भारतीय जनसंचार संस्थान के नीचे दिए गए इश्तेहार को ज़रा ग़ौर से पढ़िए। 19 सितंबर, 2013 को दैनिक हिंदुस्तान में यह प्रकाशित हुआ है. यह इश्तेहार उर्दू पत्रकारिता में डिप्लोमा पाठ्यक्रम से संबंधित है. इश्तेहार में पांचवा बिंदु छात्रावास का है, जिसमें भारतीय जनसंचार संस्थान के हाकिमों ने बेहद साफ़गोई से लिखा है कि " छात्रावास की सुविधा उपलब्ध नहीं है"
ग़ौरतलब है कि आईआईएमसी प्रशासन अपने पूर्व के विज्ञापनों में यह लिखता रहा है कि छात्रावास की सुविधा केवल बाहरी छात्राओं के लिए है, लेकिन इस इश्तेहार के मुताबिक़, नवंबर 2013 से अप्रैल 2014 की अवधि वाले उर्दू पत्रकारिता पाठ्यक्रम में कुल 25 सीटें हैं और आईआईएमसी के हाकिम यह मानकर चल रहे हैं कि इन 25 सीटों में सिर्फ लड़कों का ही दाख़िला लेना है, क्योंकि अगर इस मामले में उनकी मंशा साफ़ रहती, तो वे अपने इश्तेहार में यह लिख सकते थे कि उर्दू पत्रकारिता पाठ्यक्रम में चयनित छात्राओं को भी अन्य लड़कियों की तरह छात्रावास की सुविधा दी जाएगी. भारतीय जनसंचार संस्थान का यह इश्तेहार यह बताने के लिए काफ़ी है कि संस्थान के हाकिमों ने अल्पसंख्यक छात्राओं को हॉस्टल की सुविधा से महरूम रखने का मन बना चुके हैं.
आईआईएमसी के मोहतरम जनाब सुनित टंडन साहब ( डायरेक्टर जनरल) बराए-मेहरबानी यह बताएं कि कोलकाता, हैदराबाद, लखनऊ, रामपुर, पटना और श्रीनगर समेत दीगर जगहों से आने वाली अल्पसंख्यक छात्राएं बग़ैर हॉस्टल के कहां रहेंगी? आख़िर आपने क्या सोचकर अपने इश्तेहार में लिखा है कि छात्रावास की सुविधा उपलब्ध नहीं है.
ग़ौरतलब है कि भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली मुख्य परिसर में छात्राओं और सभी विदेशी छात्रों को हॉस्टल की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा, ढेंकनाल, अमरावती, कोट्टयम, आइजॉल और जम्मू स्थित आईआईएमसी कैंपस में सभी छात्र-छात्राओं को हॉस्टल की सुविधा हासिल है. उल्लेखनीय है कि नई दिल्ली आईआईएमसी कैंपस में करीब ढाई दशकों से लड़को को इस सुविधा से वंचित रखा गया है. छात्रों के साथ हो रहे इस ग़ैर-बराबरी के खिलाफ पिछले कई महीनों से संस्थान के मौजूदा और पूर्व छात्र आंदोलनरत हैं।
अभिषेक रंजन सिंह की रिपोर्ट.