भारतीय जनसंचार संस्थान, यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन…प्रचलित संबोधन IIMC. पत्रकारिता प्रशिक्षण में एक गौरवशाली अतीत….जहां, सिर्फ भारत से ही नहीं, बल्कि करीब आधा दर्जन देशों के छात्र पत्रकारिता की पढ़ाई करते हैं. अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, सेनेगल आदि देशों से आए छात्रों को IIMC की ओर से सुसज्जित छात्रावास मिला हुआ है. उसी तरह यहां पढ़ने वाली छात्राओं को भी IIMC ने हॉस्टल मुहैया करा रखी है, लेकिन दूसरी तरफ संस्थान में पढ़ने वाले लड़कों को छात्रावास से वंचित रखा गया है.
IIMC में पढ़ने वाले लड़के मुनिरका, बेरसराय या अन्य जगहों पर किराए के तंग कमरों में रहते हैं. बेचारे सुबह जल्दी उठते हैं, जल्दी में नहाना और सीधे बस स्टॉप की तरफ भागना और गर्दन टेढ़ी करके मिंटो रोड से पूर्वांचल हॉस्टल की तरफ जाने वाली 615 नंबर की बस की प्रतीक्षा करना. वहां से पैदल IIMC जाना, ताकि सुबह 9 बजे या 9.30 की क्लास में सही वक्त पर पहुंच सकें. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि करीब 80 प्रतिशत लड़के बगैर सही तरह से नाश्ता किए क्लास में पहुंच जाते हैं और करीब 2 बजे लंच के समय ही वे सही तरीके से खाना खाते हैं.
इससे पहले चाय, समोसे या बिस्किट से ही काम चलता है. नतीजतन कक्षा में ज्यादातर लड़के उदासी, बार-बार जम्हाई आना या नींद आने की समस्या से परेशान रहते हैं. मैं पूरे यकीन के साथ कहना चाहता हूं कि पूरे पाठ्यक्रम के दौरान ज्यादातर लड़के सुबह में नाश्ता करने जैसी अच्छी आदत को भूल जाते हैं. यह उनकी विवशता है….वहीं दोपहर के भोजनावकाश के समय IIMC में पढ़ने वाली छात्राएं और हमारे विदेशी साथी अपने-अपने हॉस्टल की तरफ रुख करते हैं. कमरे में थोड़ा आराम कर लिया और फ्रेश होने के बाद हॉस्टल की कैंटीन में शुद्ध भोजन प्राप्त किया उसके बाद हंसते मुस्कराते दूसरी पाली की कक्षा में बैठते हैं.
दूसरी तरफ उसी संस्थान में पढ़ने वाले लड़के भोजन की तलाश में महिपाल जी के भोजनालय का रुख करते हैं, जहां लंच के समय भोजन पाने वालों की लंबी कतार देखी जा सकती है. इन दिनों तो यह कतार और लंबी हो गई होगी, क्योंकि मैं जिस समय पढ़ता था, उस वक्त IIMC हमारी कक्षा में 40 सीटें होती थी. बहरहाल, उनमें कुछ जीवट और पदयात्रा में माहिर छात्र शुद्ध, बाजार भाव से कम यानी सब्सिडी युक्त भोजन और परसन (दोबारा भोजन लेना) की चाहत में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के हॉस्टलों की तरफ अपनी कदम बढा देते थे. वहां से भोजन करने के बाद वे क्लास में आते थे.
खैर, शाम 7 बजे तक कंप्यूटर लैब और लाइब्रेरी में समय बिताने के बाद छात्र फिर गुट बनाकर कभी पूर्वांचल, कभी नर्मदा, कभी कावेरी, कभी पेरियार, कभी झेलम और कहीं नहीं तो गंगा ढाबा में खाना खाते थे, यह सिलसिला आज भी जारी है, बस नाम बदल गए हैं, चेहरे बदल गए हैं और साल बदल गए हैं, लेकिन IIMC नई दिल्ली के छात्रों का वर्तमान नहीं बदल पाया है. वर्ष 2007-08 में काबुल (अफगानिस्तान) निवासी और IIMC दिल्ली में डीजे के छात्र अब्दुल अजीम नूर बक्श और नेपाल के साथी विष्णु गौतम भी छात्रों की इस समस्य़ा से अवगत थे, एक दिन काबुल वाले मेरे साथी ने कहा यहां इतनी जगह पड़ी हुई है, सरकार को चाहिए कि वह लड़कों के लिए भी हॉस्टल बना दे. अब्दुल अजीम और विष्णु जैसे विदेशी साथी भी छात्रों के इस दर्द को समझने में कामयाब रहे, लेकिन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और आईआईएमसी के आला अधिकारी की संवेदना अब तक नहीं जग सकी, जो तकलीफ़देह है.
अभिषेक रंजन सिंह
पूर्व छात्र आईआईएमसी
मो. 9313174426