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आवाजाही, कानाफूसी...

IIMC की हिंदी वेबसाइट का इतना बुरा हाल…

Nadim S. Akhter : क्या बुरी गत है…जो कम्यूनिकेशन यानि संवाद के धंधे में हैं…यानी इसे सीखने-सिखाने के पेशे में हैं. उनका ही संवाद बेतरतीब, अधकचरा, अधमरा, लचर, बिखरा हुआ, नाकाबिले बर्दाश्त, हास्यास्पद, शर्मनाक और चुल्लू भर पानी में डूब मरने लायक है…IIMC, जहां पत्रकारिता का पाठ पढ़ाया जाता है, कम्युनिकेशन स्किल सिखाई जाती है, इसके गुर बताए जाते हैं, उसी संस्थान की हिंदी वेबसाइट का क्या हाल है, ये आप इस रिपोर्ट में देख सकते हैं…

Nadim S. Akhter : क्या बुरी गत है…जो कम्यूनिकेशन यानि संवाद के धंधे में हैं…यानी इसे सीखने-सिखाने के पेशे में हैं. उनका ही संवाद बेतरतीब, अधकचरा, अधमरा, लचर, बिखरा हुआ, नाकाबिले बर्दाश्त, हास्यास्पद, शर्मनाक और चुल्लू भर पानी में डूब मरने लायक है…IIMC, जहां पत्रकारिता का पाठ पढ़ाया जाता है, कम्युनिकेशन स्किल सिखाई जाती है, इसके गुर बताए जाते हैं, उसी संस्थान की हिंदी वेबसाइट का क्या हाल है, ये आप इस रिपोर्ट में देख सकते हैं…

अब प्लीज, यहां सरकारी तंत्र का रोना मत रोइएगा…IITs & IIMs भी इसी तंत्र में तैरकर अपनी नैया पार लगा रहे हैं…खुद को जीवंत बनाया हुआ है…इनकी वेबसाइट्स निराश नहीं करतीं…लेकिन IIMC??? अफसोसनाक है कि सूचना तंत्र के सबसे सफल प्रयोग यानी इंटरनेट को ये संस्थान अभी तक आत्मसात नहीं कर पाया है…और उन हजारों-लाखों बच्चों को जानकारी देने से महरूम रखा है, जो इस संस्थान में दाखिला लेकर पत्रकारिता में कुछ करना चाहते हैं…बेहद अफसोसनाक…क्या कोई सुन रहा है…या अभी भी कान पर जूं नहीं रेंग रही…कान पर रूई डाले कब तक बैठे रहेंगे आप लोग???!!!!

Hemant Joshi कौन है इसका जिम्मेदार? पता लगाया जाना चाहिए।
 
Vivek Morya नदीम जी, एक मजेदार बात बताता हू आपको, भारत का एक प्रतिष्ठित परीक्षा है "CSIR-UGC NET-JRF, Exam Organized by" जिसमे परीक्षार्थी हिन्दी मे परीक्षा दे सकता है, लेकिन उसके पास एक भी किताब नही मिलेगा जो उसे हिन्दी या अनुवादित रूप मे मिलेगा, ये विडंबना ही है, मैने भी अपने "M.Sc. (Biotechnology)" और पहली बार मे ही 'NET With JRF Qualify' हो गया था, पर मैं सोचता हू ये कैसा मज़ाक है, मेरे समझ से परे है, एक भी किताब नही है मार्केट मे…. है ना मजेदार ….. मेरी व्यासायिक (Professional) भाषा इंग्लीश है, पर मैं अपनी अभिव्यक्ति मैं हिन्दी मे ही करता हू, कभी शर्म नही करता हू, इंग्लीश मे मैं ठीक ठीक लेख लिखता हू गूगले पे "V K Morya" सर्च कर के देखे, पर हिन्दी बोलने और लिखने पे मैने लोगो को ऐसे सर्माते देखा की मई बयान नही कर सकता हू, मजेदार बात है उन्हे भी इंग्लीश मे लेक्चर देते सुनता हू जिनकी इंग्लीश भी लंगड़ा के ही चलती है, मेरा मानना है भाषा कोई भी हो वो आपको समर्थ बनती है| पर ये कैसा ढोंग जो मातृ भाषा को हिन्दी पखवाड़ा मे याद करे पुर साल मज़ाक बनता है….. ये जिन ऑर्गनाइज़ेशन्स का नाम लिया है उनकी साइट के लिए एक बिभाग कम करता है, राजभाषा प्रकोष्ठ, उसमे किसी भी स्टूडेंट, टीचर, कर्मचारी किस सहभागिता नही के बारबड़ होती है| है ना मजेदार……..
 
Nadim S. Akhter Hemant Joshi ji….हां, जिम्मेदार कौन है, ये पता तो लगाया ही जाना चाहिए, आरटीआई भी डालनी चाहिए कि सरकार से फंड मिलने के बावजूद हिंदी की वेबसाइट का भाई लोगों ने बैंड क्यों बजाया हुआ है….
 
Nadim S. Akhter Vivek Morya ji…बहुत धन्यवाद आपके जवाब के लिए…जानकर वाकई हैरानी हुई आपकी बात…. हिंदी में किताब ही नहीं है इसके लिए…बेहद दुखद…अरे अंग्रेजी-हिंदी के झगड़े मे मैं नहीं पड़ता…सभी भाषाओं का सम्मान होना चाहिए…सभी संवाद का काम करती हैं..अलग-अलग मानव समुदायों के लिए….लेकिन क्या इसका मतलब ये है कि हिंदी भाषी किसी दूसरी भाषा के लिए अपनी ही भाषा का अपमान करें???!!! कल ही डिजिटाइजेशन पर सूचना-प्रसारण मंत्रालय के सचिव की बाइट देख रहा था दूरदर्शन न्यूज पर…खबरें हिंदी में थी और सचिव साब अंग्रेजी में बाइट दिए जा रहे थे….डरपोक रिपोर्टर से ये भी नहीं हुआ कि उनसे हिंदी के लिए अलग से बाइट ले लें…तो जब सचिव ही अंग्रेजी को गाएंगे तब इस मंत्रालय के अधीन आने वाले आईआईएमसी की हिंदी वेबसाइट की क्या गत होगी???? वैसे मैं पूरी तरह SURE हूं कि सचिव साब भगवान से जब कुछ मांगते होंगे या किसी को कोई गाली देते होंगे, तब हिंदी में ही बोलते होंगे…लेकिन अंग्रेजी बोलकर ये सारे चिरकुट खुद को ज्यादा सभ्य और पढ़ा-लिखा साबित करने की कोशिश करते हैं…

फेसबुक पर भी कई मित्र हैं, जिन्होंने हिंदी का परित्याग कर अंग्रेजी अपना ली है…वैसे ये लोग खा हिंदी की ही रहे हैं…हिंदी पत्रिका के ही संपादक हैं…बॉलिवड भी बहुतु बेशर्म है…खाएंगे हिंदी की और गाएंगे अंग्रेजी की…किसी भी बॉलिवुड स्टार से बात कर लीजिए…वो अंग्रेजी में ही बोलेगा….क्या करें…गुलामी अभी गई नहीं है हमारी….मानसिक रूप से हम आज भी अंग्रेजियत के गुलाम हैं….

आप जैसे लोगों ने साबित किया है कि अंग्रेजी को संवाद का माध्यम बनाकर हम भारतीय हर जगह नाम कमा सकते हैं लेकिन हिंदी से हम प्यार करते रहेंगे…अपनी मां की तरह….मेरे एक रिश्तेदार हैं….पिछले 20 वर्षों से अमेरिका में हैं…वहां के नागरिक बन चुके हैं…लेकिन जब भी वे फोन करते हैं…हिंदी में ही बात करते हैं….इसे कहते हैं हक अदा करना…
 
 Muni Shankar jach swtantra agecy se krayi jani chahiye………
 
Vivek Morya Nadim S. Akhter ji…देखिए मैं सभी भाषा का आदर करता हू, लेकिन मेरा मानना है जितना समय हम इंग्लीश सीखने मे व्यर्थ करते है उतने मे विज्ञान कितना सीख सकते है, ये कितना हास्यपाद है की अब गणित भी सीखने के लिए इंग्लीश मे पढ़ना पड़ता है| भाषा सीखने से आप किसी भी समाज के और करीब आते है ये अच्छा भी है, लेकिन हममे से जो साइन्स के स्टूडेंट है कितने है जो भाषा का प्रयोग किसी और समाज को जानने और समझने मे करते है| इंग्लीश हमारी ज़रूरत से ज़्यादा मजबूरी बन गयी है, हम मजबूरी के कायल लोग इस बेड़ी मे बंधे रहने मे ही अपनी खुशी पाते है|
मैं हमेशा के यही सोचता हू काश मेरा हाथ हिन्दी मे तंग ना होता…..

मैं यहा अपनी एक पुरानी पोस्ट दोहराता हू, इससे खुदी समझ जाएँगे यह समस्या कितनी विकट है…..
"कल की एक समाचार मे एक महत्वपूर्ण बात पता चली की, मजबूरी मे वसूलो का कोई महत्व नही रहा जाता है| दुनिया भर मे मानवता का दंभ भरने वालो ने आर्थिक परिस्थितिओ के बाशिभूत श्री नरेंद्र मोदी के कद और महत्व को देखते हुए जो वक्तव गये है, उनसे दो सवाल उठा है| पहला क्या भारतीय न्याय व्यायस्ता पर इन पश्चिमी देशो को भरोसा नही है? जो ज़हर के घूट पीते हुए भी कसाब जैसो को भी पूरी तरह से निष्पक्ष मौका देती है| जिसने अभी श्री मोदी को दोषी नही करार दिया है, तो ये देश कैसे किसी के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित बयान दे देते है|मैं मोदी जी का समर्थक नही हू क्योकि उनके बिचरो का मैं समर्थक हो ही नही सकता, परंतु क्या हमे अपने नागरिको के सम्मान के लिए खुल नही बोलना चाहिए| किसी भी देश को ये सोभा नही देता की वो किसी भी देश के नागरिको का सम्मान ना करे, जब तक की आरोप सिद्ध ना हुआ हो| मेरे मश्तिश्क मे जो दूसरा प्रसन ये उठता है कि, क्या श्री मोदी को ब्रिटिश सरकार की इस पहल को ठुकरा नही देना चाहिए? ये शायद कूटनीतिक रूप से बड़ा संदेश होता| आज शायद श्री मोदी ने एक बड़ा मौका गवाया है क| क्या उन देशो को संदेश नही दिया जाए, जिनकी नीतिया इस बात पे बदलती है की आर्थिक स्तिथि क्या कहती है| मैं श्री मोदी साथ देने की बात नही कह रहा हू पर क्या हमे नागरिक सम्मान पे खुल के बात नही करना चाहिए| दुर्भाग्य ये है की श्री मोदी जी एक वक्तव को अपने सम्मान से जोड़ कर देख रहे है, जब की इसका उन्हे विरोध करना चाहिए कि| वस्तुतः ये सब अपने ऩफा और नुकसान की बाते है| हम कुछ भी हो सकते है, पर भारतीय होने के नाते हम भी उतने ही सम्मानीय जितने किसी भी और मुल्क के नागरिक, जब तक की हमरी न्याय व्यस्था किसी को भी अपराधी घोषित नही कर देती है|"

अब बताइए जब हम हर तरीके से विदेशी प्रामाणिकता के प्रति आसक्ति रखते है तो कहा से मौलिकता से प्रेम करसकते है……
 
Nadim S. Akhter Vivek Morya ji…हिन्दी के प्रति आपकी भावनाओं से सहमत लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रति आपके विचार से असहमत….यह ठीक है कि आरोप सिद्ध होने तक आरोपी को पाक-साफ बने रहने का अधिकार है लेकिन दुनिया में कुछ चीजें perception यानी धारणा-अवधारणा पर भी चलती हैं, जो जायज है…नरेंद्र मोदी की गुजरात दंगों में जो भूमिका रही है, जिस तरह उन्होंने अपनी आंखों के सामने हजारों मासूमों को गाजर-मूली की तरह कटने के लिए छोड़ दिया…अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में राजधर्म का पालन नहीं किया…जो बातें-सचाइयां मीडिया में सामने आईं, उसके बाद मोदी को बेकसूर ठहराना न्यायोचित नहीं होगा…भारत में राजनीति-कोर्ट कितनी तीव्रता से और कैसे काम करते हैं, ये तो आप भी जानते होंगे.
जिस नैतिकता की बात आप कह रहे हैं, अगर मोदी में उसे बहुत कम नैतिकता भी होती तो इस कत्लोआम के बाद वो इस्तीफा दे देते…दुनिया अंधी नहीं है….सबको सब कुछ दिख रहा है कि कहां क्या हो रहा है….
 
Vivek Morya आप मे बात को ग़लत समझ गये, मुझे नरेंद्र मोदी और सलमान खुर्शीद, जगदीश…. इन सभी के प्रति कोई सहनभूति नही है ना ही मैं इनको या इनके जैसे किसी को देखना चाहता हू, मेरा आशय ये था की एक प्रदेश जो युरोप के किसी भी भी देश से बड़ा है, उसका CM जब ये बात कटा है तो आप सोच सकते है की ये इंग्लीश या अँग्रेज़ी ठप्पे की कितनी ज़रूरत है इस देश मे| अगर आप को अपने मे ही विश्वास नही है, तो आप क्या करेंगे | रहा सवाल मेरा पोलिटिकल विवेक का तो वो ज़्यादातर कुँमूनीस्ट है, बाकी किसी पार्टी के कम से मैं संतुष्ठ नही कोई भी, कही मौका हो तो देखिएगा मेरे जीतने भी पोस्ट है वो, किसी भी तरह से किसी पार्टी या व्यक्ति विशेस की तरफ़ नही है|


आईआईएमसी टॉप है, लेकिन हिंदी साइट फ्लॉप है…

विजय प्रताप

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आईआईएमसी की हिंदी वेबसाइट का एक तस्वीरः ना भी हिंदी में नहीं पढ़ा जा सकता  भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) देश के अग्रणी पत्रकारिता संस्थानों की सूची में हमेशा ऊपर यानि टॉप पर रहता है। यहां से प्रशिक्षित सैकड़ों पत्रकार मीडिया उद्योग में लगे हुए हैं। दिल्ली के लगभग सभी बड़े हिंदी पत्रकारिता संस्थानों में आईआईएमसी से प्रशिक्षित पत्रकार मिल जाएंगे। हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में अग्रणी संस्थान होने के बावजूद भी संस्थान की हिंदी वेबसाइट घोर उपेक्षा का शिकार है। जनसंचार को समर्पित इस संस्थान की हिंदी वेबसाइट पर कोई नई सूचना नहीं है, यहां तक की वेबसाइट का नाम जिस भी फॉन्ट में लिखा गया है, कम से कम उसे हिंदी पढ़ने वाले नहीं पढ़ सकते।

मीडिया स्टडीज ग्रुप ने अपने नियमित हिंदी वेबसाइट सर्वे में पाया कि आईआईएमसी की हिंदी वेबसाइट का हाल दूसरी सरकारी साइटों से भी बदत्तर है। इससे पहले सरकारी हिंदी वेबसाइटों को लेकर किए गए अपने सर्वे में भी ग्रुप ने पाया था कि सरकारी साइटें घोर उपेक्षा की शिकार हैं। आईआईएमसी की वेबसाइट की मॉनिटरिंग के दौरान यह देखा गया कि इसकी मूल साइट अंग्रेजी में है। वेबसाइट खोलने पर कुछ सूचानाएं/घोषणाएं अंग्रेजी में आती हैं। इनमें आईआईएमसी के लिए एकेडमिक एसोसिएट और अस्सिटेंश की भर्ती, दो निविदाएं और आईआईएमसी के 5 केंद्रों के पते और फोन नंबर की सूचना केवल अंग्रेजी में है। पहले ही पेज पर वेबसाइट को तीन तरह से देखना का विकल्प आता है। अंग्रेजी, हिंदी और आईआईएमसी ग्लोबल नेट। तीसरे विकल्प का पेज खोलने पर वहां कुछ नहीं आता और ‘एरर’ बताता है। बाकी दो साइटें खुलती हैं।

हिंदी साइट : ‘अ’जनसंचार

दोनों साइटों का आपस में कोई मुकाबला ही नहीं है। हिंदी की साइट पर दी गई सामग्री शायद वर्षों से स्थायी रूप से पड़ी है। कई सारी जानकारियां पुरानी पड़ चुकी हैं, जो देखने वालों को भ्रमित करती हैं और गलत सूचनाएं मुहैया कराती है। ट्रेनिंग, रिसर्च, स्टूडेंट गैलरी, न्यूजलेटर, पब्लिकेशन, मैनेजमेंट, इंफ्रास्ट्रकचर जैसे टैब जो अंग्रेजी की साइट के पहले पन्ने पर दिखती हैं वो हिंदी की साइट पर मौजूद नहीं है। इन टैब के अंतर्गत दी गई सारी सूचनाएं केवल अंग्रेजी पढ़ सकने वालों को ही सूचित करती हैं। जबकि हिंदी की वेबसाइट पर जो टैब हैं वो ज्यादातर उसके इतिहास और स्थापना से जुड़ी सूचनाएं देती हैं। मसलन परिचय, नयी मीडिया, शाखा, नागरिक घोषणापत्र और विगत जानकारियों, जैसे टैब केवल हिंदी की साइट पर हैं जिसमें ज्यादातर में इसकी स्थापना और उसकी पृष्टभूमि के बारे में बताया गया है।

नागरिक घोषणापत्र में दी गई जानकारी बरसों पुरानी है। इसमें इसके केवल दो ही केंद्रों की सूचना है जबकि वर्तमान में अंग्रेजी की साइट पांच केंद्रों की जानकारी देती है। अमरावती, आइजोल, कोट्टयम और जम्मू में शुरू किए गए नए केंद्रों की सूचना हिंदी की साइट पर कहीं भी नहीं है। इसी तरह से हिंदी की साइट पर फीस का जो ढ़ांचा दिया गया है वो पुराना है। संस्थान से निकलने वाले दो जर्नल कम्युनिकेटर (अंग्रेजी में) संचार माध्यम (हिंदी में) और अन्य प्रकाशनों की सूचना केवल अंग्रेजी की साइट पर है। यहां होने वाले शोध की सूचना भी केवल अंग्रेजी साइट पर है। यहां रिसर्च डेस्क के अंतगर्त अब तक हुए शोध की सूचनाएं भी दी गई हैं। इसी तरह संस्थान की फैकल्टी के नाम और उनके परिचय और संपर्क की सूचना अंग्रेजी साइट पर है जबकि हिंदी साइट पर पीडीएफ रूप में फैकल्टी के केवल नाम दिए गए हैं।

हालांकि यह कहना गलत होगा कि अंग्रेजी की साइट पूरी तरह से अपडेट है। इसके कई सारे टैब जैसे साइट मैप, ऑन लाइन क्वैरी और चेंज लैंग्वेज ‘जल्द ही सूचना दी जाएगी’ की उद्घोषणा के साथ खाली पड़े हैं। जो टैब बने भी हैं उन्हें अपडेट करने की जहमत नहीं उठाई जाती। अंग्रेजी की साइट पर स्टूडेंट गैलरी का टैब है जहां जाने पर केवल 7 तस्वीरें देखने को मिलती हैं और किसी तरह के गतिविधि की सूचना यहां नहीं है।

उद्देश्यों से दूर

आईआईएमसी की स्थापना देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में जनसंचार के उपयोग को मद्देनजर रखते हुए 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी नींव रखी थी। इससे पहले 1962-63 में भारत सरकार ने अमेरिका के गैर सरकारी संगठन फोर्ड फाउंडेशन और यूनेस्को से सलाह मांगी थी। दुनिया में ‘विकास पत्रकारिता’ के शुरुआती पैरोकारों में से एक विल्बर श्रेम की अध्यक्षता में यूनेस्को और भारत के मीडिया विशेषज्ञों के एक दल ने अपनी सिफारिश में कहा था कि, “जनसंचार के क्षेत्र में उच्चतर अध्ययन का एक केंद्र हो, जिसके सलाह, प्रशिक्षण, अनुसंधान और विकास की जिम्मेवारी हो, खासकर देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में जनसंचार के उपयोग के संबंध में…।” इन उद्देश्यों के साथ इसकी स्थापना के बाद से पत्रकारिता और जनसंचार माध्यमों के क्षेत्र में निरंतर बढ़ोतरी हुई है। लेकिन इसकी दिशा बदल गई है जिसका साफ सा मतलब है कि यह अंग्रेजीदां लोगों के सामाजिक-आर्थिक विकास को समर्पित होकर रह गया है। इसकी एक झलक आईआईएमसी की हिंदी वेबसाइट देखकर मिल जाती है।

लेखक विजय प्रताप मीडिया स्टडीज ग्रुप से जुड़े हुए हैं.

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नदीम एस. अख्तर के फेसबुक वॉल से साभार.

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