श्री विजय बहुगुणा जी, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड, देहरादून पिछले दिनों उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेकिन बडे ही दुःख के साथ लिखना पड़ रहा है कि यात्रा आरम्भ होने से पहले सरकार द्वारा किये गए तमाम वायदों और घोषणाओं के बावजूद यात्री भगवान् भरोसे ही यात्रा पूरी कर रहे हैं। एक उत्तराखंडी होने के नाते मैं भली-भांति जान सकता हूँ कि उत्तराखंड के बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के मन पर क्या बीती होगी और वो सरकार और उत्तराखंड की कौन सी छवि अपने साथ ले गए होंगे। यात्रा के दौरान जो कुछ भी मुझे अनुभव हुआ उसे आपके साथ बांटना चाहता हूँ। साथ ही छोटा मुंह बड़ी बात की कहावत के साथ कुछ सुझाव भी।
1) पहले बात करें यात्रा मार्ग की। मार्गों के चौडीकरण के बाद आज भी मलबा ज्यों का त्यों वहीँ पड़ा है। जहां एक ओर यह मलबा यातायात में व्यवधान उत्त्पन्न कर रहा है, वहीँ दूसरी ओर इस मलबे से उड़ने वाली धूल यात्रिओं का दम घोटने का काम कर रही है। मैं स्वयं इस समस्या का भुक्तभोगी हूँ इसलिए भी दावे के साथ लिख रहा हूँ। वैसे तो ये मलबा यात्रा आरम्भ होने से पहले ही उठा लिया जाना चाहिए था। बहरहाल, इस मलबे को रात्रि के समय जब सड़कों पर यातायात नहीं होता, उठाया जा सकता है।
2) यात्रा मार्ग पर वाहनों की संख्या कितनी हो, इस पर भी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। यह कार्य धाम के सबसे नजदीकी गेट पर किया जा सकता है।
3) सबसे बड़ी ओर विकट समस्या वाहनों के पार्किंग की है। जहां देखों पार्किंग वाहनों से अटी पड़ी है। केदारनाथ धाम का उदहारण लें, जहां सबसे अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। रामपुर से सीतापुर ओर सोनप्रयाग होते हुए वाहन गौरीकुंड तक जा पाते हैं। रामपुर से गौरीकुंड तक 10 किलोमीटर का रास्ता तय करने में ही हमे लगभग 5 घंटे से अधिक का समय लगा। यहाँ तो ठीक, लेकिन गौरीकुंड उतरने में यात्रिओं को पक्का नानी याद आ गयी होगी, क्योंकि यहाँ गाडी घुमाने और यात्रिओं को उतारने के लिए महज दो या तीन मिनट ही मिलते हैं। मुख्यमंत्री जी, जरा सोचिये कि इतने कम समय में 27 वृद्ध यात्री तो क्या जवान यात्री भी नहीं उतर सकते। मेरा सुझाव है कि रामपुर से लेकर गौरीकुंड तक किसी भी स्थान पर बड़े-बड़े पार्किंग स्थल विकसित कए जा सकते हैं। जहां पर बड़े वाहनों को खड़ा किया जा सकता है। तत्पश्चात यात्री छोटे वाहनों से गंतव्य की ओर जा सकते हैं। इससे निश्चित तौर पर जाम के झमेले से बचा जा सकेगा।
4) चार धाम यात्रा के दौरान होटलों की मनमानी से भी यात्री परेशान हैं। यदि आपका पहले से होटल का आरक्षण नहीं है तो समझिये आपकी जेब जल्दी ही ढीली हो जाएगी। मेरा सुझाव है कि चारधाम यात्रा समिति को यात्रा शुरू होने से पहले ही होटलों को वर्गीकृत कर उनके रेट तय कर दिया जाने चाहिए। तय शुल्क से अधिक लिए जाने पर इसकी शिकायत की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
5) चार धाम यात्रा के दौरान भोजनालयों की मनमानी से भी यात्री दो-चार हो रहे हैं। भोजन स्वास्थ्यवर्धक (Hygienic) है कि नहीं, ये देखने वाला कोई नहीं है। चूंकि अधिकतर यात्री इन भोजनालयों पर ही निर्भर रहते हैं अतः मेरा सुझाव है कि सरकार को समय-समय पर इन भोजनालयों से खाने के नमूने लेने चाहिए ताकि भोजन की गुणवत्ता बनी रहे।
6) उत्तराखंड में चार धाम यात्रा के दौरान अजैविक कचरे का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। पोलेथीन, मिनरल वाटर की बोतलें, प्लास्टिक के गिलास सब जगह बिखरे मिले. सरकार ने कहीं भी कचरे के निस्तारण के लिए डिब्बों का इंतजाम नहीं किया है. चेतावनी की तो बात ही अलग है।
7) पूरी यात्रा के दौरान कहीं भी स्वास्थ्य केंद्र देखने को नहीं मिले। हां, प्रत्येक धाम से 8-10 किलोमीटर पहले सुविधाओं की सूचनाएँ देते बोर्ड जरुर दिखे, लेकिन ये सुविधाएँ कहाँ उपलब्ध हैं ये बताने वाला कोई नहीं था। मेरा सुझाव है कि ये सुविधाएँ जहां भी हों, किसी मुख्य जगह पर ही होनी चाहिए और उन्हें पूर्व प्रचारित भी किया जाना चाहिए (अख़बारों में नहीं बल्कि यात्रा मार्ग पर) ।
मुख्यमंत्री जी, अभी बहुत दिनों पुरानी बात नहीं है जब आपके एक पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री हरिद्वार में महाकुम्भ के सफल आयोजन के लिए नोबल जैसे पुरूस्कार की दुहाई दे रहे थे और उन्होंने ही बारह वर्ष उपरान्त होने वाली नंदा देवी राजजात यात्रा को विश्वस्तरीय आयोजन बनाने की घोषणा भी की थी। लेकिन मेरी समझ से ये बात परे है कि हर साल होने वाली चार धाम यात्रा को सरकार इतने हल्के में क्यों लेती है। कम से कम मुझे तो आपकी सरकार का Incredible Uttarakhand वाला स्लोगन मुहं चिढ़ाता सा ही लगता है।
सधन्यवाद सहित,
आपका
वेद भदोला
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