Abhishek Ranjan Singh : चलिए यह मान लिया जाए कि छात्र हित के नाम पर गठित आईआईएमसी एल्युमिनाई एसोशिएसन यानी भारतीय जनसंचार पूर्व छात्रसंघ; भा.ज.सं में छात्रावास से वंचित छात्रों की समस्याओं के निदान के लिए किसी तरह का कोई प्रयास नहीं करेगी. यह भी मान लेते हैं कि छात्रों की बाकी दर्द-तकलीफ़ों से भी उनका कोई वास्ता नहीं है. बकौल, एल्युमिनाई एसोशिएसन उनका संविधान इसकी इज़ाज़त नहीं देता, उनके मुताबिक़ इन मामलों में सक्रियता दिखाना भारतीय जनसंचार संस्थान के प्रशासनिक कार्यों में दख़ल देना है.
हालांकि, उनकी यह बात कैसे मान लूं कि पिछले दिनों आईबीएन 7 और नेटवर्क 18 से निकाले गए 350 मीडियाकर्मियों पर भी वह ख़ामोश रहे और उनके ज़िबह होने का तमाशा देखे. आईआईएमसी एल्युमिनाई एसोशिएसन पत्रकारों के बीच से बना एक संगठन है. वह पत्रकार हितों की अनदेखी भला कैसे कर सकता है. आज प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में Journalist solidarity forum की ओर से अच्छी पहल हुई, हम सभी इसका स्वागत करते हैं, उनके इस संघर्ष में हमारा भी साथ है. अफ़सोस इस बात का है कि आईआईएमसी एल्युमिनाई एसोशिएसन की ओर से इस बारे में कोई बयान या उनके पदाधिकारियों की सहभागिता देखने को नहीं मिली. यहां सवाल यह उठता है कि, मीडिया संस्थानों में इसी तरह छंटनी होती रहे और मीडियाकर्मी नौकरी से दूर होते चले जाएं और इस तरह की तंज़ीमें यूं ख़ामोश रहे, तो उनके रहने या न रहने का क्या मतलब है. क्या ऐसी तंज़ीमें क्रबिस्तानों में पंचायतें करने के लिए ही बनी हैं. आख़िर जब मीडियाकर्मी ही नहीं बचेंगे, तो किसका प्रतिनिधित्व करेंगी ऐसी तंज़ीमें…..
अभिषेक रंजन सिंह के फेसबुक वॉल से.