पिछले दिनों गुजरात जाना हुआ गुजरात, नाम लेते ही एक और नाम जहन में आता है जिसकी चर्चा आज लगभग हर किसी की जुबान पर आम है । नरेन्द्र मोदी राज्यीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे नरेन्द्र मोदी का कद बढ़ाने में गुजरात का अहम योदान है । गुजरात में किये उनके विकास के दम पर देश के विकास के सपने देखे और दिखाये जा रहे हैं ।
मौजूदा सरकार की असफलता, भ्रष्टाचार और हालात को देखते हुये आशावादी होने के लिये ऐसे सपने देखना जरूरी भी हो जाता है ।
अहमदाबाद पहुंचते ही मोदी के विकास की तस्वीर का सच देखने की स्वभाविक इच्छा थी । रात के अन्धेरें में साफ चौड़ी सड़को पर चमकती लाइटों से एक बारगी लगा कि दिल्ली फेल है । अहमदाबाद स्टेशन के 10 किमी. एरिया में घूमना हुआ । मणीनगर में मिले शानदार बाजार, खुशनुमा लोग, सोड़े की दुकान पर ठहाका मारते दोस्त और दौड़ती सिटी बसें । सिटी बसों के लिये 5 लैन सड़क के बीच में अलग से रोड था जिस पर केवल इन्ही बसों को आवागमन होता है । वहीं स्वचालित दरवाजे लगे हुय इनके स्टोपेज थे । आधुनिक समाज जैसा सब कुछ था लेकिन फिर भी दिल्ली जैसी आपाधापी नहीं थी । दारू के ठेके नहीं थे ।
उसकी जगह था सोड़ा पानी, 5 रूपये गिलास से शुरू, 10 तरह के स्वाद, मार्केट के हर नुक्कड़ पर एक दुकान मिल रही थी । शराब का अच्छा विकल्प । कुछ से पूछा कि ‘यहां शराब मिलती है? जवाब मिला नहीं, बन्दी है । अच्छा लगा । मन में ख्याल आया कि जहां से आये हैं वह कृष्ण की नगरी है, माखन है, मिश्री है, दूध है, दही है, लेकिन सब बेकार हैं, क्यूकिं यहां शराब है । पीने वालो और पिलाने वालों ने वृन्दावन को भी नहीं बख्शा । सरकार ने अपने नाम पर वृन्दावन में घुसने से पहले ही वन चेतना केन्द्र ( परिवार के साथ घूमने के लिये सरकारी पार्क) के सामने ठेका उठा रखा है । अजीब है लेकिन फिर भी यहां कई लोग तो दूध बेचकर शराब खरीदते हैं । लगभग पूरे उ.प्र. की यही हालत है । गरीब परिवारों में महिलाऐं और बच्चे काम करने और पिटने को मजबूर हैं क्योंकि उनके घर के मर्द, शराब पीते हैं ।
खैर, गुजरात में विकास का एक कारण तो समझ में आ गया । सड़कों पर लोगों के चेहरे पर दिखने वाले विकास की धूप केवल अहमदाबाद जैसी बड़ी जगह पर ही फैली हुई है या फिर इसका उजाला दूर गांवों तक में जाता है यह तो पता नहीं लगा लेकिन इतना जरूर है कि अहमदाबाद आने वाला व्यक्ति यहॉं कि चमक-दमक लेकर ही वापस लौटेगा ।
अगले दिन सोमनाथ जाना हुआ । भगवान शिव के द्वाद्वश ज्योतिलिंगों में से प्रथम यहां विराजमान हैं । रात्रि 9 बजे अहमदाबाद स्टेशन से बैठे तो सुबह की पहली किरण के साथ हम सोमनाथ की पावन धरती पर थे । मंदिर से 6 किमी. पहले का मुख्य रेलवे स्टेशन है बेरावल । फ्रैश होने के बाद जैसे ही स्टेशन से निकलने को हुये मारे बदबू के जी मिचला गया । किसी पशु के शव से उठने वाली दुर्गन्ध सी चारों और फैल रही थी । मालूम हुआ कि यहां मछलियों का एक्सपोर्ट का काम किया जाता है । लाखों मछलियों को बड़े काटूर्नों में पैक कर रेल द्वारा अहमदाबाद और वहां से अन्य जगहों तथा देश से बाहर भेजा जाता है । रोजाना यहां से गुजरने वाली लगभग प्रत्येक गाड़ी में पार्सल से यह मरी हुई मछलियां बाहर भेजी जाती हैं । इसी की बदबू स्टेशन पर चारों ओर फैल रही थी ।
पवित्र धरती पर आस्था और आध्यात्म की भावना विकास की बलि चढ़ रही थी । स्टेशन से बाहर आये तो टैम्पों वाले खड़े थे । अपना ब्रज होता तो घिर जाते लेकिन एक ही टैम्पों वाला आगे आया । यहां लगभग आसपास ही 12-14 मंदिर हैं उनमें से कुछ सोमनाथ मंदिर के रास्ते में पड़ जाते हैं और कुछ वहां से 2 किमी. के दायरे में हैं । इन मंदिरों में घूमने जाना था साथ में कुछ ओर भी यात्री मिल गये । टैम्पों चालक ने बताया कि मोदी की एकता रैली की वजह से सारे मुख्य मार्ग बंद हैं वह मंदिर के पीछे कालोनियों में होकर ले चलेगा ।
चाय पानी कर टैम्पों से निकले तो रास्तें में कुछ मंदिरों में दर्शन मिल गये । लेकिन मंदिरों के दशर्न से मन में कोई अनुभूति नहीं हो रही थी क्योंकि इसके लिये माहौल नहीं मिल रहा था । पूरे रास्ते भर साथ चल रहे बच्चों और महिलाओं ने नाक पर रूमाल रखे रखा । जब तक हम समन्दर के किनारे बाणगंगा तक नहीं आ गये तब तक रास्तें में पड़ने वाले मछली संस्थानों से आने वाली बुरी बदबू परेशान करती रही । खराब सड़कों पर यहां हमें रास्तें में सिटी बस की जगह सवारियां ढ़ोते छकड़ा दिखायी दिये । बुलेट मोटरसायकिल को रिक्शे का आकार देकर सवारी गाड़ी बनाया गया था । 1 से 2 लाख की रेंज की इस जुगाड़ का पास के एक कस्बे में पूरा बाजार था ।
सोमनाथ मंदिर के पीछे बसी कालोनियों में गंदगी अपना दर्द बयां कर रही थी । मिश्रित आबादी के ये गली मुहल्ले अपनी यू.पी. जैसे ही थे । विकास की चमक यहां धुंधली सी हो रही थी । मुख्य मंदिर के बाहर सुरक्षा कड़ी थी । भोलेनाथ के दर्शन कर बाहर निकले तो सामने बस समन्दर था । 10 रूपये में नारीयल पानी पीते हुये समन्दर किनारे ऊंट की सवारी करते सैलानी बच्चों की खुशियां देखना अलग अनुभव था ।
नारीयल पानी वाले को पैसे देकर मुड़ा तो एक छोटे गुमसुम से बालक ने रास्ता रोक लिया । याद आया कि इतना प्रसिद्ध मन्दिर अभी तक एक भिखारी नहीं मिला था । जैब में हाथ डालकर 2 रूपये निकाले तो बच्चे ने लेने से इंकार कर
दिया । उसके हाथ में पॉलिश का ब्रश था और नजर जूतों पर थी । साथ में खड़े बड़े बच्चे ने पूछा ‘पॉलिश कर दें’
पूछा कितने पैसे लोगे ? बड़े ने बताया, 10 रूपये । छोटे बच्चों से पॉलिश कराने में थोड़ा सा असहज था और अभी जरूरत भी नहीं थी सौ बोल दिया ‘‘ नहीं ’’ । दोनों बच्चों ने मुंह मोंड़ा और चल दिये । 2 रूपये अभी भी मेरे हाथ में थे । मन में ख्याल आ रहा था कि भीख में 2 रूपये ना लेने वाले इन खुद्दारों को 10 रूपये काम के देना ज्यादा सही है । आवाज देकर बुलाया तो बड़े ने ही आवाज निकाली ‘जी’ । छोटा अभी तक कुछ नहीं बोला था । बड़ा जूतों पर बड़ी तल्लीनता से पॉलिश कर रहा था और छोटा बस हाथ में ब्रश लिये चुपचाप बैठा था । यूं लग रहा था जैसे सारे दुनियां जहान का दुख इस नन्ही जान के हवाले था । नाम पूछने पर धीमी सी आवाज में बोला… ‘सूरज’ । माता पिता, परिवार, स्कूल के बारे में बहुत पूछा, लेकिन ना बड़ा बोला ना सूरज ।
सोमनाथ आते समय रास्तें में सफेद टोपी लगाये मोदी की एकता रैली में शामिल स्कूली बच्चे मिले थे । लेकिन इनके पास ना तो उन जैसी साफ ड्रैस थी, ना टोपी और ना हाथ में उनके जैसा तिरंगा । दोनों में बस एक बात समान थी ।
दोनों गुजरात से थे ।
जूतों पर पॉलिश हो चुकी थी । सूरज ने जूते उठाये, केवल एक ब्रश उन पर घुमाया और पैर के पास रखकर खड़ा हो गया । पूछा ये क्या है भाई’ तो बड़ा बोला- इसे अभी इतना ही आता है । 10 का नोट लेकर दोनो लेकर चले तो अब कदमों की चाल पहले की तरह बेदम नहीं थी । ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी छोटे बच्चे को जूते पॉलिश करते देखा हो, यू.पी. दिल्ली के लगभग प्रत्येक रेलवे,बस स्टेशन पर ऐसे दो चार सूरज आसानी से रोज मिल जाते हैं । लेकिन ये गुजरात के ‘सोमनाथ का सूरज’ था ।
वहीं सोमनाथ जिसके बारे में अभी नरेन्द्र मोदी जी ने बड़े गर्व से यू.पी. के बनारस में जिक्र करते हुये कहा था कि ‘‘मैं सोमनाथ से आया हूं ।’’
ये उस गुजरात का सूरज था जिसके विकास की चर्चा पर आज लोग पूरे देश की कमान सौंपने को तैयार नजर आते हैं । निश्चित रूप से अपवाद सभी जगह होते हैं । निश्चिय ही यह कोई बड़ी घटना या बड़ी बात नहीं है जिसके आधार पर गुजरात के विकास को बेमायने या झूठा बता दिया जाये । लेकिन फिर भी इतना तो महसूस हुआ कि गुजरात के विकास की रोशनी अभी इतनी तेज नहीं है कि उसकी
कुछ किरणें सूरज जैसे उन बच्चों पर भी पड़ सके जो केवल इस वजह से स्कूल नहीं जा सकते क्योंकि उन्हें शाम की दो रोटी का जुगाड़ करना है ।
जगदीश वर्मा
सह सम्पादक- प्रखर क्रान्ति चक्र
मथुरा (उ.प्र.)
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