों में
कुछ इस तरह उतरे कि वे उन्हें बार-बार मंच पर शायरी करने की मांग करने लगे।
उन्हें अपने शेरों कुछ इस इंदाज में बढ़ा-
"मेरी आंखों से मेरे दिल में उतरना सीखो…आइना सामने रखा है संवरना सीखो…आओ
अब फसलें बहारां की अदा बन जाओ।…खुशबुओं की तरह बिखरना सीखो।"
ग्वालियरवी की नज्मों के बाद स्थानीय शायर नजर मुहम्मद नजर ने कुछ इस तरह अपनी
वेदना का इजहार किया- चाहने वाला दिल से मुझको अभी तो मिला नहीं…चाहे अपने
हों या पराए किसी से सिकवा गिला नहीं..वफा करो वफा मिलेगा नजर ये कहने की बात
है…वफा किया तो सिला वफा को हमको किसी से मिला नहीं।
वहीं स्थानीय शायर अब्दुल हई ने कुछ इस तरह अपने जज्बात स्रोताओं के सामने रखे-
भूले से क्या पड़े कफन पर हाथ मेरे…जीवन की हर परिभाषा मैं जान गया…जनम
मरण के अनसुलझे संदर्भों की…एक गांठ क्या खुली मैं पहचान गया। लखनऊ से आए
कवि और लेखक आदियोग ने अपनी पंक्तियों को इस तरह लोगों के सामने रखा- हुजुर
माफ कीजिए, कल आप मेरे सपनों में आए। रॉबर्ट्सगंज के मशहूर और वरिष्ठ शायर
मुनीर बख्स आलम ने भी अपने शेर से स्रोताओं के दिलों को झकझोरने की कोशिश की-
वो आए बज्म में मीर ने देखा…। कार्यक्रम का संचालन कर रहे कानपुर के मशहूर
शायर कलिम दानिस ने सियासत पर कुछ तरह इल्जाम लगाए-
सियासत अब ठिकाना चाहती है…तवायफ घर बसाना चाहती है…शरीफों का घराना चाहती
है…गजल लहजा पुराना चाहती है…गरीबी की ये मजबूरी तो देखो…गिरी रोटी
उठाना चाहती है…खुले सिर फिर रही है शहरों-शहरों…गजल अब पैसे कमाना चाहती
है….। चुर्क निवासी शायर एमए शफक ने भी अपने शेर पढ़े। कार्यक्रम के आयोजक
मित्र मंच, सोनभद्र के निदेशक विकास वर्मा ने कुछ इस तरह अपने जज्बातों की
तुकबंदी की- इक तमन्ना जवान है यारों…आपका इम्तिहान है यारों….उसकी कुछ
ऐसी शान है यारों…हर अदा इक तूफान है यारों…। संगठन के सदस्य एवं
कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष राम प्रसाद यादव और स्वागत सचिव अमित वर्मा ने
मुशायरे में शामिल शायरों और मुख्य अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया।
इस मौके पर राधे श्याम बंका, धर्मराज जैन, सत्यपाल जैन, विकास मित्तल, मुन्नू
पहलवान, वीरेंद्र सिंह, सलाउद्दीन, मुख्तार आलम, सर्फुद्दीन, अशोक श्रीवास्तव,
डॉ. वीपी सिन्हला, वीरेंद्र जायसवाल, आशुतोष पांडेय, राजेश सोनी, बिन्देश्वरी
श्रीवास्तव, अनिल वर्मा, राधारमण कुशवाहा, संदीप चौरसिया, उमेश जालान, मुकेश
सिंह, अधिवक्तगण आलोक वर्मा, सुधांशु भूषण शुक्ला, विमलेश केशरी, बलराम,
रत्नाकर, शैलेंद्र, विशेष मणि पांडेय, मुन्नी भाई, विनोद चौबे, अधिवस्ता
प्रदीप पांडेय, अरुण सिंह, कृपा शंकर चौहान, विकास राय, शिवधारी शहरण राय,
महफूज, मकसूद, इकराम, साजिद खान, हिदायतुल्लाह, राज बहादुर चक्री, रामनाथ
शिवेंद्र, कामरान, श्यामराज, बरकत अली, रोशन खां, मुनि महेश शुक्ला, विकास
द्विवेदी, बृजेश पाठक, अशोक विश्वकर्मा, सुरेश भारती, ब्रजेश शुक्ला,
कौशलेंद्र पाठक, अनिल तिवारी, आयुष वर्मा, देवाशीष, राज कुमार सोनी, सुन्दर
केशरी समेत तमाम सहयोगी, समाजसेवी, साहित्यप्रेमी मित्र मंच परिवार के साथ
सहयोगी कार्यकर्ता सारी रात महफिल का उरुज बनाए रखा।