"सपनों की मंडी" ये किताब महज यातनाओं की कहानी न होकर एक ऐसी सच्ची किताब है जो उम्मीद जगाती है, इस किताब को हालांकि अभी मैं पूरी तरह से नहीं पढ़ पायी हूँ, पर मैं इसके सृजन की प्रक्रिया को जानती हूँ इसलिए मुझे विश्वास है कि मानव तस्करी के विषय पर शोध करने वालों के लिए ये किताब भविष्य में वरदान साबित होगी।" इन शब्दों के साथ बीएजी नेटवर्क की प्रबंध निदेशक और वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा प्रसाद ने गीताश्री लिखित पुस्तक, 'सपनों की मंडी' का लोकार्पण किया।
दिल्ली के प्रगति मैदान में विगत २५ फरवरी से चल रहे अंतर्राष्ट्रीय किताब मेले में आज वाणी प्रकाशन के स्टाल पर मानव तस्करी पर आधारित, गीताश्री लिखित पुस्तक "सपनों की मंडी" का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया के पत्रकारों के साथ साथ प्रदीप सौरभ, महेश भारद्वाज, अजय नावरिया, पंकज मिश्र जैसे साहित्य जगत से जुड़े लोग भी मौजूद थे। वाणी प्रकाशन की निदेशक, अदिति महेश्वरी ने मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मानव तस्करी पर लिखी गयी इस किताब में उन लड़कियों कि चीखें हैं, जो ठगी और बेच गयीं। ये किताब न सिर्फ उन लोगों को मिली यातना बताती है बल्कि समाज से बेदखल उन लड़कियों कि जिंदगियों में आ रही उम्मीद कि किरण से भी रु-ब-रु कराती है।"
किताब की लेखिका गीताश्री ने इस किताब के लिखे जाने को उस पीड़ा से मुक्ति बताया जो उन भुक्तभोगी लड़कियों से मिलकर उनकी यातनाओं की कहानी सुनने के बाद मिली। एक फेलोशिप के विषय के तौर पर शुरू किये गए शोध से गीताश्री का जुड़ाव इस कदर हुआ कि रह रहकर अवचेतन में वो लडकियां घूमती रहीं। गीताश्री आगे बताती हैं, "मुझे मुक्ति का मार्ग किताब लेखन में ही दिखा क्यूंकि मानव तस्करी पर लिखा तो काफी कुछ गया पर आदिवासी अंचल की ठगी और बेची जा रही इन लड़कियों की चीख लेखकों तक नहीं पहुँच पायी थी।"
ज्ञातव्य हो कि "सपनों की मंडी" से पहले भी गीताश्री कि महिला विमर्श पर लिखी चार पुस्तकें बाज़ार में आ चुकी हैं1 इस पुस्तक के आमुख में चर्चित लेखिका तसलीमाँ नसरीन ने लिखा है कि "मानव तस्करी से जुडी घटनाओं और जिंदगियों का किताब में किया गया मार्मिक वर्णन झकझोरने वाला है। मानव तस्करी पर ये किताब काफी संवेदनशील ढंग से गंभीर चिंतन के बाद लिखी गयी है।"