आखिरकार, लम्बी जद्दोजहद के बाद यूपी को नये सूचना आयुक्त मिल ही गये। राज्य सूचना आयुक्तों के सात पद पिछले दो वर्षो से भी अधिक समय से और एक पद करीब डेढ़ वर्ष से रिक्त था। इसका ख़ामियाज़ा जनसूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत जानकारी मांगने वाले भुगत रहे थे। उनकी अपील नहीं सुनी जा रहीं थीं। यह देरी क्यों हो रही थी, इसके कई कारण गिनाये जा सकते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के सामने कोई पेंच नहीं चला और उसके सख्त रवैये के बाद उत्तर प्रदेश की नये सूचना आयुक्तों की मुराद पूरी हो गई। नव वर्ष के पहले हफ्ते में ही राज्य की जनता को आठों सूचना आयुक्त मिल गये।
यह खबर राज्य के आम नागरिकों के साथ-साथ पत्रकारिता जगत के लोगों के लिये भी खास है। बसपा सरकार के उलट सपा सरकार ने राज्य सूचना आयुक्त के अधिकांश पदों पर पत्रकारिता से जुड़े लोगों को नियुक्त किया है। जिन पत्रकारों को यह सम्मान मिला उसमें दैनिक जागरण लखनऊ के मुख्य संवाददाता और वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार के पुत्र स्वदेश कुमार, दैनिक जागरण दिल्ली में कार्यरत राजकेश्वर सिंह, टाइम्स ऑफ इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार और अब मुलायम सिंह यादव के समधी अरविंद सिंह बिष्ट, चर्चित राजनीतिक पत्रिका के पत्रकार डा0 विजय शर्मा, उर्दू पत्रकारिता से संबद्ध अब्बास रिजवी और एनडीटीवी के गजेन्द्र यादव शामिल हैं। गजेन्द्र यादव ने विधान सभा चुनाव के समय अखिलेश यादव को एनडीटीवी पर काफी सुर्खिंया दिलाईं थी। चर्चा है कि अखिलेश की ताजपोशी के बाद राज्य सूचना आयुक्त बनने के चक्कर में वह काफी पहले ही अपनी नौकरी छोड़ चुके थे।
राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों में देरी की बात की जाये तो इस मामले में राज भवन और सरकार के बीच कई प्रयासों के बाद बेहद मुश्किल से सहमति बन पायी। अखिलेश यादव ने सीएम की कुर्सी पर बैठने के बाद 23 अगस्त 2012 को पहली बार राज्य सूचना आयुक्त के पद ले लिये आठ नामों को संस्तुति के लिये गर्वनर के पास भेजा था। इसमें एक ईसाई, दो अन्य अल्पसंख्यक, एक रिटायर्ड नौकरशाह, एक अधिवक्ता और तीन पत्रकारों के नाम शामिल थे। यह पत्र एक माह तक राजनभवन में पड़ा रहा। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश सामने आया तो राजभवन से संस्तुति की फाइल सरकार को यह कहते हुए वापस लौटा दी गई कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेशानुसार नाम तय करके भेजे जायें। सरकार ने फिर से प्रक्रिया शुरू की। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सूचना आयुक्त के पद के लिये विज्ञापन निकाला गया। दो हजार रूपये की फीस आवेदन शुल्क के साथ वसूली गई। करीब छह सौ आवेदन पत्र आये, जिनकी जांच तीन सदस्यीय चयन समिति ने की। आठ नाम तय हुए। समिति के अध्यक्ष मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सदस्य नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या एवं विधान परिषद में नेता सत्तापक्ष तथर स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन थे। राजभवन को इस बार भी चयन समिति पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर पाई। राजभवन ने यह कहते हुए सरकार को फाइल लौटा दी कि चुने गये नामों की योग्यता और विशेषता भी उनके नाम के आगे दर्शायी जाये। राज्य सरकार ने ऐसा ही किया। इसके बाद ही गर्वनर ने संस्तुति प्रदान की। मुख्य सूचना आयुक्त ने सात जनवरी 2014 को सभी नवनियुक्त सूचना आयुक्तों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
उधर, आईजी स्तर के एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बैंच में चले गये। वह भी सूचना आयुक्त बनने की दौड़ में थे। उन्हें चयन प्रक्रिया से एतराज था। खैर, राज्य को लम्बी जद्दोजहद के बाद नये सूचना आयुक्त नसीब हुए हैं। पहली बार छह पत्रकार राज्य सूचना आयुक्त के पद पर विराजमान हुये हैं। अलीगढ़ विवि के पूर्व छात्र नेता और सपा यूथ से जुड़े रहे हाफिज उस्मान और बसपा शासनकाल में स्थायी अधिवक्ता के पद पर तैनात रहे पारसनाथ गुप्ता को स्वामी प्रसाद मौर्या का करीबी होने का फायदा मिला है। उत्तर प्रदेश में एक पद मुख्य सूचना आयुक्त और दस पद सूचना आयुक्त के हैं। मुख्य सूचना आयुक्त रणधीर सिंह पंकज और एक अन्य सूचना आयुक्त ज्ञान प्रकाश मौर्या इसी वर्ष जून के अंत में अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। वहीं श्रीमती खदीजातुल कुबरा जून 2016 में रिटायर होंगी। इन तीनों की नियुक्ति बसपा शासनकाल में हुई थी।
संजय सक्सेना
लखनऊ